केवल कृष्ण पनगोत्रा
दुनिया भर में सवा लाख से अधिक लोग करोना वायरस से प्रभावित हैं और 5500 से अधिक की मौत हो चुकी है। आंकड़े सरकारी हैं और सरकारी आंकड़े कितने सही होते हैं, सभी समझते हैं। हमेशा सरकारी और गैर सरकारी आंकड़ों में बड़ा फर्क रहता है। चूंकि गैर सरकारी तौर पर करोना के टैस्ट करवाए भी नहीं जा रहे, इसलिए सरकारी आंकड़ों पर ही वायरस के प्रभाव को आंका जा रहा है ।
भारत में भी कोरोना वायरस के पीड़ितों की संख्या दिनो-दिन बढ़ती जा रही है। लेकिन तुलनात्मक रूप से यहां घोषित संख्या बहुत कम है।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने अनुसार फ़िलहाल(18 मार्च तक) भारत में कोरोना संक्रमण के 151 मामले सामने आए हैं। दो लोगों की मौत हो चुकी है। दुनिया के 120 से ज़्यादा देशों में जिस तरह कोरोना फैला है, उस लिहाज़ से भारत में अब तक मरीज़ों की ज्ञात संख्या बहुत ही कम है। भारत में यह संख्या कम क्यों है ?
विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस टेस्ट को लेकर भारत में अभी और गंभीरता लाने की ज़रूरत है।
जम्मू-कश्मीर में भी वायरस का प्रकोप बड़ता जा रहा है। स्थिति की गंभीरता और लापरवाही का आलम यह है कि श्रीनगर, ऊधमपुर आदि जिलों में वचाव के सरकारी प्रयास काफी संतुष्टजनक लग रहे हैं जबकि कठुआ में स्कूल तो बंद हैं मगर शिक्षक स्कूल जा रहे हैं। जम्मू के शिक्षक कठुआ तक सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करके आ रहे हैं। आम जनता हैरान है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस टेस्ट को लेकर भारत में अभी और गंभीरता लाने की ज़रूरत है।
सोशल मीडिया पर सक्रिय ‘चेतना विकास मंच’ कहता है कि सवा अरब से ज़्यादा आबादी वाले देश में जिस तरह कोरोना वायरस के लिए स्क्रीनिंग और सैंपल टेस्ट किए जा रहे हैं, वो नाकाफ़ी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर किसी ऐसे व्यक्ति में इस वायरस की मौजूदगी है, जो कभी न तो विदेश गया और ही ऐसे किसी व्यक्ति के संपर्क में आया, तो ख़तरा और बढ़ सकता है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो दक्षिण कोरिया की कुल आबादी 5.1 करोड़ है। वहां 20 जनवरी से लेकर अब तक 2.5 लाख से अधिक लोगों का टेस्ट किया जा चुका है। इसके लिए टेस्टिंग सेंटर बनाए गए हैं, ताकि इस महामारी से निपटा जा सके।
भारत के लिहाज़ से देखें तो यहां ऐसे सेंटर कम ही हैं। भारत में कोरोना वायरस के टेस्ट के लिए हर राज्य में कुछ चुनिंदा अस्पतालों को ही सेंटर बनाया गया है, जो कि आबादी के लिहाज़ से पर्याप्त नहीं हैं।
हफ़पोस्ट इंडिया से बातचीत में नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के पूर्व डायरेक्टर और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट टी. सुंदररमन ने कहा कि भारत में अभी इसके मामले बढ़ना शुरू हुए हैं। एक बार अगर वायरस ने फैलना शुरू किया तो मुश्किलें और मामले दोनों बढ़ेंगे।
टी सुंदररमन कहते हैं कि सरकार ने अब तक उन्हीं लोगों के टेस्ट कराए हैं, जो विदेश से लौटे हैं, या फिर जो ऐसे किसी व्यक्ति के संपर्क में आये हों। सरकार ने यही पैमाना तय किया है। ऐसे में अगर कोई सामान्य दिखने वाला व्यक्ति साधारण जुकाम या वायरल बुखार में हो, और वायरस के टेस्ट के लिए कहे, तो उसका टेस्ट नहीं किया जाएगा। ऐसे में समस्या यह है कि आप तय नहीं कर पाएंगे कि कम्युनिटी में ये वायरस फैल रहा है या नहीं।
वायरस के सैंपल टेस्ट करने के लिए देश भर में कुल 52 लैब बनाई गई हैं। आबादी के लिहाज़ से ये बेहद कम हैं। टी सुंदररमन के मुताबिक़, देश में क़रीब 600 या इससे अधिक सेंटर होने चाहिए, जहां वायरस की टेस्टिंग कराई जा सके।
टी सुंदररमन का मानना है कि सरकार को बड़े स्तर पर कोरोना वायरस के टेस्ट की मुहिम शुरू कर देनी चाहिए, ताकि यह आगे चलकर मुसीबत न बने। साथ ही कुछ ऐसी जगहों का चयन भी किया जाना चाहिए, जहां लोगों को सबसे अलग रखा जा सके।
एक बार अगर यह वायरस गांवों के स्तर पर फैलने लगा, तो फिर इस पर जल्दी काबू पाना आसान नहीं होगा।