आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
बांदा— प्राचीन ऐतिहासिक दुर्ग कालिंजर चंदेल राजाओं की जीती जागती धरोहर के रूप में अजेय दुर्ग रहा है जिसमें कई राजाओं के आक्रमण के बाद भी यहां किसी राजा ने जीत हासिल नहीं कर सकी। इसी दुर्ग में शेरशाह सूरी ने भी कालिंजर दुर्ग को जीतने का सपना लेकर यहां आक्रमण किया परंतु जीत हासिल ना हो सकी और मारे गए जिसकी मजार दुर्ग में स्थित है। बहुत लड़ाई और आंकड़ों के बाद इसमें किसी राजा की जीत ना होने का कारण इस दुर्ग में भगवान नीलकंठ की महिमा यहां राज करने वाले राजाओं पर भगवान शिव का आशीर्वाद रहा है जिससे इसे अजेय दुर्ग के नाम से जाना जाता है।
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कालिंजर दुर्ग के प्रमाण पुराणों में भी मिलते हैं परंतु चंदेल राजाओं के राज में ही सुरक्षित रहा है। राजाओं के राज्य खत्म होते ही इस दुर्ग की बागडोर शासन प्रशासन के हाथ में लगते ही उपेक्षाओं का शिकार होने लगा यहां पर मूलभूत कोई भी सुविधाएं आज तक नहीं हो पाई ऊपर पहले जो भी सामग्री प्रशासन ने विकास के माध्यम से उपलब्ध करवाई आज कुछ भी सुरक्षित नहीं जिसका कारण यहीं के निवासी कर्मचारियों की ड्यूटी इसी दुर्ग में होना आज तक दुर्ग के ऊपर कार्यों में किसी भी अधिकारी द्वारा देखरेख ना होना जिसमें ठेकेदारों से मिलकर पुरातत्व विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से संपूर्ण निर्माण कार्य में घटिया किस्म की सामग्री का उपयोग किया जाना इसका कारण यहां दुर्ग लोकल के निवासी पुरातत्व विभाग में नौकरी कर रहे यहां के निवासी जो ठेकेदारों को दुर्ग के तालाबों का पानी मोरम पत्थर भेजकर अपनी जेब भरने का घिनौना कार्य किया जाना बार-बार तालाबों का पानी निकलाने से आज कई तालाबों का पानी खराब हुआ सूख चुका है अथवा शुरुआती दौरे पर दुर्ग को काटकर बनाई गई सड़क निर्माण के बाद जगह-जगह रोड पर लगे संकेत सूचक बोर्ड जो अब गिने-चुने देखने को मिलते है जिनका कोई पता नहीं।
इसी क्रम में नीलकंठ मंदिर में लगी स्ट्रीट लाइटें जो कुछ दिन ही में जल्दी ही खराब हो अवश्य हो पीस बनी है उनके मोटे मोटे दाने के तारों का भी कोई अवशेष नजर नहीं आता साथ यहां दुर्ग में खुदाई कर गड़े धन की भी खोज रातों में की जाती रही है जिसके खुदाई के अवशेष देखने को मिले मनमानी ढंग से दुर्ग के कर्मचारियों द्वारा दुर्ग की संपत्ति का विनाश होता चला आ रहा है परंतु विकास के नाम पर किसी भी प्रकार की सुविधाएं प्रशासन और पुरातत्व विभाग नहीं कर सके 5 किलोमीटर कस्बे से दुर्ग की दूरी पर ना कहीं पानी की व्यवस्था ना लाइट की व्यवस्था और ना ही धूप व पानी से बचने के लिए कोई छाया रास्ते में दूर-दूर तक नजर नहीं आती आए दिन यहां देश-विदेश से पर्यटक घूमने आते रहते हैं वह साल में जहां तीन विशाल मेले होते हैं (1) कार्तिक पूर्णिमा में यहां सप्ताहिक मेला का आयोजन वर्षों से होता चला आया है जिसमें लाखों की तादाद में श्रद्धालु भगवान नीलकंठ के जल अभिषेक व दर्शन के लिए आते हैं इसी क्रम में मकर संक्रांति व महाशिवरात्रि का भी मेला लगता है इसी वर्ष बीते कुछ दिनों पूर्व महाशिवरात्रि पर्व पर प्रशासन द्वारा पांच दिवसीय कलिंजर महोत्सव का प्रोग्राम चला परंतु करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी प्रोग्राम का मजा अचानक 2 दिन ही बे मौसम बरसात के चलते फीका पड़ गया ऐसे में दुर्ग के ऊपर दर्शन को आए हुए पर्यटकों को बारिश से बचने के लिए सर छुपाने की भी जगह नहीं मिल सकी जिससे पूरे दुर्ग के ऊपर कहीं पर भी किसी प्रकार की कोई व्यवस्था ना होने के कारण दूर-दूर से आए पर्यटकों के मन में ग्लानि के भाव देखने को मिले ₹25 खर्च करने पर भी कोई व्यवस्था व दिखाने को पुरातत्व विभाग के पास तालाब और दो चार महलो के अलावा पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं रही। आए पर्यटकों का यही कथन रहा अरबों रुपए खर्च करने के बाद यहां पीने के पानी तक को लाले हैं। पानी की टंकी तो है पर वह भी मात्र सोपीश बनी लोगों का मुंह चिढ़ा रही है।
संबंधित अधिकारी आज इन मूल भूत समास्याओं से अपना मुख फेरे हुए हैं जो चिंता जनक है इन माननीयों सहित इस अजेय अभेद्य दुर्ग कालिंजर का ध्यान सिर्फ महोत्सव के दौरान ही आता इसके बाद कोई भी जिम्मेदार इसकी सुधि लेना मुनासिब नहीं समझता यही कारण है कि किले में व्यवस्था की जगह अव्यवस्थाओं का अंबार लगा हुआ है।