• शादाब जफर शादाब
भारत वर्ष में जनपद बिजनौर का कस्बा नजीबाबाद एक ऐसा स्थान है जहां पर महाभारत व मुगलकालीन की कई धरोहर अपनी उपस्थिति का एहसास कराती रहती हैं। यहां पर मानल नदी जहॉ कालिदास की रचना शकुंतला की गवाह है, वही कण्व ऋषि के आश्रम की निशानियां राजा दुष्यंत, शकुंतला उनके पुत्र सम्राट भरत के इतिहास की गवाही देती प्रतीत होती है। राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात कवि दुष्यंत ,शायर अल्लामा ताजवर नजीबाबादी,साहित्यकार अकबर शाह खॉ नजीबाबादी,स्वतंत्रा सेनानी मौलाना मौहम्मद अली जौहर की जन्मस्थली रहे इस जिले के इतिहास के पन्नों में अपनी अनगिनत कहानियों को स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराने वाला नजीबाबाद की मुख्य पहचान पत्थरगढ़ का किला एक ऐसी धरोहर है जो नवाबी शौक, अंग्रेजों के कहर और सुल्ताना के प्रतिशोध की दास्तां समेटे हुए है। नजीबाबाद शहर से लगभग दो किलोमीटर दूर बने इस किले को लोग सुल्ताना डाकू के किले के रूप में भी जानते हैं।
बात करे अगर डाकू सुलताना की तो सुल्ताना डाकू का नाम आज कौन नही जानता, आज भी देश विदेश के हजारो लोग ये किला सुलताना की प्रसिद़ी के कारण देखने आते है. ये किला और सुलताना डाकू का नाम भारत ही नही बल्कि पूरी दुनिया मै मशहूर है. आज से सैकडो बरस बाद भी डाकू सुल्ताना की बहादुरी और दरिया दिली की किस्से पूरी दुनिया मै नजीबाबाद को पहचान दिलाने मै अहम रहे.सुल्ताना डाकू ने नजीबाबाद को विश्वस्तर पर पहचान दिलाई वही नजीबुद्दोला के बनाये किले को अपने नाम से प्रसिद़ कर दिया.सुल्ताना डाकू के इस पर कब्जा करने के बाद इस किले ने देश ही नहीं बल्कि विदेशो में प्रसिद्धि पाई।
नाटकों, नौटंकियो और ग्रामिण सांग व कहानियो में सुल्ताना डाकू को नजीबाबाद,बिजनौर का बताया जाता है पर दरअसल वह और उसका गिरोह मुरादाबाद जिले का था।
उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत में भले ही सुल्ताना जैसे लोगों को डाकूओं की संज्ञा दी गई हो पर असल में ये लोग व्यवस्था से तंग आकर बागी बने थे। इन लोगों ने अंग्रेजों व जमींदारों और साहूकारों के अत्याचारों से तंग आकर गलत रास्ता अख्तियार किया था! कहते है कि अंग्रेजी हुकूमत के समय लगभग 155 साल पहले भांतू जाति का एक गिरोह मुरादाबाद में सक्रिय था, जिसमें सुल्ताना भी था। इस गिरोह ने सीधे अंग्रेजों की हुकूमत को चुनौती दे रखी थी। पर उस वक्त अंग्रेजी हकूमत से पार पाना बेहद मुश्किल था. गिरोह से छुटकारा पाने के लिए अंग्रेजों ने खाली पडे पत्थरगढ़ के किले को कब्जे में लेकर इस गिरोह के लोगों को पकड कर किले में लाकर डाल दिया तथा उन्हें काम पर लगाने के लिए यहां पर एक कपड़े का एक कारखाना स्थापित कर दिया। इन लोगों को काम पर लगा दिया गया। पर यहॉ पर भी गिरोह के लोग इन लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे थे। इन लोगों की मजदूरी इतनी कम थी कि इनके परिवार का पालन-पोषण नहीं हो पाता था। हां इनको सप्ताह में एक दिन नजीबाबाद शहर में जाने की इजाजत प्रशासन से जरूर मिलती थी। जेलनुमा जिंदगी से परेशान तथा आर्थिक तंगी के चलते इन लोगों ने चोरी छिपे फिर से एक गिरोह बना लिया, जिसका सरगना बालमुकुंद को बनाया गया। कुछ समय बाद बालमुकुंद नजीबाबाद के पठानपुरा मोहल्ले के मोहम्मद मालूक खां की गोली का शिकार हो गया। बालमुकुंद के मरते ही गिरोह की बागडोर सुल्ताना के हाथ में आ गई, जिसने अपने जज्बे और चालाकी से अंग्रेजों को छका कर नजीबाबाद के पास ही कंजली बन में डेरा डाल दिया। सुल्ताना का गिरोह इस वन में कितना सुरक्षित था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कंजली वन का विस्तार कई सौ किलोमीटर था।
सुल्ताना ने नजीबाबाद के आसपास के गरीबों को विश्वास में लेकर जमींदारों व साहूकारों के घरों में डकैती डालनी शुरू कर दी। हर जगह अंग्रेजों व जमीदारों को चुनौती पेश करने वाले इस डाकू के चर्चे पूरे हिन्दुस्तान में होने लगे। सुल्ताना गरीबों में इसलिए भी ज्यादा लोकप्रिय हो गया था कि क्यों कि उसका कहर जमींदारों तथा साहूकारों पर ही टूटता था और उनसे लूटकर वह सब कुछ गरीबों में बांट देता था। कहा जाता है कि उसने कई गरीब बेटियों की शादी भी कराई। सुल्ताना की विशेष बात यह भी थी कि डाकू होने के बावजूद वह महिलाओं की बहुत इज्जत करता था तथा उनके द्वारा पहने जेवर को लूटने की इजाजत अपने लोगों को नहीं देता था। सुल्ताना के बारे में कहा जाता है कि डकैती डालने से पहले वह डकैती के दिन व समय का इश्तहार उस मकान पर चिपका देता था जहॉ उसे डकैती डालनी होती थी। पर इस बात में इतना दम नहीं लगता , जितनी मजबूती ये यह पेश की जाती है। हां, इतना जरूर था कि उसने बदले की भावना से कुछ जमींदारों के घर पर इश्तहार जरूर लगाए थे तथा इश्तहार लगाने कुछ ही समय बाद डकैती भी डाल दी थी। सुल्ताना ने नजीबाबाद के पास जहां डकैती डाली, उन में कोटद़ारा ट्रेन को लूटा, जालपुर और अकबरपुर प्रमुखता से डकैतिया डाली।
नजीबाबाद से लगभग 10 किलो दूर जालपुर में शुब्बा सिंह जाट जमींदार था, वह गरीबों पर बहुत अत्याचार करता था। किसी गरीब ने उससे छुटकारा पाने की गुहार सुल्ताना से लगाई तो उसने शुब्बा सिंह को सबक सिखाने की योजना बना ली। जमींदार ने अपनी हिफाजत के लिए कई गोरखा सिपाही भी रखे हुए थे, जो 24 घंटे उसे घर पर पहरा देते थे लेकिन वह भी सुल्ताना को नहीं रोक सके। सुल्ताना के गिरोह तथा गोरखा के बीच कई घंटे तक गालियां चलीं। इसी बीच सुब्बा सिंह घर से फरार हो गया। बाद में सुल्ताना सुब्बा सिंह को पकड़ तो न सका पर उसने वहां डकैती जरूर डाली। कहा जाता है कि सुल्ताना के पास एक घोड़ी थी, जिस पर सवार होकर वह एक से बढ़कर एक निशाना साध सकता था। अक्सर डकैती डालते समय वह इस घोड़ी को किसी दीवार से सटाकर खड़ा कर फायरिंग करता था।
उस वक्त सुल्ताना की ख्याति बहुत दूर दूर तक फैल चुकी थी सुल्ताना डाकू पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसी हिन्दी फिल्म के नायक की तरह मशहूर हो चुका था। सुल्ताना के नाम से चौपालो पर,मेलो और स्कूलों में नाटक खेले जाते थे, नौटंकियां और सांग होते थे।
सुल्ताना डाकू उत्तर प्रदेश के कई ग्रामीण इलाको में लोक संगीत की विधा नौटंकी का प्रमुख नायक भी रहा है और आज भी कुछ ग्रामीण अंचल के इलाको में हीरो की तरह याद किया जाता है। जो पुराने बूढे लोग सहारनपुर, बिजनौर तथा हरिद्वार जनपद के इतिहास की जानकारी रखते हैं, उन्हें सुल्ताना डाकू के किस्से रह रह कर आज भी याद आते रहते हैं।
पुराने दौर मै जब सिनेमा हाल नही थे टीवी वगैरा नही थे तब मनोरंजन के साधन नौटंकी ,सांग हारमोनियम की मस्तानी धुन, नगाडे ,ढपली की थाप गर्मी की रातों में लोगो की नींदे उड़ा देती थी और बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती रहती थी। धीरे,धीरे दौर बदला और यह सभी लोक कलायें आज इतिहास बन गई है.नौटंकी में कविता और साधारण बोलचाल को मिलाने की प्रथा शुरू से ही रही है। पात्र आपस में बातें करते थे लेकिन गहरी भावनाओं और संदेशों को अक्सर तुकबंदी के ज़रिये प्रकट किया जाता था। गाने में सारंगी, तबले, हारमोनियम और नगाड़े जैसे वाद्य इस्तेमाल होते थे। उस वक्त गॉव ,गॉव बस्ती,बस्ती ‘सुल्ताना डाकू’ के नाम से एक एक नौटंकी होती थी जिस में सुल्ताना अपनी प्रेमिका को समझाता है कि वह ग़रीबों की सहायता करने के लिए पैदा हुआ है और इसी लिए अमीरों को लूटता है। उसकी प्रेमिका (नील कँवल) कहती है कि उसे सुल्ताना की वीरता पर नाज़ है.
बानगी देखे..
सुल्ताना:
प्यारी कंवल किस को समझती है तू?
कोई मुझ सा दबंगर न रश्क-ए-कमर
जब हो ख़्वाहिश मुझे लाऊँ दम-भर में तब
क्योंकि मेरी दौलत जमा है अमीरों के घर
नील कँवल:
आफ़रीन, आफ़रीन, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी आफ़रीन, आफ़रीन
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम.
सुल्ताना:
पा के ज़र जो न ख़ैरात कौड़ी करे
उन का दुश्मन ख़ुदा ने बनाया हूँ मैं
जिन ग़रीबों का ग़मख़्वार कोई नहीं
उन का ग़मख़्वार पैदा हो आया हूँ मैं.
सुल्ताना:
प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
कोई मुझ-सा दबंग नहीं
जब मेरी मर्ज़ी हो एक सांस में ला सकता हूँ
क्योंकि अमीरों की दौलत पर मेरा ही हक़ है.
नील कँवल:
वाह, वाह, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी वाह, वाह
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम.
सुल्ताना:
पा के सोना जो कौड़ी भी न दान करे
ख़ुदा ने मुझे उनका दुश्मन बनाया है
जिन ग़रीबों का दर्द बांटने वाला कोई नहीं
उन का दर्द हटाने वाला बनकर मैं पैदा हुआ हूँ.
वह डाकू कम नायक ज़्यादा था। वह वेष बदलने में भी माहिर था। अक्सर अग्रेज़ अफसरों को मूर्ख बनाकर निकल जाता था। कभी कलक्टर बन जाता था कभी कमिश्नर और कभी एस पी। उसके बारे में अनेक ऐसी किंवदन्तियां प्रचलित थीं कि वह अमीरों को लूटता था और गरीबों का साथी था। कई बार वह वेष बदलकर ऐसे बेसहारा परिवारों की मदद के लिए पहुंच जाता था जहां बेटी की बारात आने वाली होती थी और घर में भुनी भांग नहीं होती थी। पीछे पुलिस होती थी। वह साधु या साहूकार के वेश में आता जो धन देना होता देकर निकल जाता। पीछे से पुलिस आती देखती जहां कुछ देर पहले पैसा न हाने के कारण विरानी व मातम छाया होता था, वहां शादी की तैयारियां गाजे बाजे से होने लगती थी। तहकीकात करने पर पता चलता कि एक सेठ या महात्मा आया धन देकर चला गया। अंग्रेजी हकूमत की पुलिस गॉव वाले से मार पीट करती पर गॉव वाले ज़्यादा ना बता पाते और न वे जान पाते कि वो मसीहा कौन था। पर पुलिस वाले समझ जाते कि सुल्ताना फिर हाथ से निकल गया। कई बार तो वह आला अफसरों से बैठकर बात कर जाता, नाई बनकर उनकी हजामत तक बना जाता। उसके जाने के बाद जान पाते कि वह सुल्ताना से बात हो रही थी। वह चाहता तो उन्हें आराम से हलाक कर सकता था। वे रोमांचित हो उठते थे और वो अपने सीने पर क्रास बनाने लगते थे और एक दूसरे से कहते ईशू ने बचा लिया।
सुल्ताना कभी धोखे से वार नहीं करता था। अफसरों को मूर्ख बनाने में उसे मज़ा आता था। आम जनता की हमदर्दी के कारण उसे पकड़ना अंग्रेज़ों के लिए टेढी खीर था। अगर कभी हाथ भी आ जाता था तो चकमा देकर निकल जाता था। एक किंवदंति थी कि वह किसी बच्चे को अपनी गोद नहीं लेता था यहॉ तक की उसने कभी अपने बच्चे को भी गोद मै नही लिया था। इस की वजह लोग कहते थे कि उसे शाप था कि जिस दिन वो बच्चे को गोद में उठाएगा वही उसका अंतिम दिन होगा।
सुल्ताना का कहर जब साहूकारों तथा जमींदारों पर टूटने लगा तो उन्होंने अंग्रेज हुकूमत से सुल्ताना को गिरफ्तार करने की गुहार लगाई। अंग्रेजी हुकुमत ने तेज तरार अधिकारी यंग साहब को इंग्लैंड से बुलाया तथा सुल्ताना को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी सौंपी।
यंग साहब ने नजीबाबद आकर सुल्ताना के करीबी रहे गफ्फूर खां से सुल्ताना की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा। पहले तो गप्फूर खां ने आना-कानी की पर बाद में यंग साहब के समझाने पर वह तैयार हो गए। नजीबाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मेमन सादात के रहने वाले डिप्टी सुपरिटेंडेंट अब्दुल कासिम के संबंध नजीबाबाद के लोगों से अच्छे थे। अब्दुल कासिम की वजह से ही नजीबाबाद के कुछ लोग सुल्ताना की गिरफ्तारी के लिए यंग साहब का साथ देने को तैयार हो गए। सुल्ताना की मुखबिरी इतनी जबर्दस्त थी। यंगसाहब की हर योजना का पता उसे तुरंत चल जाता था। इसकी वजह से कई साल तक जूझने के बाद भी यंग साहब उसे नहीं पकड़ पाए। आखिरकार थककर वह आगरा हेड क्वार्टर चले गए।
आखिरकार वह हुआ जो हिन्दुस्तान में होता आया है। नजीबाबाद के मुंशी की मुखबरी पर यंग साहब नजीबाबाद आए और खेडियों के जंगल में बेफिक्र पड़े सुल्ताना को चारों ओर से घेर लिया पर किसी थानेदार के गोली चलाने पर सुल्ताना अपने साथियों के साथ भाग निकलने में सफल हो गया।
यंगसाहब सिर पटक कर रह गए। कहा जाता है कि सुल्ताना वहां लाखों के जेवरात छोड़कर गया था। यंग साहब ने झुंझलाकर थानेदार को नौकरी से निकाल दिया। अगले दिन जट्टीवाला में मुंशी की मुलाकात सुल्ताना से हुई, जिसमें उसने गैंडीखाता न जाने की सलाह दी। गैंडीखाता उस समय साहनपुर रियासत (जाटों की रियासत) का एक गांव था। कहा जाता है कि सुल्ताना महिलाओं से बहुत दूर रहता था। यह सही नहीं है। सुल्ताना एक स्कूल के चपरासी की पत्नी की सुंदरता पर मोहित था, वह उसकी कमजोरी थी, जिसका फायदा यंग साहब ने उठाया। मुंशी के मिलने के तीन-चार दिन बाद अपने साथियों के साथ सुल्ताना गैंडीखाता पहुंचा। यंग साहब नजीबाबाद रुके हुए थे। पल-पल की खबर उन्हें थी। सुल्ताना और उसके दो साथी उस महिला के घर चले गए और अन्य साथी गैंडीखाता के बाग में ठहर गए। योजना के अनुसार सुल्ताना तथा उसके दोनों साथियों की वहां खूब खातिर हुई, उन्हें खूब शराब पिलाई गई।
यंग साहब अपने जवानों के साथ उस महिला के घर में घुस गए और सुल्तान जिलेदार तथा गांव के चौकीदार मिथरादास ने पूरी ताकत से सुल्ताना को दबोच लिया, जब सुल्ताना ने राइफल पर डाथ डाला तो वह पहले ही हटा दी गई थी। गठीला व नाटा सुल्ताना इतना ताकतवर था कि शराब के नशे में भी वह दोनों को घसीटता हुआ बाहर की ओर भागा। एक सिपाही के उसके पैरों पर राइफल की बट मारने से वह गिर गया। अब सुल्ताना और उसके दोनों साथी पुलिस हिरासत में थे । सुल्ताना वह उसके साथियों को हरिद्वार स्टेशन पर ले जाया गया तथा स्पेशल ट्रेन से नजीबाबाद लाया गया। यह सुल्ताना की गरीबों में लोकप्रियता ही थी कि उसकी एक झलक के लिए पूरा नजीबाबाद तथा आसपास के गांवों के लोग स्टेशन पर मौजूद थे।
सुल्ताना और उसके दोनों साथियों को आगरा जेल भेज दिया गया। धीरे-धीरे उसके गिरोह के 130 बदमाश भी गिरफ्तार कर लिए गए। उनमें से एक सरकारी गवाह बन गया, जिसने उन तमाम लोगों की शिनाख्त की जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सुल्ताना से संबंध था। सुल्ताना के गिरोह पर मुकदमा चलाया गया। यह केस इतिहास में ‘गन केस” के नाम से मशहूर है। बाद में सुल्ताना समेत तीन को सजा-एक मौत हुई तथा उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। उसके अन्य साथियों में से कुछ को उम्र कैद तथा कुछ को अन्य अवधि की सजा दी गई।
सुलताना के बारे मै यह भी प्रचलित है कि फांसी से पहले किसी अंग्रेज़ अफसर ने सुलताना को ये भी आश्वासन दिया था कि इस की मृत्यू के बाद में वह उसके परिवार की देख भाल करेगा। बाद मै यह एक बड़ा रहस्योदघाटन हुआ कि जिस पुलिस अफसर फ्रेड्रिक यंग ने उसे फांसी दिलवाई वही उसकी पत्नी और बेटे को अपने साथ लंदन ले गया, उनकी परवरिश की और बेटे को पढ़ा लिखाकर आई सी एस बनाया। दो परस्पर विरोधी और एक तरह से जानी दुश्मनों की संवेदना भरी कथा का नाम भी सुल्ताना हो सकता है। मि. यंग को को सुल्ताना तरह तरह के रूप रखकर बहुत छकाता था। शायद हिंदुस्तानी अधिकारी ऐसे डाकू को कानूनी ज़द में लाकर फांसी दिलाने के बजाए एनकाउंटर कर के बार बार होने वाली अपनी बेइज्ज़ती का बदला लेता। उसके परिवार के साथ यह सलूक तो अकल्पनीय है।
इतिहासकार लिखते है कि एक बार सुल्ताना जब नाई बनकर यंग की हजामत बनाते हुए कुछ सूचनाएं इकट्ठी करके निकल जाता है तो यंग को पता चलता है कि वो नाई सुलताना था तो पहले यंग सिपाहियों को दौड़ाता है फिर स्वागत कर कहता है कि सुल्ताना काश पुलिस में होता। इससे लगता है यंग उसकी क्षमता को समझता था वही कहना पडेगा कि दोनों मज़बूत इरादे और चरित्र के इंसान थे।
सुलताना डाकू के नाम से बॉलीवुड ने सुलताना के जीवन पर एक फिल्म भी बनाई “सुलताना डाकू” जिस मै सुलताना डाकू की मुख्य भूमिका उस वक्त के मशहूर सिने अभिनेता व पहलवान दारा सिंह ने निभाई थी.
सुल्ताना डाकू को गुजरे सदियां बीत गई हैं, लेकिन उसके किस्से इतने अर्से बाद आज भी ‘जिंदा’ हैं। शीशमहल के पास सुल्तान नगरी का नाम उसके ठहरने के कारण पड़ने की बात हो या फिर गड़प्पू के पास उसका ‘कुआं’। उससे जुड़ी कहानियां लोगों की जुबां पर आ ही जाती है। अब सैकडो साल बाद फिर सुल्ताना डाकू और उसकी गिरफ्तारी से जुड़ी एक बात और सामने आई है। सिजवाली टावर निवासी विजय सिजवाली का कहना है कि उनके दादा सरदार तुला सिंह सिजवाली ने अपने एक दोस्त का बदला लेने के लिए सुल्ताना डाकू के पीछे पड़ गए थे। उनके कारण ही अंग्रेजों की नाक में दम करने वाला सुल्ताना हत्थे चढ़ा। विजय सिजवाली कहते हैं कि सुल्ताना डाकू का आतंक तत्कालीन यूनाईटेड प्रोविंश के बिजनौर, कालाढूंगी से लेकर कई हिस्सों में था। अंग्रेज उसे पकड़ने की कोशिश में लगे थे। इस दौरान सुल्ताना डाकू ने हल्द्वानी के जमींदार रहे खड़क सिंह कुमड़िया के लामाचौड़ घर में धावा बोला। यहां लूटपाट करने के साथ ही परिवार वालों के साथ मारपीट की। उनके अनुसार इसमें खड़क सिंह और परिवार एक और सदस्य की मौत हो गई। खड़क सिंह उनके दादा तुला सिंह सिजवाली के घनिष्ठ मित्रों में एक थे, इस घटना के बाद वह अपने दोस्त का बदला लेने के लिए सुल्ताना डाकू के पीछे लग गए। उस दौरान तेज तर्रार अफसर एसपी बिजनौर फ्रैडी यंग भी सुल्ताना डाकू की सरगर्मी से तलाश कर रहे थे। विजय सिजवाली का दावा है कि दादा तुला सिंह के सहयोग से सुल्ताना डाकू को 1925 में गड़प्पू के पास पकड़ा गया। उस वक्त एक दुर्लभ फोटोग्राफ भी उनके पास है, जिसमें पुलिस कर्मियों के साथ सुल्ताना डाकू दिखाई दे रहा है। वह कहते हैं कि घटना के बाद अंग्रेजों ने खुश होकर उन्हें इनाम स्वरूप बब्ले स्कॉट बंदूक भी भेंट की थी, जो आज भी हमारे लिए एक धरोहर के तौर पर हैं। बाद में यंग अवध प्रांत के आईजी भी बने। वह कहते हैं कि दानदाता के तौर पर क्षेत्र में लोकप्रिय रहे दादा को सरदार की पदवी मिली, वह प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट के साथ भी जुड़े रहे। उनके साथ एक फोटो भी हैं। इसमें जिम कार्बेट, पुलिस अफसर यंग और इन के दादा साथ-साथ है।
कुछ लोग कहते है कि सुल्ताना डाकू का एक हाथ पंजे से नीचे से कटा था पर वास्तव मै सुल्ताना के एक हाथ की तीन अंगुलियां कटी हुई थी, जिन के द़ारा ही पकडे जाने के बाद सुलताना के रूप मै उसकी शिनाख्त भी हुई थी। सुल्ताना डाकू के बारे मै बहुत सी बाते प्रचलित है कुछ कहते है कि शुरु मै उस ने किसी दुकान से अण्डा चुराकर अपनी मॉ को लाकर दिया था और एक अण्डे की चोरी ने उसे इतना बडा डाकू बना दिया . ये बात यू ही नही मशहूर हुई कहा जाता है कि पकडे जाने के बाद फांसी से पहले जब उसकी मां उस से मिलने जेल आई तो उसने मॉ से मिलने से यह कहकर मना कर दिया कि आज यह दिन तेरे कारण देखने को मिला। इससे ये बात मजबूत बनती है,वही उसे डाकू बनने का कितना पछतावा था इस का दर्द भी महसूस होता है.
कुछ भी हो सुलताना जैसा नाम इतिहास मै आज भी अमर है और अमर रहेगा।