विवेक चौबे की से
देवों का देव महादेव,जिन्हें हिन्दू धर्म के लोग बड़ी उत्साह व लग्न के साथ पूजा-अर्चना किया करते हैं। वैसे तो यहां धर्म प्रधान देश में इन्हें कई नामों से पुकारा जाता है। वहीं इनका शिव नाम शब्द भी अत्यंत ही शक्तिशाली है। जबकि वे काल के भी हैं,महाकाल। बता दें कि इन्हें भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता हैं,क्योंकि वास्तव में वे अपने सरल स्वभाव से भोले होते हैं,जिस पर इनकी कृपा बरसी,समझो उसका तो बेड़ा पार हो ही गया।
कहते हैं कि शिव इतने भोले हैं कि कोई गलत तरीके से भी शिवलिंग की पूजा कर दे तो भी उसे शिव की कृपा प्राप्त हो जाती है। हर कार्य में बड़ी आसानी से मिल जाती है,सफलता। वहीं हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि को अलग अंदाज में विशेष रूप से पूजा करते हैं।
महाशिव रात्रि हिन्दू धर्म के सभी प्रमुख त्योहरों में महत्वपूर्ण व अलग है। वैसे तो भक्तों का क्या कहना,केवल आत्मा शुद्ध होनी चाहिए। लोग शिव को सालों भर पूजा व आराध्य किया करते हैं। जबकि विशेष महत्व रखने वाले इस दिन की बड़ी बेसब्री से भोले भंडारी की विशेष आराधना के लिए भक्तगण साल भर प्रतीक्षा किया करते हैं। भक्तों द्वारा सच्चे दिल से इस खाश दिन अपने घर, तो द्वार पर बने चबूतरे या किसी शिवालय के शिवलिंग पर जल, दूध व बेल पत्र चढ़ाकर भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए प्रयत्न किया जाता है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन जो भक्त सच्चे दिल से शिविलंग पर अभिषेक या जल अर्पित करते हैं,उन्हें महादेव की विशेष कृपा मिलती है। बता दें कि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को सिर्फ शिवरात्रि कहा जाता है, लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को शिवरात्रि नहीं,बल्कि महाशिवरात्रि कहते हैं। खाश बात तो यह कि साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से इस महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
21 फरवरी को महाशिवरात्रि
हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह प्रत्येक वर्ष फरवरी या मार्च महीने में आती है। इस बार विशेष महत्व रखने वाली यह शिवरात्रि 21 फरवरी को है।
तीन मान्यताएं हैं, प्रचलित
पहला मान्यता यह कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिव जी पहली बार प्रकट हुए थे। मान्यता है कि भगवान शिव अग्नि ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हु थे, जिसका न आदि था,न ही अंत। कहते हैं कि इस शिवलिंग के संबंध में जानने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया था। उसके ऊपरी भाग तक जाने की प्रयत्न किए,किन्तु उन्हें वे असफल रहे। वहीं, सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु ने भी वराह रूप धारण कर उस शिवलिंग का आधार ढूंढने में नाकामयाब रहे।
जबकि दूसरा मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही अलग-अलग 64 स्थानों पर शिवलिंग उत्पन्न हुए थे। हालाकि 64 में से अब तक 12 ज्योर्तिलिंगों के संबंध में ही जानकारी उपलब्ध हो सकी है।
वहीं तीसरी मान्यता यह कि महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिव शंकर व माता शक्ति की शादी संपन्न हुई थी।