नवीन जोशी ‘नवल’
(भिटौली का शाब्दिक अर्थ है – भेंट (मुलाकात) करना। प्रत्येक विवाहित लड़की के मायके वाले (भाई, माता-पिता या अन्य परिजन) चैत्र के महीने में उसके ससुराल जाकर विवाहिता से मुलाकात करते हैं। इस अवसर पर वह अपनी लड़की के लिये घर में बने व्यंजन जैसे खजूर (आटे + दूध + घी + चीनी का मिश्रण), खीर, मिठाई, फल तथा वस्त्रादि लेकर जाते हैं। शादी के बाद की पहली भिटौली कन्या को वैशाख के महीने में दी जाती है और उसके पश्चात हर वर्ष चैत्र मास में दी जाती है। लड़की चाहे कितने ही सम्पन्न परिवार में ब्याही गई हो उसे अपने मायके से आने वाली “भिटौली” का हर वर्ष बेसब्री से इन्तजार रहता है। इस वार्षिक सौगात में उपहार स्वरूप दी जाने वाली वस्तुओं के साथ ही उसके साथ जुड़ी कई अदृश्य शुभकामनाएं, आशीर्वाद और ढेर सारा प्यार-दुलार विवाहिता तक पहुंच जाता है।
आइए आपको इसी उपलक्ष्य की एक कवि की भावना से अवगत कराते हैं।)
नव वर्ष चैत्र भी आ गया कबके बीत गयी होली,
सबकी आ गयी फिर क्यों न आयी मेरी भिटौली !
कहीं दिखेँ तो राह में पिता या भाई आते ,
कातर दृग एकटक अनंत तक ताकते ।
भिटौली क्यों नहीं आई मेरे उस घर से ?
सब ठीक तो हैं ! हृदय हांफता इस डर से ।
दूर आता दिखे कोई थैला सा हाथ लिए,
आँखों में जलने लगे शीघ्र स्नेह के दिए।
फिर विवश, निराश! अरे यह तो है कोई और,
विचलित अंतर्मन में नहीं सुख के लिए ठौर !
क्यों विचलित है, क्यों वह इतनी आहत है?
क्या मां-पिता, भाई से कुछ उसे चाहत है ?
नहीं! उसे तो एक अदृश्य दुलार चाहिए,
जन्म से हैं अपने जो उनका प्यार चाहिए ।
मेरा परिवार मेरा है ऐसा विश्वास खोजती,
मेरे पीछे सहारा है एक आभास खोजती !
यह चाहत नहीं एक भावना, एक आस है ,
मैं विस्मृत नहीं हूँ, ऐसा एक अटूट विश्वास है !
विज्ञान का युग है स्वयं को परखना होगा ,
पावन परम्पराओं को जीवित भी रखना होगा ।
परंपरामात्र नहीं वात्सल्य का जीवंत प्रकाश है,
कृपादान नहीं स्नेहशक्ति का उच्च अहसास है ।
महकती चहकती रही वर्षों जिस आंगन में ,
दिवाली, होली, फूलदेई व राखी वाले सावन में ।
जहाँ वह उछलती कूदती करती रही ठिठौली,
व्यथित होना ही है यदि न जाए वहां से भिटौली !!
(भावार्थ : उत्तरांचल में बसंत से नववर्ष चैत्र माह में बहिन-बेटियों से उनके ससुराल जाकर पकवान वस्त्र आदि स्नेह-भेंट करने की विलक्षण प्राचीन परंपरा है, जिसे “भिटौली” कहा जाता है! यदि किसी बहन-बेटी के पास किसी कारणवश कोई व्यक्तिगत या सन्देश नहींपहुँच पाता है, तो उसकी मन की व्यथा क्या होती होगी, उसी को मैंने संक्षिप्त रूप में कुछ शब्दों के माध्यम से छोटी सी कविता का स्वरुप देने का प्रयास किया है !)