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एक पूरी ग़ज़ल…..मातृदिवस पर मां के हवाले से मॉ के नाम
शादाब जफर शादाब चांद तारों को ये अम्बर से बुला लेती हैं।…
“करीब” से देखा जब अपनो को….
केसर रानी (परमीत कौर) करीब से देखकर जिन्दगी को, मैने मौत का…
अमीर घर से हूं फिर भी गरीब हूँ मैं….
केसर रानी (परमीत) गरीबी का अफसोस नहीं है मुझे के गरीब घर…
“अन्तर्निहित मन,स्पष्ट विचार”
“केसर रानी (परमीत)” यहां फरेब के तले चलती है दुनिया,,,ईमान बेच कर…
सहमा, सहमा सा ये इंसान नज़र आता है
[ शादाब जफर शादाब की ग़ज़लें हों या लेख, रिपोर्ताज हों या…
गली के हर मोड़ पर खड़े हैं शकुनि यहां!
केवल कृष्ण पनगोत्रा ज्यादा गुज़र गई तो थोड़ी भी गुज़र जाएगी! रफ्ता-रफ्ता…