आत्माराम त्रिपाठी
सत्ता शीर्ष से लेकर तमाम महकमों व आम लोगों की कोशिश यही है कि देश में जान की क्षति कम से कम हो। फिलहाल किसी हद तक हम भयावह संकट को कम करने में सफल भी हुए हैं। मगर, जहां तक कोरोना टेस्ट के दायरे का सवाल है तो अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां भी मानती रही हैं कि भारत इस दिशा में पिछड़ा है। यह भी कि हम अब तक ऐसा स्वास्थ्य तंत्र विकसित नहीं कर पाये जो कोरोना जैसी महामारियों के खिलाफ मजबूती से खड़ा रह सके। कैसी विडंबना है कि जिस चीन को कोरोना प्रसार में आपराधिक लापरवाही के लिए कोसा जा रहा है, वहीं से हम कोरोना से लड़ाई के हथियार खरीद रहे हैं। उसके लिए चीन मनमाने दाम भी वसूल रहा है। कहीं न कहीं रहस्यमयी चीन की कोविड-19 से लड़ाई की तैयारियों को लेकर संदेह होता है। फिलहाल तो चीन से आयातित घटिया रैपिड टेस्टिंग किट का आर्डर रद्द किये जाने की चर्चा है, जिसको लेकर राजनीति भी शुरू हो गयी है कि इसमें घोटाला हुआ है जबकि आईसीएमआर का कहना है कि सरकार ने एक रुपया भी नहीं दिया, इसे भारतीय कंपनियों ने मंगवाया था, जिसे वापस भेजा जा रहा है। बहरहाल, मौजूदा दौर में भारत में संक्रमण प्रसार की जो स्थिति उभर रही है, उसमें जांच को विश्वसनीय ढंग से आगे बढ़ाने की जरूरत है। बशर्ते उसकी विश्वसनीयता सुनिश्चित हो। दरअसल, रैपिड टेस्टिंग किट की जांच की गुणवत्ता को लेकर राजस्थान और पश्चिम बंगाल सरकार ने केंद्र सरकार से प्रतिवाद किया था। उनका आरोप था कि एंटीबॉडी किट के जांच परिणामों में विश्वसनीयता नजर नहीं आती, जिसके बाद आईसीएमआर ने किट के माध्यम से जांच पर रोक लगा दी है। साथ ही चीन से किये गये ऑर्डर भी कैंसिल कर दिये गये।
इसमें दो राय नहीं कि हम जितनी जल्दी और जितने विश्वसनीय ढंग से जांच का दायरा बढ़ाएंगे, उतना ही देश को कोरोना प्रभाव से मुक्त कर पायेंगे। इसमें जितनी देरी और लापरवाही होगी, सामुदायिक संक्रमण का खतरा उतना ही ज्यादा रहेगा। जांच का दायरा बढ़ाने के साथ परीक्षणों की विश्वसनीयता बढ़ाने की भी जरूरत है। केवल हॉटस्पॉट और कंटेन्मेंट ज़ोन में ही नहीं, देश के दूर-दराज के इलाकों में भी जांच का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। कोशिश हो कि प्रशिक्षित कर्मचारियों के जरिये ही इसे पूरा किया जाये। साथ ही देश में विकसित विश्वसनीय जांच तकनीक को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। लैबों की संख्या और बढ़ाने की जरूरत है ताकि भविष्य में किसी ऐसी चुनौती का मुकाबला करने में सक्षम हो सकें। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी दुनिया में ऐसी महामारियों की पुनरावृत्ति की आशंकाओं से इनकार नहीं कर रहा है। वैसे कहा जा रहा है कि सरकार ज्यादा प्रभावी जांच परिणाम देने वाले तरीकों पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। संभव है कि रैपिड टेस्ट किट को लेकर हुए विवाद के बाद जांच के तरीके में ही बदलाव लाया जाये, जिसको लेकर मई मध्य तक इसके प्रयोग के अंतिम नतीजे सामने आ सकते हैं, जिसके लिये नये सिरों से किटों का आयात हो सकेगा। इसमें डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित एलीसा टेस्ट भी शामिल है, जिसकी जांच की विश्वसनीयता रैपिड टेस्ट किट के मुकाबले 95 फीसदी सटीक नतीजे देती है। साथ ही 99 फीसदी सही नतीजे देने वाली केमिलुमिन्सीन आधारित तकनीक पर भी विचार हो रहा है। ये तकनीकें विशिष्ट और बेहद संवेदनशील बतायी जाती हैं, जिसके लिये पर्याप्त संसाधनों और कुशल तकनीशियनों की जरूरत होती है। बहरहाल, वक्त की जरूरत है कि जब दूसरे दौर का लॉकडाउन समाप्ति की ओर है, कोरोना के टेस्टों का दायरा सुनियोजित व विश्वसनीय ढंग से बढ़ाया जाये। देश को लंबे समय तक वायरस के भय से बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता। इसके लिए दूरगामी फैसलों की जरूरत है।