गौरव शुक्ला की रिपोर्ट
फर्रुखाबाद पहली बरसात में यूँ तो पूरे नगर में जलभराव की समस्या से लोग जूझ रहे हैं, लेकिन ढिलावल से बघार के बीच पडऩे वाले अंडरपास में तो स्थिति नारकीय हो गयी है। जल निकासी की ठोस व्यवस्था न होने के कारण दुपहिया वाहन चालकों का निकलना मुश्किल हो गया है।
बीते तीन वर्षों से ढिलावल का अंडरपास बरसात के समय लोगों के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है। गुरुवार को मानसून की पहली बरसात थी और सुबह से ही अंडरपास में पानी भरना शुरू हो गया। शाम होते-होते इसने तालाब का रूप ले लिया। बड़े वाहन तो निकल जाते हैं, लेकिन दुपहिया वाहन चालक तो राम-राम-राम-राम अथवा हे माते-हे माते कहते हुए इस तालाब से पार हो रहे हैं। जो निकल जाता है, वह एक बार पीछे देखता है और दूसरी बार आसमान की ओर
गुरुवार शाम पंडित विद्याधर शास्त्री जसमई पर किसी यजमान के घर भगवान सत्यनारायण की कथा कहने जा रहे थे। बघार की ओर से जब साइकिल से उन्होंने अंडरपास में प्रवेश किया तो उनके गेरुआ वस्त्र चमक रहे थे। सफेद धोती, गुरुआ कुर्ता और माथे पर चन्द्रतिलक। लेकिन जब वे अंडरपास के दूसरी ओर निकले तो एक कार के पहियों ने उनके कपड़ों पर इतने नक्शे बना दिए थे, कि उन्हें गिना जाना सम्भव नहीं था। उनकी समझ में नहीं आ रहा था रेलवे को कोसें, या फिर कार वाले को। बहरहाल, वे वापस लौट गये। अब दोबारा गए कि नहीं यह तो नहीं मालूम।
दरअसल, पहले जलभराव के समय बगल में रेलवे के फाटक होकर दुपहिया वाहन चालक निकल जाते थे। लेकिन दुर्घटना के बचाव के चलते रेलवे विभाग ने यहाँ से निकलने का रास्ता पूरी तरह से बन्द कर दिया है। आईटीआई से बघार आने तक का एकमात्र रास्ता यही है। जैसे-जैसे बरसात बढ़ेगी यह मार्ग और दुर्लभ होता जाएगा। कारण एक ही है पानी निकलने का रेलवे ने कोई ठोस उपाय नहीं किया है, जो किया है वह कारगर साबित नहीं हो रहा है। अब रेलवे को लोगों की मुसीबतों से क्या लेना-देना। उसका उद्देश्य तो गेटमैनों पर हो रहे खर्च को बचाना था।