ब्यूरो रिपोर्ट:-धर्मेन्द्र कुमार कन्नौजिया
कुशीनगर:-जिला उद्यान अधिकारी श्रीराम ने बताया कि आम की फसल को सम-सामयिक हानिकारक कीटों से बचाने हेतु उचित समय पर प्रबन्धन किया जाय। माह दिसम्बर/जनवरी अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इस माह में गुजिया एवं मिज कीट को प्रकोप की सम्भावना रहती है, जिससे आम की फसल को काफी क्षति पहुॅचाता है।
उन्होने बतया गुजिया कीट (मैगो मिलीबग) इस कीट के बच्चे (निम्फ) तथा मादा वयस्क जमीन से निकल कर पेड़ो पर चढ़ते है और मुलायम पत्तियों, मंजरियो एवं फलों से रस चूसकर क्षति पहॅूचाते है। इसके शिशु कीट 1-2 मिमी0 लम्बे एवं हल्के गुलाबी रंग के चपटे तथा मादा वयस्क कीट सफेद रंग के पंखहीन एवं चपटे होते है। इनके द्वारा रस चूस जाने से पेड़ो के प्ररोह, पत्तियॉ तथा बौर सूख जाते है। तथा फल नही लगते हे। इसके साथ ही कीट द्वारा मधु रसाव करता है, जिससे पत्तियों /टहनियों पर काली फफंदी (सूटी मोल्ड) लग जाती है, फलस्वरूप आम की फसल को काफी क्षति पहॅुचती है। इस कीट से नियंत्रण हेतु बागों की गहरी जुताई/गुड़ाई की जाय तथा शिशु कीट (निम्फ) को पेड़ो पर चढ़ने से रोकने के लिए माह दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 30-50 से0 मी0 की उचाई पर 400 गेज की पालीथीन शीट की 25 सेमी0 चौड़ी पट्टी को तने के चारो और लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध कर पंॉलीथीन शीट के ऊपरी हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिए, जिससे कीट पेड़ो के ऊपर न चढ़ सके। इसके अतिरिक्त शिशुओ को जमीन पर मारने के लिए दिसम्बर के अंतिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्तर पर दो बार क्लोरीपाइरीफॉस (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारो ओर छिरकाव करना चाहिए। अधिक प्रकोप की दशा में यदि कीट पेड़ो पर चढ़ जाते है तो ऐसी स्थिति में 0.05 प्रतिशत कारबोसल्फान अथवा 0.06 प्रतिशत डायमेथोएट 2.0 मि0ली0 दवा को प्रति ली पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करे।
उन्होने बताया कि इसी प्रकार आम के बौर में लगने वाले मिज कीट मंजरियो, तुरन्त बने फुलो एंव फलो तथा बाद में मुलायम कोपलो में अण्डे देती है, जिसकी सूड़ी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहॅुचाती है। इस कीट से प्रभावित पुष्प गुच्छ व डंठल टेढे़ पड़ जाते है तथा वहॉ काले-काले धब्बे दिखाई देते है, फलस्वरूप छोटे-छोटे फल गिरने लगते है। तथा बौर सूख जाते है। इस कीट के नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि बागों की जुताई/गुड़ाई की जाय, इसके लिए फेनिट्रोथियान 50 ई0सी0 1.0 मि0ली0 अथवा डायमेथोएट 30 ई0सी0 2.0 मि0ली0 दवा प्रति लीटर पानी मे ंघोलकर बौर निकलने की अवस्था पर एक छिड़काव एवं आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।