सरवन कुमार सिंह की रिपोर्ट
लखनऊ। पश्चिम बंगाल से कानपुर आए मजदूर गुलू की दर्दभरी दास्तां सुनकर हर किसी की आंख में आंसू आ जाएंगे। इस कदर यातनाएं दी गईं जो उसके मन में डर बैठा गईं। खौफ भी ऐसा कि जब उसे भागने का मौका मिला तो भी न भाग सका। शनिवार को घंटाघर स्टेशन पर मौजूद गुलू अपनी टूटी-फूटी हिंदी में ठीक से यातनाएं भी नहीं बता पा रहा था पर उसके चेहरे पर खौफ और दुख का मंजर साफ देखा जा सकता था। साथ ही खुशी इस बात कि अब वह अपने घर जा रहा है।
गुलू ने बताया कि जब दबंग भूपेन्द्र उसे नागपुर से फतेहपुर लाया तो एक-दो दिन तो सब ठीक रहा। गुलू को घर जाने की जल्दी थी। उसने भूपेन्द्र के पास डेढ़ साल की जमापूंजी लगभग एक लाख रुपए जमा करवाए थे। भूपन्द्र पैसे देने से हर बार मना कर देता था। चौथे दिन जब गुलू से रहा नहीं गया तो उसने थोड़ा सख्ती से भूपेन्द्र से रुपए मांगे। बस यहीं से यातनाएं शुरू हो गईं।
गुलू के मुताबिक भूपेन्द्र ने उसे बेरहमी से पीटा। पीटने के बाद उल्टा कुंए में टांग दिया। इसके बाद तो मानो उसके लिए हर हर दिन कयामत वाला रहा। भूपेन्द्र रोज मारपीट कर गंदी गालियां देता। घर और खेतों पर काम करवाने लगा। गुलू समझ नहीं पा रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है। गुलू के मुताबिक उसने भूपेन्द्र के चंगुल से 3-4 बार भागने का प्रयास किया पर हर बार पकड़ा गया और उसके साथ ही यातनाएं भी बढ़ती गईं।
कुएं में उल्टा टांगने के बाद रस्सी को झटका देकर पानी में डुबोता और कहता था कि भागने की कोशिश की तो तुम्हारी लाश ही यहां से घर पहुंचेगी। इस दौरान कई बार उसके सिर पर गंभीर चोट मारी गई और इलाज भी नहीं कराया। खाने में नशीला पदार्थ तक खिला देता था जिससे उसकी इंद्रियां काम करना बंद कर देती थीं।
रोटी भी बमुश्किल मिलती थी
जो मेहनत वह करता उसका पैसा तो दूर की बात रोटी भी उसे बमुश्किल मिलती थी। कई बार ऐसा हुआ कि उसे आधे पेट से भी कम खाना दिया गया। तब वह पानी से पेट भरकर रात में सोता था।