राजकुमार दोहरे की रिपोर्ट
कालपी (जालौन)। अपने जीवन के सबसे बुरे समय से गुजर रहा ऐतिहासिक पौराणिक महत्व का नगर कालपी अपनी पहचान ही खो चुका है उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड प्रवेश द्वार तथा कृष्ण द्वैपायन महिर्षि वेद व्यास की जन्म स्थली और विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर लंका मीनार चौरासी गुम्बद जैसी ऐतिहासिक धरोहरों से देश विदेश में अपनी अलग ही पहचान रखने वाले प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर फिरंगियों को लोहे के चने चबवा देने वाले महानगर का आज जो हाल है उसे देखकर दुश्मन की भी आंखें नम हो जाएंगी।इसका कल क्या था आज क्या है देखें।
हम आपको कालपी नगर का इतिहास जो बहुत पुराना और गौरवशाली था समय समय जो जानकारी होती है बताता रहता हूं ।
इसके बारे में छोटी सी जानकारी और दे रहा हूं ध्यान दें आप भी जानें –
कालपी उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के यमुना नदी के तट पर बसा ऐतिहासिक नगर है।इस नगर का इतिहास चंदेल कालीन है। दसवीं सदी के मध्य में कालपी में चंदेलों ने अपना राज्य स्थापित किया था।चंदेल नरेश मदन वर्मा और परमार्दिदेव (१२वीं सदी) के समय कालपी एक समृद्ध शाली नगरी थी। १२वीं सताब्दी के अंत में इस पर कुतुबुद्दीन ऐबक का अधिकार हो गया। १५३५में इस पर मल्लावां के राजा हुशंगशाह ने अधिकार कर लिया।अकबर के समय में कालपी सरकार (जिला) का मुख्यालय बन गया था। अकबर के प्रसिद्ध दरबारी पंडित महेश दुबे जिन्हें बीरबल की उपाधि मिली थी कालपी के ही थे। मध्य काल में कालपी देश के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र के रुप में जानी जाती थी। यहां एक विशाल दुर्ग था जो अब समाप्त हो चुका है। कालपी की प्राचीन इमारतों में दुर्ग के अतरिक्त बीरबल का रंगमहल मुगलों की टकसाल और गोपाल मंदिर का भी उल्लेख मिलता है।
वैसे तो समय समय पर कालपी की धरोहरों के बारे में जानकारी दी है पर आज सूर्य मंदिर की संछिप्त चर्चा कर लेते हैं।पहला सूर्य मंदिर उड़ीसा के कोणार्क में दूसरा पाकिस्तान के मुल्तान में और तीसरा यू पी के कालपी में है।इसे भगवान श्री कृष्ण के पौत्र साम्भ ने बनवाया था दुर्वासा ऋषि के श्राप के बाद साम्भ कुष्ठ रोगी हो गए थे देवताओं की सलाह पर साम्भ ने यहां आकर यमुना किनारे कठोर सूर्य उपासना की थी जिसके बाद वह निरोग हूए थे।
दोस्तों क्या आज लगता है कि ये इतिहास इसी कालपी का है? आगे भी कालपी का इतिहास बताते रहेंगे फिलहाल आज इतना ही।