आत्माराम त्रिपाठी
2013 से 2020 तक की अवधि में देश भर में प्रोद्यौगिकी समर्थित पीडीएस सुधार लाने के लक्षित अभियान के तहत एन एफएस ए को लागू करने की तैयारी के दौरान सार्वजनिक वितरण व्यवस्था टीपीडीएस को आधुनिक बनाने और इसके परिचालन में पादर्षिता तथा कुशलता लाने राशनकार्डों और लाभार्थियों के डाटाबेस का डिजिटाइजेशन करने उसे आधार से जोड़ने,आपात्र फर्जी राशन कार्डों की पहचान करने, डिजिटाइज किए गए डाटा के दोहराव को रोकने तथा लाभार्थियों के अन्यत्र चले जाने/मौत हो जाने के मामलों की पहचान करने के बाद राज्यो केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने 2013से 2020तक की अवधि में देश में कुल लगभग 4,39करोड अपात्र/फर्जी राशन कार्डों को रद्द किया है। इसके अलावा एन एफ एस ए कवरेज का जारी किया गया संबंधित कोटा संबंधित राज्य /केंद्र शासित प्रदेशित राज्यों द्वारा नियमित रूप से एन एफ एस ए के तहत लाभार्थियों की सही पहचान के लिए उपयोग किया जा रहा है।
अब सवाल उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड किसने बनाएं इसके लिए जिम्मेदार कौन ग्राम प्रधान, कोटेदार, सचिव, आपूर्ति निरीक्षक य जिला प्रशासन सो निश्चित रूप से इनमें कोई न कोई तो दोषी है पर ऐसे लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई ? क्या इन पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी?जो नहीं हुई और सायत होगी भी नहीं।तो इस बात की अब गारंटी कौन लेगा की यह फर्जी राशन कार्ड पुनः नहीं बनेंगे । क्योंकी इन फर्जी राशन कार्डों को बनाने वाली यही मशीनरी है और इनकी पहचान करने वाली भी यही है पर उनको पहचान कर कार्रवाई करने में इतनी हिचक क्यो हो रही है जो इसके लिए जिम्मेदार है। और देश को दीमक की तरह खाएं जा रहें हैं।आज जांचें बैठाई जाती है जांच चलती है दोषी सामने आते हैं पर सवाल उठता है कि आजतक ऐसे कितने दोषियों को इन जांचों से मिली।वर्षो जांचें चलती है सरकारे बदलते ही यह जांचें ठंडे बस्ते में चली जाती है अगर नहीं गई तो न्यायालय पहुंची वहां तारीख दर तारीख मिलना शुरू हो जाता है इसके बाद निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक लंबा सफर जिसमें चलते चलते न्याय पाने वाले य दंड पाने वाले का पहले ही दम घुटने टेक देता है।ऐसी है हमारे देश की कुछ व्यवस्था लचीली जिसमें सभी उलझकर रह जाते हैं और फर्जीवाड़ा करने वाले एशो-आराम से रहते हुए अपने कार्य को अंजाम देने में लगे रहते हैं। और लगे रहेंगें।