शादाब जफर शादाब
मैं अपने गांव मैं जाने से यूं भी डरता हूं।
मेरा वो कच्चा मंका कब का गिर गया होगा।।
गुजरे कुछ वर्षों मे हमारे घर परिवारो की तस्वीर तेजी से बदली है एक मॉ बाप दस दस बच्चो को पाल देते है पर दस दस बच्चो से एक माता पिता को नही पाला जाता। जिन बच्चो को मॉ बाप मेहनत मजदूरी कर के डाक्टर, इन्जीनियर, आईएस, पीसीएस बना कर समाज में मान सम्मान देते है। उन्ही बच्चो में से अधिकतर बच्चे आज अपना घर परिवार बसा, हाई सोसायटी से जुडकर अपने गरीब मॉ बाप को धीरे धीरे भूलने लगते है। अपना सारा जीवन बच्चो पर निछावर करने वाले लोग बूढापे में खुद को उस वक्त और ठगा सा महसूस करते है। जब औलाद नौकरी के कारण अपने इन बूढे मॉ बाप को पडोसियो अथवा गॉव वालो के सहारे छोड कर शहरो में जा बसते है। और इन लोगो के मॉ बाप गॉवो कस्बो में पडे रोटी के एक एक निवाले को मोहताज हो जाते है हद तो तब हो जाती है जब मरते वक्त कोई अपना इन के मुॅह में पानी डालने वाला भी नही होता।