अनिल अनूप
केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने की घोषणा के साथ ही राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया है। नौ नवंबर को देश की शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय बेंच ने सर्वसम्मति से विवादित जमीन पर रामलला का हक माना था। साथ ही मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन अयोध्या में उपलब्ध कराने को कहा था। अब केंद्र सरकार ने ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ नाम से ट्रस्ट बनाने की घोषणा के बाद इसके सदस्यों की घोषणा कर दी है। अभी इसमें उ.प्र. सरकार और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल किये जाने हैं। नि:संदेह अब जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की राह खुल गई है तो हम सबका दायित्व बनता है कि हमारा लक्ष्य भव्य राम मंदिर के निर्माण के साथ ही देश में अतीत की कटुता को दूर करने का हो। श्रीराम जिन जीवन मूल्यों के लिये जाने जाते हैं, उनका अनुसरण करके राष्ट्रीय एकता, अखंडता व समरसता का मार्ग प्रशस्त किया जाये। हमें नहीं भूलना चाहिए कि बीसवीं सदी से चले आ रहे विवाद ने देश के सामाजिक सद्भाव व सांप्रदायिक सौहार्द को भारी क्षति पहुंचायी है। छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को गिराये जाने और उसके बाद हुई घटनाओं को बिसार कर हमें 21वीं सदी के भारत को समृद्ध करना चाहिए। ट्रस्ट निर्माण के बाद सरकार की भूमिका को विराम दिया जाना चाहिए और ट्रस्ट को कोशिश करनी चाहिए कि मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में राजनीतिक लाभ-हानि की बात न हो। मंदिर निर्माण को राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए। साथ ही पांच एकड़ पर बनने वाली मस्जिद के निर्माण में भी हमें सहयोग देना चाहिए ताकि पूरी दुनिया में संदेश जाये कि राम समरसता के प्रतीक हैं, संकुचित सरोकारों के नहीं।
नि:संदेह, इस बात के लिये भारतीय जनमानस की मुक्तकंठ से सराहना की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के नौ नवंबर को सर्वसम्मति से दिये गये फैसले को पूरे देश ने शिरोधार्य किया। वह भी ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया की निगाह भारत की ओर लगी थी। आज ऐसे वक्त में जब राजनेताओं द्वारा कई मुद्दों को हवा देकर ध्रुवीकरण के प्रयास किये जा रहे हैं, ट्रस्ट की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। मंदिर आंदोलन के दौरान उपजी तमाम कटुताओं को बीते दिनों की बात मान लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी जब फैसला सुनाया था तो कहा था कि यह फैसला राष्ट्रहित में जीत-हार से परे है। बीसवीं सदी से चले आ रहे विवाद के पटाक्षेप के बाद जब अब मंदिर निर्माण ट्रस्ट अस्तित्व में आ गया तो उम्मीद की जानी चाहिए कि शीघ्र ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू होगा। तमाम बाधाएं दूर होने के साथ ही केंद्र द्वारा वर्ष 1993 में अधिगृहीत 67 एकड़ जमीन भी अब ट्रस्ट को हस्तांतरित कर दी गई है। ट्रस्टियों की घोषणा कर दी गई है। कुछ और मनोनयन आने वाले समय में किये जाएंगे। जैसे ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट में एक दलित प्रतिनिधि को स्थान मिला है, वैसे ही किसी महिला को भी प्रतिनिधित्व मिले तो बेहतर होगा। अभी भी कई साधु-संत ट्रस्ट में शामिल होने के लिये अपनी दावेदारी जता रहे हैं, ऐसे में मंदिर आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाने वाले संतों की अनदेखी भी नहीं की जानी चाहिए। सचमुच आज सद्भाव और समरसता का नया काव्य लिखा जा रहा है। अब हमें शांतिपूर्वक आगे की ओर बढ़ना है। इसी से हमारी एकता-अखंडता संपुष्ट होती है और विकास का मार्ग इसी रास्ते होकर जाता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारतीय समाज ने जिस तरह परिपक्वता का परिचय दिया था, उम्मीद की जानी चाहिए कि मंदिर निर्माण के दौरान भी ऐसा ही भाव दर्शाया जायेगा। साथ ही सुनिश्चित किया जाये कि राम मंदिर राष्ट्रीय अस्मिता का ऐसा प्रतीक बने कि हर जाति, संप्रदाय और धर्म का व्यक्ति इससे जुड़ाव महसूस कर सके। इसमें मनोनीत न्यासियों की भूमिका बड़ी हो जाती है।