सरवन कुमार सिंह, मीडिया हेड, एनबीडी टीम
बृहस्पतिवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री ने साफ संकेत दिया है कि कोरोना की महामारी से लड़ाई सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं जीती जा सकती, हर नागरिक को राष्ट्र रक्षक की भूमिका निभानी है। ‘जनता कर्फ्यू’ की नई इबारत रच कर उन्होंने जनता की जिम्मेदारी की तरफ इशारा किया है कि धैर्य-संयम से हम एक दिन घर में रहें। जहां इस आग्रह के जैविक कारण हैं कि इस अवधि में वायरस का जीवन चक्र स्वत: समाप्त हो जाता है, वहीं हम मानसिक रूप से किसी ऐसी बड़ी चुनौती के लिये तैयार हो सकते हैं। नि:संदेह इस लाइलाज महामारी में एकांतवास व सुरक्षित सामाजिक दूरी ही फिलहाल कारगर दवा है। इटली का उदाहरण हमारे सामने है जहां कम जनसंख्या व हमारे मुकाबले बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के बावजूद स्थिति भयावह हो गई है। वहां इस वायरस से मरने वालों का आंकड़ा चीन से ज्यादा हो गया है। वजह यही है कि समय रहते वायरस के प्रसार को रोकने के लिये सार्वजनिक जीवन को नियंत्रित नहीं किया गया। ऐसे वक्त में भारत में इस वायरस के दूसरे चरण में हम सजगता, सावधानी व संयम से इसके प्रसार को रोक सकते हैं। यदि हम सचेत न हुए और भारत जैसे सघन जनसंख्या वाले देश में इस वायरस का प्रसार सामुदायिक स्तर पर हुआ तो देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। नि:संदेह ऐसी आपदाएं मानवता की परीक्षा की घड़ी होती हैं। हमसे मानवीय व्यवहार की अपेक्षा की जाती है, जिसके प्रति प्रधानमंत्री ने भी सचेत किया है कि संपन्न लोगों पर आश्रित व निचले तबके के कर्मचारियों को यदि समाज हित में छुट्टी करनी पड़े तो उनका वेतन न काटा जाये। वहीं हम जमाखोरी की प्रवृत्ति से बचें। देश में जरूरत के सामान की कोई कमी नहीं है, मगर विलासिता का कोई उपचार भी नहीं है। इसके बावजूद डिपार्टमेंटल स्टोरों पर खरीददारों की मारामारी व लंबी कतारें नजर आई हैं।
नि:संदेह, हमें उन लोगों के बारे में सोचना होगा जो रोज कुआं खोदकर घर चलाते हैं। यदि हम उनके हिस्से का जरूरी सामान अपने घर ले आएंगे तो उनकी दैनिक जरूरतों का निस्तारण कैसे होगा? ऐसे में हमें जमाखोरी की प्रवृत्ति से बचना होगा। यहां हमें वायरस के खिलाफ अपने योगदान के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। यह विडंबना है कि तमाम संभ्रांत लोग विदेशों से लौटकर बिना जांच कराये सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हो गये। कुछ जांच से भाग निकले तो कुछ अस्पतालों से। नि:संदेह यह देश व समाज के हितों पर कुठाराघात ही है। नि:संदेह विश्व स्वास्थ्य संगठन व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत सरकार की सजगता व सतर्कता को सराहा है, जिसके चलते कोरोना वायरस का प्रसार वैसा नहीं हुआ, जैसा कि इटली, ईरान व दक्षिण कोरिया में हुआ। मगर हमारी गैरजिम्मेदारी जहां सरकार के प्रयासों में पलीता लगा सकती है वहीं समाज व देश को भी जोखिम में डाल सकती है। नि:संदेह सदियों से गाहे-बगाहे महामारियां मानव जीवन के खिलाफ हल्ला बोलती रही हैं, मगर वही समाज अपना अस्तित्व कायम रख पाया है, जिसने बेखौफ होकर इसका मुकाबला किया। हमें डरने के बजाय जीवटता से इसका मुकाबला करना चाहिए। स्वच्छता, सजगता, जिम्मेदारी के साथ ही खुद को स्वस्थ रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारी जीवनशैली ऐसी हो कि हमारी जीवन शक्ति सशक्त हो। ध्यान रहे कोरोना वायरस ने उन लोगों को अपना शिकार बनाया है जो या तो उम्रदराज थे या पहले से ही अन्य रोगों से पीड़ित थे। हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली विकसित करने के साथ हमें संयमित व प्राकृतिक जीवन जीने का भी प्रयास करना चाहिए। हमें सिर्फ रविवार के जनता कर्फ्यू के बारे में ही नहीं सोचना है बल्कि जब तक कोरोना वायरस का खतरा पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता, समाज व राष्ट्र के हित में सामाजिक दूरी के मंत्र का पालन करना है।