आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
उत्तराखंड–लोक जीवन में असीम ऊर्जा सन्निहित होती है और स्व प्रेरणा का भाव भी । वह प्रकृति के साथ तदात्म्य भाव से जीता है । लोक जीवन में सृजन की आग होती है और नवोन्मेष का राग भी। इसीलिए वह सदा जीवंत होता है। लोक उत्सव धर्मी है और आनंद में निमग्न विश्वमंगल की कामना के साथ सदैव चरैवेति चरैवेति के संदेश का गान कर रहा है क्योंकि ठहराव मृत्यु है और लोक तमाम दुश्वारियों, बाधाओं, चुनौतियों से जूझते कभी मरता नहीं है। वह तो सदा सर्वदा नवल रूप धारण कर प्रकट होता रहता है और यह जूझने की शक्ति उसे प्राप्त होती है लोक देवताओं से।
भारतीय लोकजीवन में बहुत सारे लोक देवता प्रतिष्ठित और पूजित दिखाई पड़ते जिन्हें लोक ने स्वयं गढ़ा है और लोग सम्मुख खड़ा किया है। हम कह सकते हैं कि लोक देवता लोक के लिए लोक द्वारा लोक के अद्वितीय दैवीय विश्वास की स्थापना है।
ऐसे ही एक लोक देवता है गोला ज्यू, जो उत्तराखंड के गांव गांव में असीम श्रद्धा के साथ अर्चित हैं। गोला देवता उत्तराखंड के कुमायूं में न्याय के देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। एक किवदंती के अनुसार 10-11 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में एक गोरखा राजा द्वारा प्रजा पर बहुत अत्याचार किया जा रहा था जिसका विरोध और प्रजा की रक्षा गोला नामक एक चरवाहे द्वारा की जाती रही थी। राजा अपने राज्य का प्रसार नहीं कर पा रहा था क्योंकि गोला उसके मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में उपस्थित था। कहते हैं एक बार राजा ने धोखे से गोला की हत्या करवा दी । लेकिन इसके बाद राजा का संपूर्ण राज्य बिखर गया और वह नष्ट हो गया। इसे गोला का दैवी चमत्कार समझा गया और तभी से गोरा ज्यू पहाड़ी समाज में एक लोक देवता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। राम नरेश गौतम बताते हैं कि गोला देवता को उत्तराखंड के कुमायूं क्षेत्र में न्याय के देवता के रूप में जाना जाता है। जिन लोगों को कहीं भी इंसाफ नहीं मिलता वे लोग गोला देवता के मंदिर में अर्जी लगाते हैं और उन्हें न्याय मिल जाता है। शिक्षक एवं लेखक दिनेश कर्नाटक बताते हैं की जिन लोगों के झगड़े या वाद कोर्ट कचहरी में चल रहे होते हैं, वे गोला देवता के मंदिर में एक पर्ची में अपनी समस्या लिखकर कपड़े से बांधकर टांग देते हैं और समस्या का समाधान हो जाने पर एक घंटा /घंटी मंदिर में दान करते हैं। यहां घंटा न्याय के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
शैक्षिक दखल पत्रिका के संपादक महेश चंद्र पुनेठा अपने विचार रखते हुए कहते हैं कि लोक देवता वास्तव में समाज को जोड़ने का काम करते हैं। यहां किसी भी प्रकार के भेदों के लिए कोई जगह नहीं होती । लोक देवता सबके लिए हैं, सबके अपने हैं।
यहां यह भी उल्लेखनीय है की गोला देवता के मंदिर में किसी भी प्रकार की कोई पशु पक्षी की बलि नहीं दी जाती । यह उत्तराखंड का संभवत: एकमात्र मंदिर है जहां बलि नहीं होती । गोला देव का मुख्य मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है लेकिन कुमायूं क्षेत्र के दूसरे गांवों में भी मंदिर मिलते हैं। घोड़ाखाल स्थित मंदिर अपने आप में भव्य है। और पावन ऊर्जा से भरा हुआ प्रतीत होता है जो श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है।
यहां साल भर श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों का तांता लगा रहता है।
उत्तर प्रदेश से बांदा जिले से यहां घूमने आए प्रमोद दीक्षित एवं उनकी बेटी संस्कृति दीक्षित मंदिर में दर्शन कर अपने आप को धन्य समझ रहे हैं । प्रमोद दीक्षित ने बताया कि यात्रा में गोला देवता का दर्शन कर मन में असीम शांति का अनुभव हुआ है और न्याय के पक्ष में खड़े होने एवं आमजन के सरोकारों से जुड़ने के प्रेरणा मिली है। लोक देवता सदा सर्वदा समाज को प्रकाशित करते रहेंगे।