अनिल अनूप
“मेरे माता पिता दोनों ही अनपढ़ थे। हमारे पास एक बीघा खेत नहीं था। पिता जी दूसरे के खेत मे काम करते थे। आधा पेट भोजन मिलता था।
एक बार खेत का मालिक पिता जी को गाली बक दिया। पिता जी उसके सर पर पत्थर मार के उसका सिर फोड़ दिए। पुलिस पिता जी को पकडने आई। पिता जी घर से भाग गए। पिता जी जब घर से भागे तब वे 16 साल के थे। घर से भाग कर धनबाद चले गए वहाँ नमक के फैक्ट्री मे मजदूरी किए। कुछ दिन बाद माता जी को भी भिलाई अपने पास बुला लिए।
भिलाई मे मजदूरों की जरूरत थी गाँव से 14 लोगों को भिलाई बुलाए। 14 मे से 10 लोग गाँव वापस आ गए 4 लोग वहाँ टिके।
कुछ दिन के बाद मेरे पिताजी और 3 चाचा जी की वहाँ भिलाई स्टील प्लांट मे 195 रुपये महीने पक्की नौकरी मिल गई।
लगतार मेरे 5 भाई बहन खत्म होते गए कोई भी सन्तान 4 साल से ज्यादा नहीं जीती थी। फिर 6 नंबर पर मेरी बहन हुई। 7 नंबर मे मैं हुआ।
मै बहुत ही कमजोर हुआ 1 किलो 250 ग्राम जन्म के समय मेरा वजन था। एक सप्ताह बाद डॉ. मुझे ऑक्सीजन से बाहर निकालकर मेरे माता पिता को दे दिया।
मेरी माता जी कहती थी इसे क्या घर ले जाएं ये बचेगा ही नहीं और सब हंसेंगे। पिता जी बोले लेते चलो जैसे सब संतानो को फेंक दिए ऐसे इसे भी फेंक देंगे, अगर किस्मत मे होगा तो बच जाएगा।
मेरे जन्म के 2 साल बाद मेरे छोटे भाई का जन्म हुआ उसका दोनों पैर घुटने के नीचे से टेढ़ा था 5 साल तक प्लास्टर बंधा रहा। उसके 3 साल बाद मेरी छोटी बहन का जन्म हुआ। इस तरह हम 4 भाई बहनो ने प्रारंभिक शिक्षा भिलाई मे प्राप्त किए। मुझे याद है पिता जी को 300 रुपये महीने के मिलते थे घर का खर्चा नहीं चल पाता था।
बहुत गरीबी देखे
कपड़ों मे पैबंद लगा हुआ गठरी से साफ कपड़ा निकाल कर माँ पहनाती थी। मुझे याद है स्कूल भेजते समय मां एक दो रुपए का सिक्का देती थी और रुमाल मे पराठा और शक्कर बाँध कर देती थी और एक गाने के साथ बिदा करती थी “बेटा पढ़ो लिखोगे राजा बाबू बनोगे”!
मिडिल स्कूल पास करने के बाद 13 साल के उम्र मे मैं पिताजी से छुपके से सुबह 5 बजे से 7 बजे तक व्यायाम करने के बहाने न्यूज पेपर बेचने का काम कर लिया था। लगभग 100 पेपर उठाता था और सेक्टर 2 3, 5, 6, 7, 8 मे घर घर देता था, उसके बाद स्कूल जाता था। B Com फर्स्ट ईयर तक भिलाई जिला दुर्ग मे शिक्षा ग्रहण किया।”
जी हां यहां पर मैं आपको कोई काल्पनिक कहानी या किसी समाचार की भूमिका नहीं बताने जा रहा हूं बल्कि एक ऐसे श्रमजीवी इंसान को आपसे रुबरु कराने जा रहा हूं जिसने वाकई साबित कर दिया है कि “समझे कौन रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल, गुदड़ी में रखती चुन चुन कर बड़े कीमती लाल”
प्रहलाद गौतम नाम है इनका और पेशे से इंजीनियर हैं। एक विचित्र संयोग ही कहा सकते हैं कि एक तकनीकी क्षेत्र से जुड़े हुए व्यक्ति की प्रवृत्ति बिल्कुल ही अलग थलग दिखी। शून्य से शिखर की आधी यात्रा तय कर चुके गौतम कभी अपने अतीत को भूले नहीं लेकिन उसे याद कर इन्हें सदा प्रोत्साहन मिला न कि मायूसी। और इसी का नतीजा है कि यही वो शख्स है जिसने आज की सुपरहिट सेलीब्रिटी के रूप में जानी जाती डांसर सपना चौधरी को प्रमोट किया। यह सेवा भाव था उनका या प्रकृति की मौन प्रेरणा यह निश्चित कर पाना मुश्किल है लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि गौतम की कुशाग्र बुद्धि और निश्छल मन आज के समाज में विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रुपों से प्रताड़ित लोगों के लिए इनकी सेवा भावना किसी मणिकांचन संयोग से कम नहीं।
बालीवुड के करीब पहुंच कर भी गौतम ने उस दुनिया को आपने लायक नहीं समझा और उनकी भावना केंद्रित हो गई श्रमजीवी पत्रकारों की समस्या के इर्द-गिर्द। फिर क्या था, उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में किसी भी पत्रकारों को कोई भी समस्या हो , किसी पत्रकारीय संगठन को इसकी भनक लगे या नहीं, गौतम पत्रकारों की समस्या को अपने स्तर पर अपने साधारण साधनों के माध्यम निवारण कराते आ रहे हैं।
अब तक कमोबेश दो सौ पत्रकारों की समस्याओं का समाधान कराने वाले श्री गौतम न तो कोई संस्था चलाते हैं और न ही किसी संगठन के बल पर ये काम करते हैं। चाहे पत्रकार को किसी दबंगों ने प्रताड़ित किया हो अथवा किसी पुलिस वाले ने परेशान कर रखा हो, गौतम बारीकियों के साथ उस मामले की छानबीन कर फिर उचित स्थिति को परख कर उस समस्या का समाधान करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ते। इस कार्य में उन्होंने अभी तक कई कामयाबी के झंडे गाड़े हैं। चाहे इस कार्य में उन्होंने एक रुपए की राशि नहीं अर्जित की है लेकिन उनका कहना है कि, ” पत्रकारिता के आधुनिक दौर में ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकार आज एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें न तो कोई तनख्वाह मिलती है और ना ही जिस संस्थान से वे जुड़े हुए होते हैं वहां से ही कोई अर्थलाभ। उन्हें मिलता भी है तो सीजनल विज्ञापन पर आंशिक अर्थलाभ जो हर हाल में गुज़र बसर करने के लिहाज से शून्य होता है। इस परिस्थिति में ऐसे पत्र कर्मियों को कभी पुलिस की अभद्रता का सामना करना पड़ता है तो कभी अपराध जगत के मठाधीशों की प्रताड़ना का मुकाबला करना होता है। ऐसी स्थिति में उनको संभालने वाले भी कोई नहीं होते। इसलिए मैंने ऐसे पत्रकारों को कानूनी दायरे में मदद करने का प्रयास शुरू किया है।”
हालांकि गौरतलब है कि श्री गौतम के इस गतिविधियों की जानकारी धीरे धीरे देश के विभिन्न हिस्सों में बुद्धिजीवियों और नामचीन पत्रकारों के साथ नामचीन सामाजिक कार्यकर्ताओं को मिल रही है जो इनकी कार्यविधियां और योजनाओं से प्रभावित भी हुए हैं और सराहनाएं भी की है।
मैं बताना चाहता हूं कि गौतम की प्रकृति समाज सेवा के क्षेत्र में कुछ अलग करने की है जिसकी प्रेरणा उन्हें हमेशा अपने अतीत से ही अधिकतर मिलती आ रही है।
लेख का यह हिस्सा अभी पूरा नहीं किया जा सकता है इसलिए मैं इसके दूसरे भाग की प्रतीक्षा करने का अनुरोध अपने पाठकों से करना चाहता हूं।