शादाब जफर शादाब की रिपोर्ट
अपने वतन की मिट्टी से यूं तो सब को प्यार होता,तडप होती। हो भी क्यो ना ये वो मिट्टी होती है जिस की गोद मै वचपन जवानी ,यार दोस्तो की यादे जुडी होती। पर इन्सान दो रोटी की जुगत मै जब ना चाहकर भी इस मिट्टी से दूर होता है तो हफ्तो,महीनो वो छुप छुप कर अपने देस को याद कर के रोता है।
इकबाल अहसन सय्यद एडवोकेट की कहानी भी किसी फिल्मी स्टोरी और किसी फिल्मी हीरो से कम नही । जब नजीबाबाद के मोहल्ला जाब्तागंज निवासी नजीबाबाद नगर पालिका मुन्सिफ के पद को छोडकर गुजरात अहमदाबाद पहुचे तो कई दिनो तक रोते रहे। वतन की याद,दोस्तो की यादे ने इन्हे बहुत तडपाया। शुरूआती संघर्ष के दिन बेहद कडे गुजरे बिजली के खंम्बे के नीचे बैठ कर रात रात भर पढकर वकालत की पढाई के साथ साथ कोर्ट परिसर मै अरजिया टाईप कर के वकालत पूरी की । ये ही वजह है कि आज किसी भी बहाने से वो नजीबाबाद आ जाते है। पिछले दिनो अपनी मुंहबोली हिन्दू बहन की बेटी के लगन मै शरीक होने के लिये आप नजीबाबाद तशरीफ लाये तो उन से कुछ बातचीत हुई। आप अहमदाबाद मै लगभग सोलाह सालो से हिन्दू मुस्लिम एकता को समर्पित ऑल इंडिया कवि सम्मेलन ,मुशायरा कराते आ रहे है। वही कई गरीब परिवारो को आप के द़ारा महीने के राशन के पैकिट बिना पहचान बताये उन के घर पहुंचा दिये जाते है। गरीब बच्चो की स्कूल फीस, किताबे, कापिया, ड्रेस हर साल सय्यद साहब के द़ारा बिना पहचान के दे दी जाती है। नजीबाबाद से बेपनाह मोहब्बत करने वाले सय्यद साहब गुजरात की समाज सेविका पदमा जितेन्द्र बेन पटेल और सर सय्यद अहमद खॉ के नाम पर नजीबाबाद मै एक प्रवेश द्वार बनाना चाहते है वही अपनी पुश्तैनी जमीन पर सय्यद साहब एक बॉय और गलर्स कालेज की स्थापना करना चाहते है।