शशांक तिवारी
जो दूसरों के घर के चिरागों को हाथ पकड़कर लिखना पढ़ना सिखाते हैं आज उनकी ये हालत है?
कोरोना के कारण बंद चल रहे निजी स्कूलों के शिक्षकों की हालत बहुत ही दयनीय है। हालात ये है कि परिवार भुखमरी की कगार पर और करेंगे तो करेंगे क्या प्रबंधकों की मनमानी चल रही है। वेतन नही मिल रहा है। निजी विद्यालयों के शिक्षकों के हालत बहुत खराब है। न जाने कितने लाख शिक्षक चार महीने से वेतन का इंतजार कर रहे हैं।कोई दस हजार कमाने वाला है। तो कोई उससे कम इतनी सैलेरी भी अगर न मिले तो कितनी मुसीबत होती होगी। जरूर कुछ विद्यालय अमीर है लेकिन सारे विद्यालय एक जैसे नही है। अभिभावक विद्यालय और शिक्षकों को ही मिलकर रास्ता निकालना होगा। पूरी सैलेरी न मिले मगर कुछ तो मिले कई बार बोला,दिखाया कुछ हुआ नही। कुछ होगा नही उम्मीद है ।कुछ विद्यालयों के शिक्षकों के वेतन मिल गए होंगे। मुझे सबका पता नही पर अंदाजे से कह रहा हूँ । सरकारी विद्यालयों में ठेके पर रखे शिक्षकों का भी यहीं हाल है।
इन्हें निराशा से निकालना होगा। होता तो कुछ भी नही है फिर भी लिख दे रहा हूँ। कुछ लोग शुक्रिया बोलेंगे मेरी तारीफ करेंगे कुछ लोग बिना पढ़े कहेंगे कि मेरा भी लिख दीजिये जैसे मेरा पेज प्रधानमंत्री के सामने वीडियो स्क्रीन पर खुला है। उसके बाद और हजारों सौ लोग गाली देंगे आप सभी का स्वागत है। सोचिए इनमें से नब्बे फीसदी शिक्षक मुझे गाली देते होंगे लेकिन मैं इनका दर्द लिख रहा हूँ इन शिक्षकों को भी कितनी तखलिफ़ होती होगी कि जिसे गाली देते थे उसी से आवाज उठाने के लिए कह रहे हैं। सैलेरी से बड़ा होता है स्वाभिमान।
जब मेरी बात एक निजी स्कूल के शिक्षक से हुई तो उसने बताया कि मेरे जैसे और भी शिक्षक है। जिनको पेमेंट नही मिली है पर कोई शिक्षक पेमेंट के लिए नही बोल रहा है। बोले भी तो किसे संचालक जो कि सीधे धमकी देता है कि न पेमेंट देंगे न रखेंगे जो करना है कर लो और प्रिंसिपल से कहा तो कह रही हैं कि फीस आने के बाद पेमेंट मिलेगी । आगे बताया कि 20 से ज्यादा शिक्षक की पेमेंट रुकी हुई है।
मुझे ज्यादा फर्क इसलिए पड़ रहा है क्योंकि मेरे घर का आधा खर्च मेरे पेमेंट से ही चलता था। जो 2 महीने की मात्र लगभग 7000 होगी समझ नही आ रहा है क्या करूँ? कभी-कभी तो लगता है परिवार के साथ आत्महत्या कर लूं। अब इन शिक्षकों की हालत देख के यही लगता है जो दूसरों के घर के चिरागों को हाथ पकड़कर लिखना पढ़ना सिखाते हैं आज उनकी ये हालत है। देश प्रदेश की सरकारों को इनके बारे में सोचना चाइए। क्या देश के भविष्य को आगे बढ़ाने बालो के साथ ऐसा कब तक होगा। आखिर कब तक इन लोगों के बारे में सोचा जाएगा।