शायर देहरादून से अम्बर खरबंदा,इनआम रमज़ी व असलम खतौलवी जिगर अवार्ड 2020 से सम्मानित….
विशेष संवाददाता की रिपोर्ट
ये कुर्सी हैं बदलने मैं ज़रा सी देर लगती है…..
बज्म ए जिगर नजीबाबाद की ओर से मेहमान शायरों के नजीबाबाद आने पर एक मुशायरे व सम्मान समारोह का आयोजन मौहल्ला मुगलूशाह में अबरार सलमानी के निवास पर किया गया. देहरादून से आये ओमप्रकाश अम्बर खरबंदा,इनआम रमज़ी,व असलम खतौलवी को बज़्म ए ज़िगर नजीबाबाद की ओर से शादाब जफर शादाब,मौसूफ वासिफ वह तैय्यब जमाल ने जिगर अवार्ड 2020 से शॉल ओढ़ाकर कर व प्रतीक चिह्न प्रदान किया गया, वहीं संस्था की ओर से उस्ताद शायर महेंद्र अश्क की ओर से पगड़ी बांध कर संस्था का अध्यक्ष मनोनीत किया गया.
शायर अम्बर खरबंदा ने खूबसूरत नात ए पाक से मुशायरे का आगाज़ करते हुए कहा..
ताजदारे-हरम कौन है आप हैं
रहनुमा-ए-उमम कौन है आप हैं…
ग़ज़ल के दौर का आगाज़….सय्यद अहमद ने कहा
तामें लोगों से बैर करता रहा हूं, खुदा तों फिर भी मेरे साथ ख़ैर करता रहा.
– डा़ मुहम्मद तैय्यब जमाल ने यूं किया..
कैसी सफाई हाथ की यारों दिखा गय.रस्सी के एक सांप से सब को डरा गया.
असलम खतौलवी ने कहा..
रवायतों से, अना से,लकब से सब से परे,चलो चलें कही हद्दे नसब से सब से परे.
शायर शादाब जफर शादाब ने कहा..
सियासत की बुलंदी पर यंकी इतना नहीं करते,ये कुर्सी हैं बदलने मैं ज़रा सी देर लगती है.
देहरादून से आये शायर ओमप्रकाश अम्बर खरबंदा ने कहा..
बेहिसी इस शहर पर ऐसे मुसल्लत हो गई.हादिसा दर हादिसा हो चौंकता कोई नही.
अकरम जलालाबादी ने कहा..
मेरे रफीक जिन को मैं सबसे अज़ीज़ था,कर के सुपुर्दो ख़ाक वो जाने लगें मुझे.
सुहेल शहाब शम्सी ने कहा..
तुम ना तूफा से डरो मंजिलें पाने के लिए.हौसला चाहिए कुछ कर के दिखाने के लिए.
कार्यक्रम का संचालन कर रहे मौसूफ अहमद वासिफ ने उम्दा गजल पेश करते हुए कहा…..
वहीं गुज़रा ज़माना चाहता हूं,थक गया हूं मैं गांव जाना चाहता हूं.
देहरादून से आये शायर इनआम रमज़ी ने कहां.
पत्ता हूं और शाख से टूटा हुआ हूं मैं,ले जायेंगी ना जाने कहां ये हवा मुझे.
कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे शायर महेंद्र अश्क ने कहा..मेरे होंठों से नोच लो अल्फ़ाज़ इन मंजरकशी नहीं होगी.तुम मेरे सामने मत आना,मुझ से अब शायरी नहीं होगी.
इन के अलावा अब्दुल रज्जाक सलमानी,नदीम साहिल, उबैद अहमद,काज़ी विकाउल हक, शकील वफ़ा, साज़िद कोटद्वार, नौशाद अहमद शाद आदि ने खूबसूरत कलाम पेश किये.कार्यक्रम को सफल बनाने में अबरार सलमानी, नफीस सैफी,साजिद सलमानी, अल्ताफ़ रज़ा खां का विशेष योगदान रहा,संचालन मौसूफ़ अहमद वासिफ ने व अध्यक्षता महेंद्र अश्क ने की.