हंसराज हंस
यह बड़ा ही पेचिदा सवाल हमेशा से ही रहा है। की जब बच्चा पहली बार विधालय मे आता है तो शिक्षक उसके साथ कैसे काम शुरू करे। विशेषकर भाषा में तो- पढ़ना-लिखना।
गणित में बुनियादी क्षमताओं का विकास कैसे करे।
क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि विद्यालय का मुख्य काम ही यह होता है। बच्चों को लिखना व पढ़ना आ जाए।
गणित मे अंक पहचान ,गिनती,जोड़,
घटा, गुणा व भाग की संक्रियाऐ अच्छी तरह से करना सीख जाए।
इस बारे में कुछ तरीके जो मैंने अपनाएं है।और उनके पीछे मेरे जो तर्क है।उनको में इस आलेख मे प्रस्तुत कर रहा हूं।
*कक्षा एक के बच्चों में भाषा और साक्षरता कौशल विकसित करने के लिए मेरे द्वारा किए जा रहे हैं कार्य*।
1-शुरूवात में बच्चों से शिक्षक को खुब बातें करनी चाहिए।
तर्क- संवाद करनेबच्चो में बैठा विधालय व मास्टर जी का भय,डर कम ही नही होता बल्कि बच्चों का शिक्षकों के प्रति विश्वास भी बढ़ता है।जो मै काम शुरू करने से पहले बहुत जरुरी मानता हूं।
2-बच्चों की घर की भाषा (मातृभाषा) का सम्मान करना।
तर्क- बच्चों को बहुत अच्छा लगता है।शिक्षक के साथ उनका जुड़ाव बढ़ता है।
3-भाषाई खेल करवाने से भी बच्चो की भाषा समृद्ध होती है।
तर्क- पक्षियों, पशुओं की भाषा बोलना-बुलवाना,तुक वाले शब्द-नल जल कल हल
जाला नाला ताला।
4- सबसे पहले बच्चों को अपना नाम के लिखना पढ़ना सिखाना।
तर्क-बच्चो की रूचि उत्साह आनन्द आता है।
5-पेयर टीचिंग-आपस मे बच्चे जल्दी व अच्छा मन से सीखते है।
तर्क- स्वभाव से परिचित,डर नही, विश्वास होता है।
6-बच्चो को कक्षाकक्ष की छोटी-छोटी जिम्मेदारी देकर उनके अनुभव को काम मे लेना भी सीखना है।
तर्क- बच्चों के काम की कक्षा में,सुबह की सभा में,उनके अभिभावकों को बताकर प्रशंसा करना चाहिए।
इससे बच्चे विधालय आने व काम मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लग जाते है।
7-बच्चो को बोलने के,लिखने के, खिलौने बनाने के,चित्र बनाने के,रंग भरने के बहुत सारे मौके देने ही चाहिए।
तर्क- इन सब कामों मे बच्चे अपने मन के भावों, विचारों, अनुभवों को बहार निकालते है।
8-बालगीत करवाकर भी हम बहुत कुछ बच्चों को सीखा सकते है।
तर्क- बच्चे शिक्षक के साथ हाव-भाव से बालगीत करते तो आनंद आता है।
और फिर जब वह स्वयं सुनाने लगता है तो उसमे आत्मविश्वास पैदा होत है।
9-छोटे बच्चों को ज्यादा आदेश निर्देश न देकर स्वयं करके बताएं।तो अच्छा रहता है।
तर्क- आदेश देने से उनमे खौफ पैदा होने लगता है।फिर वह बहाने करना शुरू कर देते है।
10-अंतिम और महत्वपूर्ण बात कभी भी छोटे बच्चों की गलतियों पर ज्यादा ध्यान नही देना चाहिए।जैसा भी बोल रहे है,लिख रहे है,काम कर रहे है,बस उसमे से अच्छाई को ढुंढना और उसके माध्यम से ही गलती को सुधरवाना चाहिए।
तर्क- डांटने फटकारने,व गलतियों को बार बार बताने से वह अपने को तिरस्कृत समझकर काम करना ही बंद कर देते है।उनमे डर बैठ जाता है।
*बच्चों को बुनियादी गणितीय कौशल विकसित करने के मेरे अनुभव*।
1-दैनिक जीवन के गणितीय सवालो, अनुभवों पर बातचीत। जैसे 1-आपके घर में कुल कितने जानवर है?
2-उनमे से दुध कितने देते है?
3-दुध देने वाले ज्यादा है या कम?
4-आपके कुल कितने कमरे है?
5-सभी दुध देने वाली जानवरों का कुल कितना दुध होता है?
6-एक लीटर दुध को किस कितने रुपयों में बेचते है।
7-एक लीटर का मूल्य 50रू है तो आधा लीटर का कितना होगा?
8-परिवार मे कुल कितने सदस्य है?
9-आपके कितने भाई बहिन है?
10-आपके घर मे गोल आकृति वाली कौन-कौनसी चीजें है।नाम बताओ।
तर्क- इस तरह के सवालों पर शुरूआत तौर पर बच्चों से बात करने से गणित का भय कम होता है।और उनको गणित काम का विषय लगने लगता है।
2-कक्षाकक्ष मे उपलब्ध मूर्त वस्तुओं से अंक व गिनती की शुरुआत। जैसे कुर्सी- 1 खिड़की-2
पंखे-3
कमरे की दीवारें-4
हाथ की अंगुलियां-5
चाॅक के टुकड़े-6
आलमारी-7
पंखे की पंखुड़ियां-8
जालियां-9
दोनों हाथों की अंगुलियां-10
तर्क-गणित की अमूर्त प्रकृति होती है। इसलिए हमे मूर्त से अमूर्त की चलना चाहिए।
बच्चे उत्साह के साथ बातचीत करके खुब सहभागिता निभाते हैं।
3-अंकों,गिनती, जोड़-घटा के बालगीत करवाकर। जैसे
एक राजा की बेटी
दो दिन से बीमार पडी।
तीन संतरी दौड़े आये।
इस तरह आगे बढाते हैं।
एक पेड पर एख बडा कबुतर बैठा।एक ओर आ गया तो कितने भाई कितने।
पांच बडे कबुतर बैठे पेड़ पर।एक उड गया तो कितने बचे।
तर्क- इस तरह के गतिविधियों मे बच्चों को आनंद आता है।और सीखना सीखाना सहज हो जाता है।
4-कंचे,कंकर, लकड़ी के टुकड़े आदि से जोड़ बाकी की अवधारणा समझाना।
तर्क- गणित मे बच्चों को मूर्त वस्तुओं से सीखना मुझे जरूरी लगता है।
बच्चों की जोड बाकी गुणा भाग की अवधारणा अच्छी तरह समझ मे आती है ।
5- पुरा काम 1-10तक का साथ साथ ही करवाना जैसे अंक पहचान,जोड घटा गुणा भाग आदि।
तर्क- बच्चों को जब 1-10तक अंक पहचान होती हैं।और 10 दहाई के बारे में पुरी तरह ठहरकर बच्चों के साथ काम करते हैं।तो बाद में उनको समस्या नही आती है।साथ ही बच्चों का आत्मविश्वास भी बढ़ता जाता है।कि मुझे जोड बाकी गुणा भाग सब आने लग गये है।यह बात उसको आगे सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है।