रमेश कुमार जैन की रिपोर्ट
शहीद हवलदार की पत्नी रुम्पा रॉय के अनुसार, मंगलवार सुबह से ही लद्दाख की घाटी से बुरी खबरें आनी शुरू हो गई थीं, जहां उनके पति की तैनाती थी। इसके बाद से उनके पति का नंबर भी नहीं लग रहा था। दिनभर इसी इंतजार में रही कि किसी तरह एक बार बिपुल से बात हो जाए, लेकिन संभव नहीं हुआ। रुम्पा बेहद घबराई हुई थीं। रात करीब 10 बजे वह सो गईं।
साढ़े 11 बजे के आसपास एक फोन आया। वह फोन लद्दाख से कमांडिंग ऑफिसर का था। बिपुल का नाम लेते हुए रुम्पा से उनका रिश्ता पूछा। कमांडिंग ऑफिसर ने रुम्पा से सीधे बात करने से मना कर दिया। रुम्पा ने मकान मालिक रेणु अरोड़ा के बेटे निखिल अरोड़ा से बात कराई। कमांडिंग ऑफिसर ने निखिल को बताया कि बिपुल रॉय अब नहीं रहे। वह देश के लिए शहीद हो गए हैं। इसके बाद निखिल ने रुम्पा की बात सीओ से कराई। सीओ ने उन्हें यह भी बताया कि पार्थिव शरीर पैतृक गांव जलपाईगुड़ी में भेजा जाएगा।
आभास जरूर था कि कुछ गलत न हो जाए। इसे लेकर सुबह से ही चिंता में डूबी हुई थी। पूरे दिन उनसे मेरा कोई संपर्क नहीं हो सका। शाम को जब भारत के 20 जवानों की शहीद होने की खबर टीवी चैनलों पर आई तो घबराहट और बढ़ गई। रात साढ़े 11 बजे लद्दाख से कॉल आई। कमांडिंग ऑफिसर ने फोन पर बताया कि बिपुल रॉय इस देश के लिए शहीद हो गए हैं।’ वीरगति को प्राप्त हुए सेना के हवलदार बिपुल रॉय की पत्नी रुम्पा रॉय ने यह बताया।
रुम्पा के अनुसार, उनके पति बिपुल मेरठ आर्मी की सिग्नल कोर में दो साल पहले तैनात हुए। फिर लद्दाख चले गए। नौ महीने पहले उन्होंने सरस्वती विहार से कुंदन कुंज में मकान शिफ्ट किया। इस दौरान बिपुल दो महीने तक यहीं रहे। रुम्पा बताती हैं कि बिपुल से अक्सर फोन पर बातचीत होती थी। कई बार उनका फोन नहीं लगता था तो चिंता बढ़ जाती थी। बिपुल ने उन्हें बताया था कि भारत-चीन सीमा पर हालात अच्छे नहीं हैं लेकिन यह भी कहा था कि सब ठीक होगा। घबराने की कोई बात नहीं हैं।