अनिल अनूप
चीन के वुहान शहर से फैलना शुरू हुआ कोरोना वायरस दुनिया के दो दर्जन से अधिक देशों में दस्तक दे चुका है। केरल में कई मामले प्रकाश में आने के बाद इसे राजकीय आपदा घोषित किया जा चुका है। कहीं न कहीं दिसंबर में इसके संक्रमण के मामले प्रकाश में आने के बाद चीनी प्रशासन ने जैसी सुस्ती दिखायी, उसके चलते यह घातक रोग पूरी दुनिया में फैला है। अब डब्ल्यूएचओ ने इसे स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है। अमेरिका समेत कई देशों ने चीन से आने वाले लोगों पर प्रतिबंध लगाया है। संयोग से भारत के सैकड़ों छात्र वुहान में ही अध्ययनरत थे, आपदा के बाद उन्हें एयरलिफ्ट कराकर सेना और अन्य संगठनों की सघन निगरानी में रखा जा रहा है। अन्य वायरसजनित रोगों की तरह कोरोना के भी किसी जानवर से फैलने की आशंका जतायी जा रही है। पहले समुद्र से मिलने वाले खाद्य पदार्थों को कारक बताकर इस पर रोक लगायी थी, मगर अभी इसके प्रमाण नहीं मिले हैं। यूं तो चीन में 2002 में भी सॉर्स नामक संक्रामक रोग फैला था और आठ हजार के करीब लोगों के संक्रमित होने के बाद 774 लोगों की मौत हुई थी। दरअसल, चीन में सघन आबादी के चलते लोग जल्दी ही जानवरों के संपर्क में आ जाते हैं, जिससे ऐसे रोगों की फैलने की आशंका बनी रहती है। दरअसल, चीन में मांसाहार शृंखला में ऐसे जीव भी शामिल हैं, जो अन्य समाजों में वर्जित माने जाते हैं। बहरहाल, चीन में कोरोना का प्रकोप भारत के लिए भी बड़ा सबक है कि दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश यदि संक्रामक रोगों के सामने लाचार है तो भारत को ऐसी चुनौती से निपटने के लिए दूरगामी रणनीति अपनानी होगी। सिर्फ गाल बजाने मात्र से समस्याओं का निराकरण संभव नहीं है।
दरअसल, असली चुनौती यह है कि इस नये संक्रामक रोग के बारे में न तो पर्याप्त जानकारी है और न ही कारगर उपचार। हालांकि, वैज्ञानिकों ने इसे सॉर्स शृंखला की कड़ी माना है, मगर इसकी वैक्सीन आने में कुछ वक्त लगेगा। दूसरे इस रोग के लक्षण सामान्य बुखार व खांसी जैसे हैं, इसलिए जल्दी इसकी विभीषिका का अंदाजा नहीं हो पाता। चीन में साढ़े चार सौ से अधिक लोगों के मरने और बीस हजार से अधिक के संक्रमित होने से इसकी भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता। ऐसे में बचाव में ही उपचार की रणनीति अपनायी जा रही है। हुबेई प्रांत में जिस तरह संचारबंदी की गई है, उससे पता चलता है कि चीनी सरकार सख्ती से सामाजिक संचरण को रोक रही है ताकि इस रोग को फैलने से रोका जा सके। भारत में भी इसी तरह वार्ड बनाकर संक्रमित लोगों को अलग रखा जा रहा है ताकि इस रोग का विस्तार रोका जा सके। यह रोग व्यक्ति से व्यक्ति को फैलता है। सिरदर्द, बुखार, सूखी खांसी आदि के बाद निमोनिया जैसे लक्षण उभरते हैं, जो कालांतर में जानलेवा साबित होते हैं। यही वजह है कि चीन समेत पूरी दुनिया में लोग इस वायरस के चलते दहशत में हैं क्योंकि अभी तक इसका कारगर उपचार संभव नहीं हो पाया है। एक हकीकत यह भी है कि कोरोना वायरस उन लोगों पर हावी हुआ है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी या वे पहले से ही किसी रोग से पीड़ित थे। यह भारत के लिए भी खतरे की घंटी है कि आने वाले समय में इस तरह के नये वायरसों से मुकाबले के लिए तैयार रहे। देश में चिकित्सा अनुसंधान को विस्तार देने और नये रूप बदलकर आ रहे वायरसों से निपटने के लिए कारगर पहल करना जरूरी है। आग लगने पर कुआं खोदने वाली प्रवृत्ति से सत्ताधीशों को बचना चाहिए। निकट भविष्य में मानवता ऐसे संकटों से दो-चार न हो, इसके लिये वैश्विक स्तर पर साझा प्रयासों की जरूरत है। यह विडंबना ही है कि आज चिकित्सा अनुसंधान निजी कंपनियों के कारोबार का हिस्सा है, जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ मुनाफा कमाना ही है।