नैनीताल : हिमालयी इतिहास के विशेषज्ञ कुमाऊं विवि भूगोल विभाग के प्रोफेसर रघुवीर चंद नहीं रहें । बीती रात उनकी तबियत बिगड़ी तो परिजन घर के समीप ही रैमजे अस्पताल ले गए थे। वह कैंसर से पीड़ित थे। वह अपने पीछे पत्नी मीरा, विवाहित बेटी अदिति व सुदिति को छोड़ गए हैं। उनका लंबे समय से उपचार चल रहा था। वह दो दिन पहले ही दिल्ली से लौटे थे। उनके निधन से विवि के प्राध्यापक, कर्मचारियों में शोक छा गया है।
मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले के सेरी गांव निवासी चंद ने हाईस्कूल देवलथल से किया जबकि इंटर जीआईसी पिथौरागढ़ से। उन्होंने 20 किमी रोज पैदल चलकर पढ़ाई की। पीजी कॉलेज पिथौरागढ़ से भूगोल से एमए किया और गोल्ड मेडलिस्ट रहे। 1978 में उनकी नियुक्ति कुमाऊं विवि में हो गई थी। प्रो चंद ने भूटान में ब्रोकपास वाटरशेड मे पीएचडी की। वहां प्राध्यापक भी रहे। पहाड़ संस्था की ओर से आयोजित अस्कोट आराकोट अभियान में प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो शेखर पाठक के साथ हिस्सा लिया।
कैलास मानसरोवर क्षेत्र समेत हिमालयी क्षेत्र के शोध में अनेक छात्रों को पीएचडी प्रदान की। वह पिथौरागढ़ में अपने क्षेत्र के पहले प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। प्रसिद्ध भूगर्भ विज्ञानी प्रो खड़क सिंह वल्दिया के साथ भी काम किया। पहाड़ संस्था ने उनके अध्ययन पर किताब भी प्रकाशित की है। उनके निधन पर कुलपति प्रो एनके जोशी, डीएसबी के पूर्व अधिष्ठाता प्रो भगवान सिंह बिष्ट, प्रो शेखर पाठक, प्रो गिरधर नेगी, प्रो पीसी तिवारी, प्रो सतपाल सिंह बिष्ट, प्रो अनिल जोशी, डॉ ज्योति जोशी, प्रो एलएम जोशी, प्रो ललित तिवारी, प्रो जीत राम, प्रो सावित्री जंतवाल, प्रो नीता बोरा शर्मा, प्रो चंद्रकला रावत, प्रो एचसीएस बिष्ट समेत अन्य प्राध्यापकों ने शोक जताते हुए विवि के लिए अपूरणीय क्षति करार दिया है।