शशांक तिवारी की रिपोर्ट
लखनऊ– पत्रकार शब्द सुनते ही लोगों को प्रसन्नता महसूस होती है । लोगों का राहत महसूस होती है क्योंकि पत्रकार सच्चाई दिखाते हैं। पर पत्रकार सच्चाई की तो बात दूर कुछ पत्रकार कानून को मानते ही नही खुद ही कानून को हाथ में ले लेते हैं। इसका ताजा उदाहरण लखनऊ में देखने को मिला ।
जब एक पत्रकार अपनी गाड़ी लेके दवा लेने गया। तो बालागंज चौराहे पर पहले से घात लगाए बैठे कुछ पत्रकारों ने रोक लिया व उनकी पत्रकार आईडी छीन ली और कार में लगे इस्टीकर निकाल लिए। क्या पत्रकार को ऐसा बर्ताव करना उचित होता है? या आप इसकी सूचना पास के थाने में देकर कार्यवाही करा सकते हैं? पर नही, उनको तो कानून से डर नही लगता कानून का मजाक बनाना अच्छा लगता है। कानून को हाथ मे लेने का हक किसने दिया है । और अगर कोई सच्चाई बताये तो कहेंगे कि हम पत्रकार कम गुंडे ज्यादा है। और जब कोई पत्रकार कहे कि ऐ”शब्द प्रयोग न करें” तो उस पर झूठा इल्जाम लगा दो ? यही पत्रकारिता है क्या?
अगर ऐसी पत्रकारिता करनी है तो उन पत्रकारों के खिलाफ आवाज उठायी जाए। ऐसे समाज को गलत रास्ते पर लेने जाने वाले पत्रकारों के खिलाफ कार्यवाही की जाए और सभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया मालिको से अपील है ऐसे पत्रकारों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाए जब तक आप कार्यवाही नही करेंगे इनका धंदा फलता फूलता रहेगा और समाज मे पत्रकारिता को व चैनल को बदनाम करते रहेंगे ऐसे पत्रकार और इन जैसे पत्रकारों के ऊपर शिकंजा कसा जाएगा तो मीडिया के ऊपर इन पत्रकारों ने जो धब्बा लगाया है अगर शिकंजा नही कसा तो ये उस धब्बे को बदनामी में बदल देंगे।