सरवन कुमार के साथ कमलेश चौधरी की रिपोर्ट
सोहरामऊ (उन्नाव )। नौकरी और जिम्मेदारी दोनो एक सिक्के के दो पहलू है जिसका एक दूसरे के बिना अस्तित्व अधूरा है । लेकिन आज के दौर मे अगर किसी को नौकरी वो भी सरकारी नौकरी मिल जाए तो अक्सर वो उस पद के अहंकार मे पद की जिम्मेदारी को भूल जाते हैं । अक्सर सरकारी सेवकों पर लापरवाह के अलावा न जाने मिलते जुलते कितने ही आरोप आसानी से फिट हो जाते हैं । इस परिभाषा से बिल्कुल अलग हम आज एक साधारण सरकारी पद पर पदासीन व्यक्तित्व का परिचय कराना चाहते हैं ।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर जनपद उन्नाव, सोहरामऊ प्राथमिक विद्यालय है। इस विद्यालय को जिला के जिलाधिकारी ने गोद भी ले रखा है । इस विद्यालय की चाहे व्यवस्था हो या रखरखाव; शिक्षकों की कर्त्तव्य निष्ठा हो या बच्चों का अनुशासन हरेक दृष्टि से यह विद्यालय किसी “माडल महाविद्यालय” की टक्कर से कम नही।
सिर्फ किताबी ज्ञान ही नही यहां व्यावहारिक शिक्षा की स्पष्ट स्थिति हरेक बच्चों मे झलकती है।
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका स्नेहिल पाण्डेय स्वयं भी एक संस्थान से कम नही। उनकी निश्छल सेवा और समर्पण ने इस विद्यालय को न सिर्फ राज्य मे बल्कि देश मे एक मिशाल के रूप मे कायम करने मे कोई कसर नही छोडी है ।
अमूमन सरकारी स्कूलों के बारे मे आम आदमी की धारणा बन गई है कि यहां की शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण नही होती। लेकिन इस विद्यालय मे एक बार आने भर से यह धारणा बदल सकती है । जहां बच्चे कदम कदम पर शिक्षित होते हों वही सही मायने मे “विद्यालय” कहला सकता है।
विद्यालय परिसर मे जगह जगह व्यवस्थित रूप से अलग अलग लगे पेड पौधे निश्चित रूप से पर्यावरण संरक्षण का पैगाम तो दे ही रहे साथ ही उन पेडों पर चस्पा किए छोटे छोटे उपदेश और संदेश भी बच्चों की शैक्षणिक गुणवत्ता को व्यावहारिक मजबूती प्रदान करने का सशक्त माध्यम बना हुआ है । इन तमाम कार्यों के पीछे योजना भले ही सरकारी हो लेकिन सोच विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती पाण्डेय की है । चाहे बच्चों का रीडिंग रूम हो या प्ले ग्राउंड, सफाई व्यवस्था हो या शिक्षकों की कर्त्तव्य परायणता आपको सबका ईमानदार स्वरूप दिख सकता है इस विद्यालय मे।
पाण्डेय से जब इस संबंध मे हमारे संवाददाता ने सवाल किया तो उनका जवाब था ” हमे योजनाबद्ध तरीके से काम करते हुए अगर अपनी मानसिकता को अपनी जिम्मेदारी पर केंद्रित करने की आवश्यकता है । हमे सरकारी सहायता दी जाती है विद्यालय के विकास के लिए तो हमे उसको सुनियोजित तरीके से उसका कार्यान्वयन करना चाहिए । हम अपने विद्यालय मे इसपर यह सोच कर ध्यान देते हैं कि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है; तभी तो हमारे बच्चों का सर्वांगीण विकास संभव है ।”
स्नेहिल पाण्डेय के अनुसार सरकार के सभी उच्च स्तरीय अधिकारी का ध्यान हमेशा इस विद्यालय ने आकर्षित किया है । इसका कारण यह है कि हम अपने विद्यालय को सिर्फ कर्मक्षेत्र ही नही मानते बल्कि हमारा मानना है कि प्राथमिक शिक्षा स्तर से ही हमारा उद्देश्य बच्चों को ईमानदार माहौल के साथ सच्ची व्यवस्था सुंदर व्यवहार के साथ बच्चो को दिखाएंगे तो आप समझ सकते हैं उनकी मानसिकता भी सुंदर और सुदृढ होगी।
बताना होगा कि इस विद्यालय को जिला प्रशासन के अलावा राज्य स्तर से भी विभिन्न कारणों से पुरस्कृत भी किया जा चुका है । इस विद्यालय की चर्चा लोग उदाहरणों मे करते हैं ये किसी उपलब्धि से कम तो नही !