आत्माराम त्रिपाठी
कोविड-19 को भूमंडलीकृत विश्व की पहली महामारी बताने वाले स्नोडेन ने पिछले दिनों एक समाचारपत्र को दिए इंटरव्यू में कहा कि उन्हें अपनी किताब के लिए शोध करने के दौरान ही कोई महामारी फैलने का आभास हो गया था, लेकिन यह इतनी जल्दी फैलेगी, यह नहीं सोचा था। उनका कहना है कि जिस तरह की दुनिया हमने बना रखी है उसमें रोगाणुओं का विस्फोट कभी भी हो सकता था।
19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने मुंह और मलद्वार से होने वाले संक्रमण के हालात पैदा किए, जिस कारण हैजा और टायफायड जैसी बीमारियां फैलीं। लेकिन मौजूदा सदी में बढ़ती जनसंख्या, फैलते महानगरों और पर्यावरण की कीमत पर हो रहे लोलुपतापूर्ण विकास ने कोरोना के लिए जमीन तैयार की है। जैव विविधता और वन्य जीवों के आवास नष्ट करके हम उनकी बीमारियों के भंडार तक पहुंच गए। उनके दायरे में इंसानी घुसपैठ ने ही हाल के दिनों में सार्स, एवियन फ्लू, इबोला और मर्स जैसी बीमारियां पैदा की हैं।
आज चौबीसों घंटे हवाई सेवा जारी रहती है। नतीजतन जो बीमारी सुबह जकार्ता में होती है वह शाम तक लॉस एंजिलिस पहुंच जाती है। क्या यह महामारी अधिनायकवाद की ओर ले जाएगी, इसके जवाब में वह कहते हैं कि महामारी कई बार अधिनायकवाद लाती है तो कई बार इसका उलटा भी होता है। जैसे हैती में येलो फीवर के बाद स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हो गया। नोबेल विजेता, तुर्की के प्रसिद्ध उपन्यासकार ओरहान पामुक का कहना है कि महामारियों में अद्भुत समानता रही है। चाहे वह कॉलरा हो या प्लेग या कोरोना वायरस, सबमें बीमारी के लिए जिम्मेदार सूक्ष्मजीवी कमोबेश एक जैसे थे, और सरकारों की शुरुआती प्रतिक्रियाएं भी।
स्थानीय और राष्ट्रीय सरकारों ने शुरू में इनकी मौजूदगी से ही इनकार किया, फिर इसका ठीकरा अपने मनचाहे शत्रु पर फोड़ने का प्रयास किया। अमेरिकी विचारक नोम चॉम्स्की कोरोना को गंभीर समस्या मानते हैं, पर उनका कहना है कि जैसा राजनीतिक नेतृत्व अभी दुनिया को हासिल है, उसे देखते हुए एटमी युद्ध, ग्लोबल वार्मिंग और जर्जर लोकतंत्र का खतरा भी वास्तविक है। इतिहासकार और दार्शनिक युवाल नोआ हरारी के अनुसार कोरोना एक बड़ी महामारी जरूर है लेकिन इससे लड़ा जा सकता है। इसके लिए दुनिया को साथ आना होगा, पर राजनेताओं को आरोप-प्रत्यारोप से ही फुर्सत नहीं है।