आत्माराम त्रिपाठी
आज नेता, अभिनेता, पत्रकार, मंत्री, अधिकारी, समाजसेवियों, नवयुवकों, ग्रामीणों ने इस इंटरनेट युग में व्हाट्सएप समूह फेसबुक समूह और न जाने कितने समूहों का गठन किया है सभी ने अपने समूहों में अपने दोस्तों ,परिवारीजनो, विभागीय लोगों को जोड़ने का कार्य किया।इसके विपरित कुछ समूह संगठनों ने अपने अपने ग्रुपों समूहों में छोटे कर्मचारियों से लेकर बरिष्ट अधिकारियों को भी जोड़ा । यंहा बरिष्ट अधिकारियों, सांसदो, विधायकों सहित बरिष्ट जनों को जोड़ने के पीछे हो सकता है कुछ की मानसिकता अपना रूतबा दिखाने वाली हो पर हर जगह ही ऐसा होगा भी मानकर चलना बेइमानी होगी। इसी पर जब हमने कयी बरिष्ट साथियों से चर्चा की तो उनका स्पष्ट मानना था कि बरिष्ट अधिकारियों सरकार के नुमाइंदों के समूहों में जोड़ने का मकसद है कि जो उनतक नहीं पहुंच पाता नहीं अपनी समास्याओं से अवगत करा पाता वह इन समूहों के जरिए अपनी समास्या बड़ी बेबाकी के साथ रखकर अधिकारियों के संज्ञान में कर देता है। किंतु यहां अधिकारी समास्याओं को संज्ञान लेने के बजाय उन समूहों से ही पलायन कर जाते हैं जंहा उनके शान में कसीदे पढ़ने के बजाय नीम की पत्तियों को परोष दिया जाता है।आज भी लोग जिस तरह न्याय के लिए न्यायालय की तरफ भरोषे के साथ देखते हैं ठीक उसी तरह आमजनमानस प्रेस पत्रकार की तरफ भी देखता है कि अगर उसकी कोई नहीं सुनेगा तो उसकी बात उसकी समास्याओं को पत्रकार अपनी लेखनी के माध्यम से सभी तक पहुचायेगा और एक सच्चा क्रांतिकारी कलमकार उसके विस्वास को कायम रखते हुए उसका प्रकाशन कर जन जन तक पहुंचाने का कार्य करता है।साथ इसी भावना के उसने समूहों का गठन किया उसने क्या सभी ने की उनकी बात समास्या एक साथ सबतक पहुंचे और कोई हल निकले।पर यहां तो उल्टी गंगा बहती है यंहा किसी को भी अपना बिरोधी स्वर सुनने की छमता नहीं रही जबकि महान पुरुषों का कथन है निंदक नियरी राखिए आंगन कुटी बषाय पर अब यह उलट है चापलूस नियरी राखिए आंगन कुटी बषाय। यही कारण है कि समूहो में जब तक इन लोगों की जय जयकार होती है बने रहते हैं और जैसे ही करु करेला सामने रखा की वह तुरंत समूह से पलायन कर जायेगा बजाय करूं करेला के गुण दोष देखने के।