केसर रानी परमीत
माँ के केवल दर्शन को, यात्री चलते अति दूर।
सफल हुआ जग में वो जिसकी माँ पर श्रद्धा संपूर्ण।
यह धरती हैं मन्दिरों का शहर, पुत्र कुपुत्र सुना है,पर माता न कुमाता का दस्तूर।
जो दिल दुखाते किसी का, माँ करती उसके घमंड को चकनाचूर।
अकेली हूँ माँ जरा संभाल लेना,
झोली मेरी तू खुशियों से भर देना।
जो हो सच्चा और निष्कपट,उसकी हर मुराद पूरी करना।
जो करे वाणी का वार,कर्मो से अत्याचार, हो पापों का भण्डार, उन्हें कभी न बकशना।
एहसास से ही जो बदले खुद का व्यवहार,
मान कर गलती अपनी और उसे दिल से करे स्वीकार।
समझ जाए जो, के प्रीत के बदले प्रीत मिले और प्यार के बदले प्यार ।
बकश के गुनाह उसके, माँ दिखलाना महिमा अपरंपार।
आठ पहर दिल दुखाते, खेले रिश्तों का व्यापार,
माँ के बच्चो के दुखों की ख़बर, जो पहुंचे माँ के दरबार,
माँ फिर हौसला देती, रक्षा करती,
चले ना माँ के बच्चो पर कोई जादू-टोना, न कोई हथियार,
और जो भी दिल दुखाये,
सबक सिखाती माँ उसको,
फिर करती ऐसा वार।
एक दिन ऐसा लाना माँ,
जब सारा जग देखें, हमारा प्यार,
सदा रहे आप संग मेरे, कृपया करना हर बार।
इस जग में कोई न समझे,मुझे तो बस माँ पर ही ऐतबार।
दरस को आपके मन तरसे, मिलने को मन बेकरार।
जब जब भी मैं क़दम बढ़ाऊ, माँ चलना हर पग मेरे साथ।
“माता रानी जी की जय”।
चण्डी माता रानी जी संपूर्ण कथा
प्राचीन समय की बात है एक बूढ़ी औरत अपने 7 बच्चो के साथ अपने घर रहती थी,एक दिन वो औरत सुबह खाना पकाने के लिए चूल्हे में लकड़ियाँ जलाने लगी तो उसने देखा की वहां जमीन से एक पत्थर निकल रहा है,वो उस पत्थर को उखाड़ने लगी वो जितना उस पत्थर को तोड़ती वो पत्थर दो गुणा और निकल जाता, बूढ़ी औरत थक गयी पत्थर तोड़ने कि कोशिश करते करते, वो सौ गयी रात को माँ उसके सपने में आई और उसे
बताया कि जिस पत्थर को तू तोड़ रही हैं वो मेरी पीड़ी हैं,मैं छत फाड़ कर निकलूंगी, बूढ़ी औरत ने कहा माँ तो मैं कहां रहूँगी, माँ ने कहा मैं तो यहीं निकलूंगी, बूढ़ी औरत ने माँ से कहा आप उनके घर क्यों नहीं निकलती जिनके चार छत हैं और इतने मे उसकी आँख खुल गयी, सुबह वो कहने लगी मैं भी देखती हूँ आप यहाँ कैसे निकलते हो और वो फिर से पीडी रूपी पत्थर को तोड़ने लगती हैं, माँ को उसपर गुस्सा आया और एक एक करके,उस बूढ़ी औरत के सातों पुत्र मर गये,बूढी औरत रोने लगी,तब माँ चण्डी आई और उस औरत को कहने लगी,अगर तुमने मेरी बात मान ली होती तो यह दिन न देखना पड़ता,
“जय चण्डी माता रानी जी की”
अब बूढ़ी औरत अकेली थी,माँ से उसका दुख देखा नहीं गया,माँ ने कन्या रूप मे आकर खाना पकाकर खिलाती हैं ,एक दिन बूढ़ी औरत ने माँ से कहा मैं जीकर क्या करूँगी, मुझे अपने अन्दर बसा लो बस इतनी कुपा करना कि मैं इस दुनिया में बदनाम ना हो जाऊ ,माँ ने बूढ़ी औरत को तीन वरदान दिये,1.जिसको भी मेरे नाम की चौकी आएगी, पहले वो तेरी याद में रोयेंगा फिर ही उसका चौकी मानी जाएगी.2.अब इस गांव में केवल एक ही बैल से खेत जूतेगा,जो कोई भी दुसरा बैल लगाएँगा, उसका दुसरा बैल मर जाएगा।वहां आज भी एक ही बैल से खेतोंमें काम होता हैं।3.तीसरा वर यह दिया के आदी चक्की से ही आटा निकलेगा,आज भी वहां आदी चक्की से ही आटा निकलता हैं ।फिर माँ ने उसका नाम अपने नाम से जोड़ लिया।.
“जयकारा मण्डीला वाली का”
1987 की बात हैं ठाकुर कूलवीर जी की नौकरी मचेल मे लगी,ठाकुर जी नास्तिक थे,वो मूर्ती पूजा को नहीं मानते थे।एक दिन ठाकुर जी सो रहे थे तो उन्हे मन्दिर का दरवाजा खुलने की आवाज़ आयी,ठाकुर जी ने सोचा कि कोई चोर आया हैं,वो उठे और मन्दिर के पास जाकर देखने लगे पर वहां अन्धेरा होने के कारण कोई नहीं दिखा,उनमें से एक सिपाही ने गोली चला दी,और वहां से चले गये,अगले दिन सभी बीमार हो गये,काफी इलाज करने के बाद भी वो ठीक नहीं हो रहे थे तब ठाकुर जी ने अपना तबादला करवा लिया और वहां से जाने लगे पर वो अभी कुछ ही दूर पहुंचे तो वो अचानक गिर पड़े,उनसे हिला भी नहीं जा रहा था तभी वहां एक बुजुर्ग आया और उसने ठाकुर जी को उठाया और कहा तुम से कोई गलती हुई हैं,माँ के मन्दिर जाओ और माँ से माफ़ी मांगो, ठाकुर जी उठे और मन्दिर की ओर चल दिये।जब ठाकुर जी मन्दिर पहुंचें तो उन्होंने माँ से कहा,माँ अगर आप सच्चे हो तो मुझे और मेरे सभी सिपाहियों को ठीक कर दो।और थोड़ी ही देर बाद ठाकुर जी ठीक हो गये,उन्हे जरा भी दर्द नहीं रहा,उनके सभी सिपाही भी ठीक हो गये,इतने में मन्दिर मे बैठे पुजारी जी को चौकी आई और माँ ने ठाकुर जी को कहा कि आज से तू मेरा बच्चा हैं।तब से ठाकुर जी हर रोज़ मन्दिर में पूजा करते।
जय चण्डी माता रानी जी की
ऐसे ही समय निकलता रहा,ठाकुर जी ने अपने तबादला के लिए अर्जी दी,पर माँ के हुक्म से उनका तबादला नहीं हुआ।उस दिन वो श्याम को माँ के मन्दिर गये तो मन्दिर के पुजारी जी को चौकी आने लगीं,माँ ने ठाकुर जी को कहा,तू मुझे छोड़ कर जा रहा हैं।तब ठाकुर जी ने माँ से कहा,माँ मैं तुझे कभी भी छोड़ नहीं सकता,इतने में ठाकुर जी को भी चौकी आने लगीं।ठाकुर जी का ज्यादातर समय माँ की भक्ति में ही निकलता था। एक दिन ठाकुर जी को पता चलता हैं कि उनका तबादला हो गया हैं, ठाकुर जी माँ के मन्दिर गये और माँ से बात करने लगें, माँ मेरा तबादला हो गया,मैं तुझे छोड़कर कैसे जाऊँगा, मैं आपके बिना नहीं रह सकता,तब माँ ने ठाकुर जी को कहा कि बेटा,तू क्यों परेशान होता हैं मैं तो तेरे अंग-संग हूँ।माँ ने ठाकुर जी को कहा कि बेटा अगर मेरे बच्चे इतना कष्ट उठाकर मेरे पास आते हैं,तो क्या मैं अपने बच्चो के पास नहीं जा सकती। माँ ने ठाकुर जी को कहा कि तू घर जा मैं तेरे पास आ जाऊंगी।ठाकुर जी ने माँ से कहा सच मे माँ, तो माँ ने ठाकुर जी को कहा कि तेरे घर में एक छोटी कन्या को चौकी आएगी,और वो अनदर से त्रिशूल उठा कर जहाँ मारेगी,वहां मेरी मूर्ती निकलेगी, उस जगह को खोद कर मूर्ती निकाल लेना और तब मैं तुम्हारे घर आ जाऊंगी।ठाकुर जी की खुशी का कोई ठिकाना न रहा, ठाकुर जी ने माँ को नमस्कार किया और अगले दिन वो वहां से चले गये।
माँ की लीला अपरंपार हैं,
ठाकुर जी अपने घर पहुंच गये,ठाकुर जी रोज़ माँ की पूजा करते,ऐसे ही वक़्त निकल रहा था,एक दिन अचानक एक कन्या को चौकी आई और चौकी में कन्या ने त्रिशूल उठाकर बाहर ज़मीन पर मार दिया।ठाकुर जी सबको बता चुके थे कि माँ ने मुझसे कहा हैं कि मैं तेरे घर आऊंगी।पूरा गाँव देखने के लिए आ गया कि माँ कब निकलेगी।ठाकुर जी ने उस जगह को खोदना शुरू कर दिया और वहां पर माँ चण्डी के जागरण गुनगुनाने लगे,बहुत देर तक खोदने के बाद भी वहां से कुछ नहीं निकला,करीब 10 फीट गहरा खड्डा खोद दिया था।ठाकुर जी परेशान हो गये,पूरा गाँव चुप होकर सोचने लगा के कही ठाकुर जी लोगों को बेवकूफ तो नहीं बना रहे, ठाकुर जी बहुत दुखी हो गये और अपने घर में चलें गये।वो मन्दिर में जाकर माँ से कहने लगे,माँ तूने मेरे साथ ऐसा क्यों किया,पूरा गांव मुझे झूठा कह रहा है,अगर न निकलना था तो मुझे क्यो कहा था।ठाकुर जी ने कहा अब मैं जीकर क्या करूँगा,मेरा मर जाना ही ठीक हैं और वह अपनी तलवार ढूँढने लगे।
“जय चण्डी माता रानी जी की”
ठाकुर जी अपने घर के मन्दिर गये और माँ से कहने लगे कि हें माँ अब देर न लगा,मेरे पास आने में वरना मैं इस तलवार से अपनी जान ले लूँगा,उसी समय वहाँ से दो फौजी ड्यूटी पर जा रहे थे,उन्ह लोगों से पूछा यहाँ इतने लोग क्यों इकट्ठा हैं,तो एक आदमी ने कहा कि यहां माँ चण्डी प्रकट होने वाली हैं।फौजी बोले हम भी देखते हैं,वहां एक फौजी को जबरदस्त चौकी आने लगती हैं,वहां एकदम से तेज तूफान आनें लगा।जो फौजी चौकी ले रहा था,वो जिस पेड़ को हाथ लगाता वो गिर जाता।उस फौजी ने वहां अपने हाथों से थोड़ी मिट्टी ओर खोदी तो वहां से एक प्यारी सी माँ की मुर्ति निकल आई।और उस जगह का वातावरण माँ के जयकारे से गूंजने लगा।ठाकुर जी ने जब माँ के जयकारे की आवाज़ सुनी तो वह बाहर गये और देखा कि माँ की मुर्ति प्रकट हो गयी थी।तभी ठाकुर जी अन्दर गये और माँ से कहा माँ क्या मैं इतना पापी हूँ जो आप मेरे हाथों से नहीं निकले।तभी एक कन्या को चौकी आ गयी और माँ ने ठाकुर जी से कहा अगर मैं तेरे हाथों से निकल जाती तो लोग कहते कि इसने पहले ही यहाँ मूर्ती रख दी होगी।और लोग कई तरह की बातें करते,माँ ने ठाकुर जी को वरदान दिया कि तू किसी बीमार पर हाथ रखेगा तो वह ठीक हो जाएगा और अब से तू हर साल मेरी यात्रा लेकर मचैल आएगा। तब से ठाकुर जी हर साल माँ की छड़ी यात्रा लेकर जाते हैं।18 अगस्त को माँ की छड़ी यात्रा बदरवाह से निकलती हैं,कई जगह रात को रूकते हुए 22 अगस्त को माँ के दरबार जाते हैं।पर कुछ सालों से ठाकुर जी के छोटे भाई छड़ी यात्रा लेकर जाते हैं कयोंकि एक दुर्घटना के कारण ठाकुर जी चल नहीं सकते थे,कहते हैं यह दुर्घटना किसी ओर के लिए थी पर ठाकुर जी ने अपने ऊपर लेली और अब ठाकुर जी हैलीकॉप्टर से मचैल जाते हैं ।
माँ की कथा समाप्त।
हर साल मिंडेल यात्रा 1 जून से 10 जून तक होती हैं पर इस साल 2020 को कोरोना वायरस की आपदा के कारण मिंडे यात्रा रद्द हैं।
आप सभी भक्त एक बार चण्डी माँ के दर्शन के लिए किश्तवाड़ जिले में पाडर की दुर्गम पहाडिय़ों पर रणचंडी मां मचैल के दरबार दरशन के लिए जरूर जाए: “जय गोपाल शर्मा जी” ।
“जय चण्डी माता रानी जी की”
लेखिका-केसर रानी (परमीत)
जम्मू-कश्मीर