संसार में हर इंसान दीर्घायु का सुख भोगना चाहता है, लेकिन यह सुख हर किसी के भाग्य में नहीं लिखा होता। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने इस बारे में विस्तार से जानकारी साझा की है। उन्होंने यह भी बताया कि आखिर किन आचरणों से आयु का नाश होता है और ऐसे कौन से कर्म होते हैं जो हमारी आयु को नष्ट भी कर देते हैं। ये कर्म केवल अकाल मृत्यु, भयंकर अशांति और दुख को लेकर ही आते हैं।
1. ईश्वर और शास्त्रों की अवहेलना- प्रेमानंद जी महाराज यह कहते हैं कि जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं रखते, शास्त्रों की अवहेलना करते हैं, नास्तिक बने रहते हैं, गुरु का अपमान करते हैं और दुराचारी होते हैं, उनकी आयु बहुत ही कम हो जाती है।
2. चंचल चेष्टाएं- कुछ लोगों की सुबह की शुरुआत दांत से नाखून चबाने के साथ होती है और कुछ ऐसे भी हैं जो जूठे और अपवित्र आहार के साथ अपने दिन की शुरुआत करते हैं। बेवजह किसी कागज या कपड़ा फाड़ना, बैठे-बैठे पैर हिलाना आदि जैसी चंचल चेष्टाएं भी आयु नष्ट होने का ही कारण होती है।
3. संध्याकाल में शयन या भोजन- जो लोग संध्याकाल में भोजन करते हैं या सोते रहते हैं, उनकी आयु भी क्षीण हो जाती है और शास्त्र कहते हैं कि जो व्यक्ति संध्याकाल में शयन करता है, भोजन करता है, व्यर्थ का भाषण और व्यर्थ की चेष्टाएं करता है, उसकी आयु नष्ट हो जाती है। साथ ही जो इंसान संध्याकाल में देव आराधन, हरि आराधन, भगवत चिंतन और मंगल विधान करता है, निश्चित ही उसकी आयु बढ़ती है और लोक परलोक में सुख प्राप्त करता है।
4. ग्रहण या मध्यान्ह में सूर्य देखना- जो व्यक्ति ग्रहण या मध्यान्ह के समय सूर्य की ओर देखता है उसकी आयु भी कम हो जाती है और इसके अलावा, अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्टमी या एकादशी जैसी पवित्र तिथियों पर गृहस्थ को भी ब्रह्मचर्य का ही पालन करना चाहिए।
5. कठोर शब्द- दूसरे के मन को भेदने वाले वचन कभी मुंह से नही निकालें जाने चाहिए। ‘बाण या किसी अस्त्र से शरीर घायल हो जाए तो औषधि लगाकर उसे भरा जा सकता है, लेकिन दुर्वचनरूपी बाण से जब किसी के हृदय को भेद दिया जाता है, तो उसे बहुत ज्यादा कष्ट होता है। शास्त्रों में ऐसी क्रिया को महापाप समझा जाता है और इसी वजह से ऐसे लोगों की आयु क्षीण भी हो जाती है।’
6. दूसरों का उपहास- अगर कोई व्यक्ति दृष्टिहीन, निर्बल, कुरूप या निर्धन है तो ऐसे लोगों के साथ हमेशा प्रेम से बात करें और उनका उपहास या मजाक कभी भी न बनाएं। ऐसा पाप करने वाले लोगों की भी दीर्घायु नहीं जाती और ऐसे क्रियाएं आपके सुकर्मों को भी नष्ट कर देती हैं।