नालंदा। नालंदा जिले के इस्लामपुर का बड़ी संगत गुरुद्वारा सर्व-धर्म-समभाव का बड़ा उदाहरण है। बिहार में स्थित ये विश्व में संभवत: इकलौता गुरुद्वारा होगा, जहां मुर्दों की मोक्ष प्राप्ति के लिए अरदास कराई जाती है। स्थानीय लोग इसे मंदिर या बड़ी संगत कहते हैं।
ऐसे बढ़ा इस स्थान का महत्व
बड़ी संगत के महंत निखिल दास ने बताया कि 16वीं सदी में सिख धर्म के उदासीन सम्प्रदाय के बाबा शोभरण शरण जी महाराज इस्लामपुर में मुहाने नदी के निकट प्रवास करते थे। उनकी क्षेत्र में बड़ी ख्याति थी। दूर-दराज से हिन्दु धर्मांवलंबी उनका आशीर्वाद लेने आया करते थे। बाबा नियमित प्रवचन भी करते थे। यहीं उन्होंने जीवित समाधि ली थी, तभी से लोगों के बीच इस जगह का महत्व और बढ़ गया। समाधि स्थल पर बकायदा गुरुद्वारे की स्थापना कराई गई और स्थान को बड़ी संगत कहा जाने लगा।
शव लाकर कराई जाती है अरदास
मान्यता हो गई कि समाधिष्ट बाबा के पास मृत्यु के बाद शव लाकर अरदास कराई जाए तो मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। समाधि स्थल पर बाबा की खड़ाऊ, चिमटा व चादर आज भी रखे हैं। उपर खिड़की पर गुरु नानक की फोटो रखी है। जिनको श्रद्धालु नमन करते हैं। हर साल अश्विन माह की दसवीं तारीख को यहां विशेष पूजा-अरदास होती है। मान्यता है कि बाबा ने इसी दिन समाधि ली थी। भक्तों के बीच कड़ाह प्रसाद (हलवा) बांटा जाता है।
आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होने की मान्यता
सोलहवीं सदी में बाबा शोभरण शरण जी महाराज ने समाधि लेने के बाद मान्यता है कि किसी के निधन के बाद बड़ी संगत में शव ले जाकर अरदास कराई जाए तो दिवंगत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यही वजह है कि बड़ी संगत जाने के लिए रोजाना इस गली से शव यात्रा गुजरती है। जिसमें दर्जनों लोग शामिल रहते हैं।