अनिल अनूप की से
अमरीका और ईरान के बीच युद्ध के आसार पकते जा रहे हैं, लेकिन इस बार का युद्ध आसान और सामान्य नहीं होगा। यह एहसास अमरीका और ईरान को है, तो चीन, रूस, भारत और यूरोप सरीखे देशों को भी है। यदि युद्ध हुआ तो उसकी परिणति परमाणु की होगी। नतीजतन दुनिया में चौतरफा तबाही के आसार भी हैं। यदि युद्ध हुआ तो विश्व दो पालों में बंट जाएगा। एक तरफ अमरीका, इजरायल, यूरोपीय देश और सऊदी अरब आदि होंगे, तो दूसरी तरफ रूस, चीन, यमन, लेबनान, सीरिया आदि। इस तरह हालात विश्व युद्ध के मुहाने तक भी पहुंच सकते हैं। भारत किसका पक्ष लेगा, इसे लेकर फिलहाल वह पसोपेश में है। ईरान के साथ भारत के प्राचीन सांस्कृतिक संबंध रहे हैं, तो आधुनिक दौर में भारत अमरीका का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार देश है। भारत की चिंता और सरोकार उन 80 लाख के करीब भारतीयों से भी जुड़े हैं, जो खाड़ी देशों में कार्यरत हैं और लंबे समय से वहीं बसे हैं। वे 3 लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा हर साल भारत में अपने परिवारों को भेजते हैं। यदि युद्ध के कारण भारतीयों को लौटने पर विवश होना पड़ा, तो भारत को करीब 40 अरब डालर की विदेशी मुद्रा का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इससे भी बड़ी चिंता कच्चे तेल की है। भारत 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है और खाड़ी, मध्य-पूर्व के देश उसे सबसे अधिक तेल की आपूर्ति करते हैं। अभी युद्ध पूरी तरह शुरू नहीं हुआ है और तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में 5 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है। यदि युद्ध हुआ तो तेल का भीषण संकट पैदा हो सकता है। चारों ओर विध्वंस और तबाही के मंजर होंगे, तो तेल की आपूर्ति कैसे संभव होगी? भारत के मौजूदा तेल भंडार के आधार पर विश्लेषण करें, तो युद्ध शुरू होने के 10 दिन बाद तक का तेल भारत के पास होगा। तेल ही अर्थव्यवस्था के तमाम आयामों को और भी विकृत कर सकता है, लिहाजा ऐसे आसार भी पैदा हो सकते हैं कि भारत सरकार को ‘आर्थिक आपातकाल’ की घोषणा तक करनी पड़े। महंगाई और भी बढ़ेगी। इसका आम आदमी पर सीधा असर पड़ना तय है। महंगाई बढ़ी, तो रिजर्व बैंक इस पर काबू पाने के लिए नीतिगत दरों में जारी कमी का सिलसिला तोड़ देगा। यानी कर्ज मिलना और सस्ता नहीं रहेगा। उद्योगों के अलावा इन घटनाओं का असर शेयर बाजार पर भी दिखाई देगा। नतीजतन निवेशकों की पूंजी में कमी आ जाएगी। भारत का वित्तीय घाटा भी बढ़ेगा। एक और खाड़ी-युद्ध छिड़ने से भारत के लिए संकट ही संकट हैं। बहरहाल ईरान अपने सबसे ताकतवर कमांडर, रणनीतिकार, मुस्लिम देशों के प्रिय और कट्टर अमरीका-विरोधी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद मातम की अवस्था में है, तो गुस्से और बदले की भावना से धधक भी रहा है। पलटवार में ईरान ने तीन राकेट दाग कर अमरीका के महत्त्वपूर्ण सैन्य अड्डे और दूतावास को निशाना बनाया है। बदले में अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप ने एक बार फिर धमकी दी है कि यदि ईरान ने फिर हमला किया, तो अमरीका उसके 52 ठिकानों पर ऐसा हमला करेगा, जो उसने कभी देखा नहीं होगा। अमरीका ने ईरान के 52 ठिकानों को पहले से ही चिह्नित कर रखा है। ईरान का दावा है कि उसने भी अमरीका के 35 महत्त्वपूर्ण ठिकानों को निशाने पर ले रखा है। बहरहाल दोनों देशों के बीच सीधा युद्ध हुआ, तो ईरान कहीं नहीं ठहर सकता। अमरीका सबसे ताकतवर युद्धक देश है। उसके पास ऐसे अस्त्र और विमान हैं, जो अमरीका की सीमा में रहते हुए ही दुश्मन को ‘मिट्टी’ बना सकते हैं। अमरीका के पास 7000 परमाणु हथियारों का जखीरा बताया जाता है, जबकि ईरान की स्थिति ‘शून्य’ वाली है। युद्ध के विस्तार की स्थिति में रूस और चीन सरीखे परमाणु संपन्न देश ईरान की ओर से परमाणु हमले के जवाब दे सकते हैं। दरअसल अमरीका ने पहले से ही ईरान की घेराबंदी कर रखी है और खाड़ी के अधिकतर देशों में उसका सैन्य साम्राज्य स्थापित है। बहरहाल उम्मीद करनी चाहिए कि तनाव यहीं शांत हो जाएगा, क्योंकि सभी बड़े देश दोनों से संवाद कर रहे हैं और समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि दुनिया अब परमाणु युद्ध झेलने को तैयार नहीं है।