• प्रमोद दीक्षित मलय
घिर आई है अंबर में श्याम घटा घनघोर सखी।
हर्षित है तन रोम-रोम, नाच रहा मन-मोर सखी।
नव पल्लव लगे झांकने ज्यों सुकुमार झरोखे से,
कलियों ने खोल नयन खुशी जताई चहुंओर सखी।
नीली साड़ी पर जैसे बिखरी स्वर्णिम आभा हो,
घूंघट से झांक-झांक मन मोह रही नित भोर सखी।
चिड़ियों का कलरव गूंजे, टेरे मोर पपीहा स्वर,
वर्षा की बूंदे चूमें वसुधा का हर छोर सखी।
कूप-ताल उल्लास मनाते सरिताएं हर्षित हैं,
पाहुन-पथ निहार रही है नवल वधु हर ओर सखी।
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शिक्षक, बांदा (उ.प्र.)
मोबा. 94520-85234