श्लेष चन्द्राकर
(१)
मिल तो जाती है सखे, छल छंदों से जीत।
उचित नहीं पर खेलना, खेल भाव विपरीत।।
(२)
बेशकीमती रत्न की, मीत अलग पहचान।
खरा कसौटी में उतर, देगा जग सम्मान।।
(३)
अपना जीवन लक्ष्य बिन, बिता रहें जो लोग।
प्राप्त न करते वे कभी, सच्चे सुख का योग।।
(४)
उचित कार्य में शक्ति का, करिए भ्रात प्रयोग।
तभी आपको जगत में, इज्जत देंगे लोग।।
(५)
बनो साहसी वीर तुम, करना अगर कमाल।
साहस के सम्मुख लगे, लघु अति शैल विशाल।।
पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़) पिन – 493445,