दीप्ति सक्सेना
तिलमिला रहा था
मन का हर एक हिस्सा
छूते रहे कुछ अपने
कंडाली° की तरह से।
चुभन से छटपटाती
बेहाल जिंदगी में
तिकुनिया पत्ते जैसे
कुछ दोस्त मिल गए फिर।
लगा लिए जो मन पे
तो हर ली सारी पीड़ा
दवा दुआ बन गए
कुछ मुलाकातों में ही।
चमत्कार यूँ करते हैं वो
बाधा लगे ना व्याधि
करते हैं दिल को हल्का
बोझा बड़ा हटा कर ।
हर मर्ज का इलाज़
वैद्य हकीमों पर ही नहीं है
ये दोस्त भी रखते हैं हुनर
तबियत दुरुस्त करने का।
°कंडाली(बिच्छू घास)- कंटीली पहाड़ी घास