सतत अठारहवें दिन लाकडाउन का पालन करते हुए आज विद्वानों की कलम को काव्य के माध्यम से नमन करने का प्रयास करता हूं।
नवीन जोशी ‘नवल’
वंदन-नमन सदा उसको जो,
घिसती है, थकती न कभी ।
प्राज्ञजनों की श्रेष्ठ कलम वह,
चलती नित, रुकती न कभी ।।
रोती नहीं, भावना में बह,
कागज पर आंसू टपकाती,
अश्रुबूंद के कण कण से भी,
अमिट शब्द सुंदर गढ़ जाती।
सच कहने का साहस करती,
मिथ्या लिख सकती न कभी,
प्राज्ञजनों की श्रेष्ठ कलम वह,
चलती नित, रुकती न कभी ।।
शब्द-स्वरों के चिर प्रवाह से,
कभी हंसाती, कभी रुलाती,
लेखन,गीत, कहानी, कविता,
नवल चेतना ज्ञान जगाती ।
जड़ता के अंधियारे मग में,
जिसकी लौ बुझती न कभी,
प्राज्ञजनों की श्रेष्ठ कलम वह,
चलती नित, रुकती न कभी ।।
राजनीति जब डगमग डोले,
नव संदेश सुगम दे जाती ,
भ्रमित, निरंकुश राजभवन को,
उचित मार्ग तब यह दिखलाती।
तीक्ष्ण, संयमित, कटु भी लिखती-
साहस से, बिकती न कभी,
प्राज्ञजनों की श्रेष्ठ कलम वह,
चलती नित, रुकती न कभी ।।
वीरों का गुणगान करे जब,
जन-जन में नव शौर्य भरे,
देश-धर्म पर जो बलि जाते,
उनका नित सम्मान करें ।
दुर्गम पथ पर उन्नत मस्तक-
बढ़ती नित, झुकती न कभी,
प्राज्ञजनों की श्रेष्ठ कलम वह,
चलती नित, रुकती न कभी ।।
चूक न जन फिर से दोहराएं,
तब बीता इतिहास बताती,
जनहित, नूतन निर्माणों का-
नव विज्ञान कभी लिख जाती।
युग युग से अकाट्य, चिरजीवी-
रहती, मर सकती न कभी,
प्राज्ञजनों की श्रेष्ठ कलम वह,
चलती नित, रुकती न कभी ।।
– नवीन जोशी ‘नवल’
कोरोना से जूझ रहे कर्मवीरों को नमन।
(घर पर रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें, हाथ साबुन से बार-बार धोते रहें। अपने व देश के हित में लाकडाउन का पालन करें।)