( अरुणा राजपूत पेशे से शिक्षिका हैं और प्रवृत्ति साहित्यकार की। इनकी एक कविता हमें मिली है जिसमें बेजुबान जानवरों का वास्तविक दर्द है तो सामयिक माहौल का अर्थ भी इसमें छुपा है। हमें आशा है सुधि पाठक भी इसको पसंद करेंगे। )
•अरुणा राजपूत
आ गयी है मानव जीवन में त्रासदी।
कोरोना ने भयकंर तबाही मचा दी।।
चीनियों ने खूब खाया निरीह जानवरों को।
जलचर, थलचर और सभी नभचरों को।
सामंजस्य हम जीव-जंतुओं से बनायें।
करें प्रकृति रक्षा, सुखद वसुंधरा बचायें।
कुपित हुई प्रकृति फैला दिया वायरस को।
सदन में कैद मानव, खोकर आजादी।।
आ गयी मानव जीवन में त्रासदी।।
शुरु हुआ रोग चीन के वुहान से जब।
चीन ने लिया कहां इसे गम्भीरता से तब।
फैला दिया अनेक देशों में अपनी मूर्खता से।
कोविड-19 महामारी बना मूढ़ता से।
नगर, चौक, द्वार, गली छाई बर्बादी।।
आ गयी मानव जीवन में त्रासदी।।
हैं सभी देश घातक वायरस की जकड़ में।
भारत भी फंसा कलुष कोरोना पकड़ में।
घर मे रहें सब, खूब साफ-सफाई करें।
बचाव यह, अपने मन की ना दवाई करें।
करें प्यार जीवों से, खुशहाल होगी आबादी।।
आ गयी मानव जीवन में त्रासदी।।
कोरोना ने भयकंर तबाही मचा दी।।
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कवयित्री हापुड़ में शिक्षिका हैं। मोबा. 94571-79156