केसर रानी (परमीत)
गरीबी का अफसोस नहीं है मुझे के गरीब घर से हूँ मैं,
अफसोस तो यह है कि अमीर घर से हूं फिर भी गरीब हूँ मैं।
थक गया है पंछी आशियाने बदल बदल, हर घोसले मे उसने अपनी मेहनत से तिनके लगाएं थे। नासमझी मे भूल गया था कि वो सब घोसले अपने नहीं पराये थे ;अब जिन्दगी के इस मोड़ पर आकर फिर बेघर हो गया ये पंछी। अफसोस तो यह है कि वह आशियाना कहा से लाये जिसके सपने सजाए थे।
जिस घड़ी का; हर घड़ी इंतजार किया।,अफसोस वो घड़ी आई भी तो उस घड़ी, जब एक तरफ था दरिया सुखा, थी दुसरी तरफ बंजर जमीन।अब आगे बढ़ने का कोई साथी न था और पलट कर देखा तो कोई बाकी न था। उस घड़ी मैं यह समझ गयी,
के थम जाता है वक्त यहां पर थमती नहीं घड़ी कभी।
मेरी जीवनरुपी परीक्षा में,
प्रश्नपत्र भी अपने ने दिया और उनका परीक्षण भी अपनो ने किया; अफसोस तो यह हुआ कि सभी उत्तर सही थे मेरे फिर भी मेरे अपनों ने मुझे अयोग्य घोषित कर दिया।
है अफसोस चांद को भी, सब उसे सुरज के साथ तोल कर जो चले जाते हैं। रोशन कर दी उसने भी तो दुनिया पूर्णिमा में फिर भी अमावस्या का चांद बताते हैं। करके पुजा शुभ दिवसों पर चांद की उसमें दाग दिखाते हैं।
सड़क है लम्बी और बहुत दूर तक जाना है, अफसोस तो यह है कि घर से निकलू केसे, न कोई कारण, न बहाना हैं। हो चाहे थरथराते कदम और थक जाए यह बदन फिर भी मुझे सफर तय करते जाना हैं। हो लाख मुश्किलें मेरी मंजिल में,
है जिद्द मेरी भी के मंजिल को तो पाना हैं।
भटक रहा था कड़ी धूप मे वो चार रोटियां कमाने को, दो रोटी परिवार को दी और दो बांटी जमाने को। अफसोस नहीं जरा भी उसको के इन चार रोटियों के लिए उसने अपने बदन और नंगे पाँव को कड़ी धूप मे सेका है,,, हजारों की भीड़ में आज मेने सचमुच एक फरिश्ते को देखा हैं।
भूलाकर अपनी उम्र को जरा ब्यान करदो जज्बात दिल के अनकहे, झूम लो जरा खुद की ताल में, हंस लो जोरों से दिल खोल के।
हो जाओ बेपरवाह कुछ पल तो करके दुनिया की सोच को परे।
आज तो है यह जिन्दगी कल रहे न रहे ताकि जीवन के आखिरी पलों में फिर कोई अफसोस न रहे।
लेखिका-
केसर रानी (परमीत)
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जम्मू-कश्मीर