व्यावहारिक दिक्कतों को दूर किया जाए
अनिल अनूप
बीते साल संसद में सरोगेसी नियमन बिल-2019 पेश किया गया था, जिसे लोकसभा ने तो पारित कर दिया था, मगर राज्यसभा में यह बिल पारित नहीं हुआ। दरअसल, विधेयक के कई प्रावधानों को लेकर असहमति बनी रही। नि:संदेह सरोगेसी की सुविधा प्राकृतिक तथा सेहत से जुड़े कारणों से संतान उत्पत्ति में अक्षम दंपतियों को चिकित्सा तकनीक की मदद से संतान सुख का अवसर देती है। इसमें संतान चाहने वाले दंपति किसी अन्य महिला द्वारा गर्भ धारण करवाकर संतान का सुख हासिल करते हैं। लेकिन कालांतर में सरोगेसी के बड़े कारोबार में तब्दील होने तथा गर्भ धारण करने वाली महिला को पर्याप्त आर्थिक लाभ न मिलने की शिकायतें आने लगीं। सवाल गर्भ धारण करने वाली महिला के अधिकार को लेकर भी उठे। क्या उसके स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारों का पालन हो रहा है? सवाल सरोगेसी के नैतिक पक्ष को लेकर भी उठे, सवाल ऐसी महिलाओं को लेकर भी उठे जो पैसा देकर प्रसव के कष्ट से बचना चाहती हैं।
फिर सरोगेसी के व्यावसायीकरण तथा अभिजात्य वर्ग में इसके फैशन के रूप में विकसित होने को लेकर भी सवाल उठे। पैसे के बल पर शौक पूरा करने के लिये कुछ सेलिब्रेटी भी इसका उपयोग कर रही थीं, जिनके पास पहले से बच्चे हैं। इतना ही नहीं, विदेशी दंपतियों के लिये भारत ‘सरोगेसी हब’ बन गया था। ऐसे में सरोगेसी के नैतिक पक्ष को मजबूत बनाने व गरीब महिलाओं को शोषण से मुक्त करने के लिये सरकार ने हस्तक्षेप किया।
आशंकाओं को दूर करने व सरोगेसी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार सरोगेसी नियमन बिल 2019 लोकसभा में लेकर आयी, जिसके जरिये सरोगेसी से जुड़े कानून सख्त बनाये गये। जिसमें सरोगेसी के लिये दंपतियों के नजदीकी रिश्तेदार महिला को चुनने की अनिवार्यता भी शामिल थी। मगर संसदीय समिति की रिपोर्ट में उन चिन्हित जोड़ों को लेकर भी सवाल उठे जिन्हें इस सुविधा से वंचित किया गया। राज्यसभा की एक संसदीय समिति नेे बिल के कुछ प्रावधानों में बदलाव की सिफारिश की। विशेष रूप से संतान उत्पन्न करने में अक्षम दंपतियों को लेकर वह शर्त हटाने की सिफारिश की गई जिसमें नजदीकी रिश्तेदार होने की बाध्यता रही है। यह भूमिका किसी अन्य इच्छुक महिला को दिये जाने की अनुमति देने की बात कही गई। सिफारिश की गई कि पैंतीस से पैंतालिस साल की अकेली और विधवा महिलाओं को भी सरोगेसी संतान का मौका दिया जाए। इसमें भारतीय मूल की प्रवासी महिला को भी शामिल करने की बात कही गई है। संसदीय समिति की पंद्रह सिफारिशों में सरोगेट मां के लिये प्रस्तावित बीमा सुविधा की अवधि को 16 से बढ़ाकर 36 माह करने की मांग हुई। इसमें गर्भ धारण करने की प्रक्रिया में बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर आने वाली जटिलता की स्थिति में महिला की आर्थिक व चिकित्सीय सुविधा-सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। सवाल लिव इन रिलेशन में रहने वाले दंपतियों तथा एलजीबीटीक्यू वर्ग की संतान सुख की आकांक्षा का भी है। नि:संदेह सिफारिशें इस दिशा में सार्थक कदम है।