अनिल अनूप
कोरोना वायरस से आतंकित दुनिया में ठप पड़ी आर्थिक गतिविधियों से आशंकित शेयर बाजारों में गिरावट अपेक्षित थी, मगर भारतीय शेयर बाजारों में ऐसी रिकॉर्ड गिरावट आएगी, इसका अनुमान नहीं था। ऐसा नहीं है कि यह गिरावट सिर्फ भारतीय बाजारों में ही हुई, यह ट्रेंड विश्वव्यापी है। यहां तक कि गिरावट में तेजी के चलते अमेरिका तक में शेयर कारोबार रोकना पड़ा है। आशंकाएं जतायी जा रही हैं कि दुनिया एक बार फिर 2008 जैसी मंदी की ओर बढ़ रही है। शेयर बाजारों में गिरावट की एक बड़ी वजह कोरोना वायरस द्वारा सौ से अधिक देशों को गिरफ्त में लेने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे महामारी घोषित करना भी है। इस घटनाक्रम से विश्व की अर्थव्यवस्था में ठहराव आने से बाजार आशंकित है। तमाम देश विदेशी नागरिकों के अपने यहां आने पर रोक लगा रहे हैं। अमेरिका द्वारा ब्रिटेन के अलावा सभी यूरोपीय देशों के नागरिकों के अपने यहां आने पर रोक लगाने के फैसले का असर भी विश्व शेयर बाजार पर तत्काल नजर आया। बहरहाल, बृहस्पतिवार को शेयर बाजार में आई भारी गिरावट के बाद भारतीय बाजार में निवेशकों के ग्यारह लाख करोड़ स्वाह हो गये। दरअसल, कोरोना वायरस के घातक प्रभाव के चलते जो आर्थिक गतिविधियां ठप हुई हैं, उसका असर कच्चे तेल के बाजार पर भी पड़ा है। जिसके चलते कच्चे तेल के दामों में अप्रत्याशित तीस फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। दरअसल, जहां सऊदी अरब जैसे देश तेल के दामों में कटौती करना चाहते थे, वहीं रूस इस बात पर अडिग था कि दामों में कटौती न की जाये। हालांकि, कच्चे तेल के दामों में गिरावट का लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को मिल सकता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे भारतीय आयात बिल में सुधार होगा। देखने वाली बात यह है कि भारत इस स्थिति का कितना लाभ उठा पाता है।
हालांकि, शुक्रवार का दिन भारतीय शेयर बाजार के लिये खासा उतार-चढ़ाव वाला रहा है। सुबह बाजार खुलते ही इतनी बड़ी गिरावट आई कि लोअर सर्किट लगाना पड़ा। जिसके चलते सेंसेक्स और निफ्टी में कारोबार तक बंद करना पड़ा। लेकिन वहीं दिन के कारोबार में इतनी बड़ी रिकवरी हुई कि एक रिकॉर्ड बन गया। शुक्रवार को अब तक की सबसे तेज रिकवरी हुई और चार फीसदी की बढ़त दर्ज की गई। दरअसल, निवेशक कोरोना वायरस के प्रसार के बाद अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर आशंकित हैं। जब दुनिया के 114 मुल्कों में 1.18 लाख लोगों के वायरस की चपेट में आने और 4300 लोगों की मौत की खबरें आ रही हैं तो संवेदनशील सूचकांक का डिगना स्वाभाविक है। हर तरफ अनिश्चितता का माहौल है। वायरस के प्रभाव की आशंका ने शेयर बाजार की सकारात्मकता को खत्म कर दिया है, जिससे निवेशकों में डर बना हुआ है और वे निर्णय लेने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे हैं। बाजार में गिरावट की आशंकाओं के बीच निवेशकों को जो भाव मिल रहा है, उसी पर बिकवाली करने का मन बना रहे हैं। नि:संदेह शेयर बाजारों में सामान्य स्थिति आने में वक्त लग सकता है। ऐसे हालात में भारत की चिंताएं दोहरी हो गई हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था पहले ही मंदी जैसे हालातों से गुजर रही है। अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां भारतीय जीडीपी में गिरावट की आशंका जता रही हैं। हालांकि, इस बार यह गिरावट वैश्विक स्तर पर होने जा रही है। ऐसे मौके पर जब चीनी फैक्टरियां ठप पड़ी हैं, भारत को स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देकर मौके को अवसर में बदलना चाहिए। यह कदम भारत-चीन के व्यापार घाटे को संतुलित बनाने में भी सहायक हो सकता है। कोरोना की चुनौती सिर्फ स्वास्थ्य के स्तर पर ही नहीं है, उससे बड़ी यह आर्थिक चुनौती है। इसके दूरगामी प्रभाव भारतीय कारोबारी जगत पर पड़ सकते हैं। भारतीय उद्योग जगत को विश्व आपूर्ति शृंखला के टूटने के मौके को अवसर में बदलना चाहिए।