आत्माराम त्रिपाठी
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला देश के लाखों गरीब कामगारों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। यह एक मुकम्मल फैसला है। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को न सिर्फ 15 दिनों के भीतर तमाम इच्छुक प्रवासी मजदूरों को उनके गांव या मूल स्थान लौटने की सुविधा मुहैया कराने का आदेश दिया है, बल्कि गांव पहुंचने के बाद उनकी आजीविका के उपायों के बारे में भी योजनाएं बनाने को कहा है, ताकि उनके कौशल के मुताबिक उनका समुचित समायोजन हो सके। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात का भी ख्याल रखा है कि जो मजदूर अपने मूल स्थान पर लौटें, उन्हें वहां प्रखंड व जिला स्तर पर चलने वाली सरकारी योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ मिले और वे फाकाकशी का शिकार न बनने पाएं। ये सारे काम कार्यपालिका के हैं और इन्हें बिना न्यायिक हस्तक्षेप के संपन्न हो जाना चाहिए था। पर सुप्रीम कोर्ट को यदि स्वत: संज्ञान लेना पड़ा और उसके दखल की नौबत आई है, तो यह हमारी कार्यपालिका के लिए कतई सुखद बात नहीं है।
बीते 25 मार्च से देश में पूर्ण लॉकडाउन लागू हुआ था, और इसके शुरुआती दो दिनों में ही दिल्ली-उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर जो मंजर दिखाई पड़ा, उसको देखते हुए ही केंद्रीय व राज्य प्रशासन को प्रवासी मजदूरों की लाचारी और बेचैनी का अंदाज हो जाना चाहिए था, लेकिन प्रशासन के पास तब सख्ती बरतने के अलावा दूसरी कोई त्वरित योजना नहीं थी। और यह स्थिति तब थी, जब सरकारें अच्छी तरह से जान रही थीं कि देश में करोड़ों-करोड़ कामगार दूसरे प्रदेशों में जाकर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं, बल्कि उनमें से लाखों की रातें फुटपाथों पर गुजरती हैं। जाहिर है, हजारों की तादाद में लोग अपने मूल निवास की ओर निकलने लगे और प्रशासन उनकी संख्या के आगे बेबस पड़ता गया। आज करीब ढाई महीने बाद आला अदालत ने जब इन मजदूरों के हक में अपना फैसला सुनाया है, तब तक लाखों कामगार सैकड़ों किलोमीटर की पीड़ादायक यात्रा करके या श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से अपने-अपने घर पहुंच चुके हैं।
प्रवासी मजदूरों की इस हालत के बरअक्स हमारे सामने आज जो तथ्य हैं, वे बता रहे हैं कि हम लॉकडाउन का अपेक्षित लक्ष्य नहीं हासिल कर पाए। जिन देशों ने कोरोना की जंग में लॉकडाउन को एक कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, वहां शासन-प्रशासन ने सबसे पहले इससे प्रभावित होने वाली जनता की बुनियादी जरूरतों का संजीदगी से ख्याल रखा। निस्संदेह, हम जैसी विशाल आबादी के लिए यह आसान काम नहीं है, लेकिन हमारा जोखिम भी तो छोटा नहीं है। हम दुनिया के उन शीर्ष देशों में आ गए हैं, जहां वायरस का संक्रमण सबसे ज्यादा है। मौजूदा स्थिति में प्रवासी मजदूरों की दुश्वारियां और न बढ़ें, इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप सराहनीय है। अदालत ने उन कामगारों की भी सुध ली है, जो अपने कार्यस्थल पर लौटना चाहते हैं। उनके बगैर आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौट भी नहीं सकतीं। लेकिन उन्हें अब काफी सतर्कता बरतनी पड़ेगी, इसके लिए उनकी कौंसिलिंग जरूरी है। अदालत ने लॉकडाउन के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले श्रमिकों के खिलाफ दायर सभी मुकदमों को खत्म करने का जो आदेश दिया है, उसकी भी सराहना की जानी चाहिए। बेबस लोगों के साथ इंसाफ का यही तकाजा था, और यकीनन इंसानियत का भी।