केवल कृष्ण पनगोत्रा
पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहे कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 मार्च 2020 के दिन इस संक्रमण पर चिंता व्यक्त करते हुए घोषणा कर दी कि कोरोना वायरस अब एक वैश्विक महामारी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष टेड्रॉस गेब्रेयेसस ने कहा था कि हमने कोरोना की ऐसी महामारी कभी नहीं देखी है। डब्ल्यूएचओ कोरोना के प्रकोप के फैलने और गंभीरता के खतरनाक स्तरों से गहराई से चिंतित है। उन्होंने कहा कि हमारे आकलन के मुताबिक, कोरोना को महामारी घोषित किया जा सकता है। हमारा काम लोगों के स्वास्थ की रक्षा करना है।
11 मार्च तक दुनियाभर में कोरोना वायरस से 4000 से ज्यादा मौतें हो चुकी थीं। चीन के बाद लगभग हर द्वीप तक कोरोना पहुंच चुका था। भारत भी इसकी चपेट में था और स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश में तब तक संक्रमण के 60 मामले सामने आ चुके थे। इस महामारी के चलते दुनियाभर के 114 देशों के 1,18,000 लोग इन्फैक्टेड हो चुके थे। 11 मार्च तक कोरोना वायरस का बड़ा खतरा इटली में मंडरा रहा था।इटली में उस समय तकरीबन 10,149 लोग वायरस से संक्रमित थे। तकरीबन 630 लोगों की मौत हो चुकी थी। यानी चीन के बाद दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश इटली ही था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार यदि 114 देशों के हिसाब से देखें तो 11 मार्च तक हर संक्रमित देश के खाते में 1035-36 मामले अाते थे।
यदि 11 से 24 मार्च की कुछेक सियासी सरगर्मियों के दृष्टिगत राय बनाने की कोशिश करें तो कुछ अलग ही तस्वीर दिखाई देती है
वैश्विक महामारी के मायने बड़े भयानक होते हैं। करोना के संदर्भ में महामारी की घोषणा इसलिए भी ज्यादा चिंतित करने वाली थी, क्योंकि तब और अब तक इस संक्रमण की पूरे विश्व में किसी दवाई ही खोज नहीं हुई है।
भारत में जिस तरह से करोना संकट बेलगाम होता जा रहा है, उसके दृष्टिगत एक तो करोना से जंग के प्रयासों से आम आदमी संतोष महसूस नहीं कर रहा और दूसरे करोना के चिंताजनक समय में जिस तरह देश में सियासी सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं, उससे तो यह आभास हो रहा है कि करोना संकट के मुकाबले राजनीति प्राथमिकता पर है।करोना संक्रमण में भारत दसवें नम्बर पर था जो चौथे पर आ गया है। इसी के साथ जिस गति से कोरोना से संक्रमित मामले बढ़ते जा रहे हैं उससे यह आशंका बढ़ने लगी है कि अभी सब कुछ संतुष्ट जनक नहीं है। प्रतिदिन 10000 के लगभग संक्रमण के साथ-साथ भारत 300,000 की संक्रमित संख्या के पास आ चुका है। हमारे अस्पतालों पर मरीज़ों का दबाव बहुत ज्यादा है। दुनिया मे कोविड टेस्टिंग की तुलना में भारत में टेस्टिंग की गति कम है और यह भी कहा जा रहा है कि कम टेस्टिंग से संक्रमण के पूरे मामले सामने नहीं आ पा रहे हैं।
आश्चर्य है कि देश को रिकवरी रेट दिखा कर भरमाया जा रहा है। कम्यूनिटी ट्रांसफार्मेशन का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत मैजिस्ट्रेट सहिबान रेड, ओरेंज और ग्रीन जोन के अनुसार निर्देश जारी कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ लच्छेदार भाषणों और विज्ञापनों से करोना को हराने की कोशिश की जा रही है मगर करोना दिनों दिन मारक होता जा रहा है।
11 मार्च से 24 मार्च तक की समयावधि में यदि दस दिन तक देश के विभिन्न भागों में रह रहे प्रवासियों को घरों तक जाने के लिए कह दिया जाता तो करोना वायरस के फैलने की गति इतनी तेज नहीं होती। इससे केंद्र और राज्य सरकारों को भी प्रवासी मज़दूरों के पलायन का दबाव नहीं झेलना पड़ता और न ही अर्थ व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ता। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन करोना को वैश्विक महामारी घोषित कर चुका था तो भारत करीब दो सप्ताह तक किस इन्तजार में रहा? यदि 11 से 24 मार्च की कुछेक सियासी सरगर्मियों के दृष्टिगत राय बनाने की कोशिश करें तो कुछ अलग ही तस्वीर दिखाई देती है। 20 मार्च को मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई। करीब दो सप्ताह तक जिस तरह का सियासी ड्रामा चला, उससे पूरा देश परिचित है। इस संदर्भ में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के 20 मार्च 2020 के दिन राज्यपाल के नाम लिखे त्यागपत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि जब करोना वायरस से बचाव के लिए त्वरित और दूरदर्शी नियोजन की जरूरत थी तब करोना संकट के मुकाबले मध्य प्रदेश में सरकार बनाने को प्राथमिकता दी गई। कमलनाथ ने भी 20 मार्च के अपने त्यागपत्र में “पिछले दो हफ्तों” का उल्लेख किया है। यह वही दो हफ्ते थे जब करोना नाम की महामारी भारत में पैर पसार रही थी। कमलनाथ का अक्षरशः त्यागपत्र कहता है :
“माननीय राज्यपाल जी,
मैंने अपने 40 वर्ष के सार्वजनिक जीवन में हमेशा से शुचिता की राजनीतिक की है और प्रजातांत्रिक मूल्यों को तरजीह दिया है। मध्य प्रदेश में पिछले दो हफ्तों में जो कुछ भी हुआ था, वह प्रजातांत्रिक मूल्यों के अवमूल्यन का एक नया अध्याय है।
भारत में एक भी विकल्प के बारे में नहीं सोचा जा रहा। महामारी से निपटने के लिए न दक्षिण कोरिया जैसा मॉडल है
मैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से अपना त्यागपत्र दे रहा हूँ। साथ ही नए बनने वाले मुख्यमंत्री को मेरी शुभकामनाएँ। मध्य प्रदेश के विकास में उन्हें मेरा सहयोग सदैव रहेगा।”
भोपाल से समाचार एजेंसी के हवाले से 10 जून को जानकारी प्राप्त हुई है कि मध्यप्रदेश में आगामी दिनों में एक और सियासी भूचाल आने की संभावना बनने लगी है और यह राज्यसभा चुनाव के दौरान नजर भी आ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस को एक और झटका देने की तैयारी में लगी है। करोना जैसे संकटकाल में सत्ता और स्वार्थ से ओत-प्रोत चुनाव जैसी सियासी कसरत को यदि टाल दिया जाये तो क्या होगा?
किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव समय पर कराना अति आवश्यक है। लेकिन करोना संकट के चलते कई देशों में मतदान टाल दिया गया है। इथियोपिया, सीरिया, ईरान, श्रीलंका, डोमेनिकल रिपब्लिक, सर्बिया, बोल्विया, पापुआ न्यू गिनी और स्विट्डरलैंड में होने वाले मतदान को फिलहाल के लिए टाल दिया गया है। इन देशों के विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण कोरिया की तरह चुनाव के बारे में जल्दी नहीं सोचेंगे क्योंकि उनकी पहली प्राथमिकता महामारी से निपटने की होगी।हालांकि, महामारी से निपटने के लिए दक्षिण कोरिया के मॉडल को अपनाने की आवश्यकता जरूर है।
दक्षिण कोरिया में कोरोना का तेजी से फैलता कहर किसी युद्ध की तरह देखा और उसी तरह से ट्रीट किया जा रहा है, जिसमें ये भी बहुत जरूरी है कि हम किस तरह से पहली लड़ाई जीतते हैं। जगह-जगह टेस्ट सेंटर खोले गए हैं, जहां लोग खुद पहुंच सकते हैं। जांच की पूरी प्रक्रिया मुफ्त है।
भारत में एक भी विकल्प के बारे में नहीं सोचा जा रहा। महामारी से निपटने के लिए न दक्षिण कोरिया जैसा मॉडल है और न ही चुनावी सियासत को टालने की इच्छा शक्ति है।
कई देशों में राष्ट्रीय अापात या संकट के चलते चुनाव को स्थगित करने के प्रावधान हैं। लाइबेरिया ने अक्टूबर 2014 में इबोला के प्रसार के साथ अपने वर्तमान आपातकाल के कारण अपने देशव्यापी सीनेटर चुनाव को स्थगित कर दिया था।
अप्रैल में अमेरिका में तो इसी साल नवंबर में होने वाले प्रेसिडेंशियल इलेक्शन यानी राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव पर संकट के बाद छाए थे।वहां करीब डेढ दर्जन राज्यों में प्राथमिक चुनाव स्थगित कर दिए गए थे।
इधर भारत में भी राज्यसभा चुनाव टाल दिए जाने के बाद विधान परिषदों के उप चुनाव भी टल गए थे। भारत में भी यह सवाल था कि कई राज्यों में उपचुनाव होने हैं, क्या वे भी टलेंगे? क्या बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के आगामी समय में आने वाले चुनाव भी टल तो नहीं जाएंगे?
वैसे हमारे देश में भी चुनाव आयोग ने 26 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव लॉकडाउन के चलते स्थगित हो गया। संसद भी स्थगित हुई थी।
चूकिं चुनाव जैसी स्थिति में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए चुनावी सियासत को तेज करने के बजाए टालने के उपायों पर विचार किया जाना चाहिए। फिलहाल करोना संकट और बचाव मुख्यतः सोशल डिस्टैंस, हैंडवॉश और मास्क के हवाले है।
*लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं