आत्माराम त्रिपाठी
कानपुर में एक गुंडे द्वारा जिसे हम न डकैत कह सकते नहीं आतंकवादी पर उसके द्वारा किए गए कार्य को देख कर क्या कहें जिसने अंधाधुंध फायरिंग कर कयी पुलिस जवानों को मौत की नींद सुला दिया कयी बीर जवानों की माताओं की गोदे सूनी कर दी कयी सुहागिनों के मांग का सिंदूर पोंछ डाला बच्चों के सरो से उनके पिता का साया छीन लिया बहिनों से उनके भाई छीन लिए और आमजनमानस से उनके रक्षक छीन लिए ।पर सवाल उठता है कि ऐसे लोग पल पोस कर इतने ताकतवर कैसे हो जाते हैं जो भस्मासुर बन जाते हैं इसके लिए दोषी कौन है राजनीतिक य प्रसाशन य समाज आखिर ऐसे लोगों को इतनी उर्जा कहा से प्राप्त होती है की वह एक दिन सीधे साशन सत्ता को ही चुनौती देने की औकात रखने लगता है।समाज को देखें तो वह अपने आप में ही उलझा हुआ उसके पास यह सब देखने समझने का समय नहीं है अब बचती है राजनीति तो इसका चलचरित्र हमेशा दोगला रहा और प्रशासन में बैठे कुछ चंद जिम्मेदार भी अपने स्वार्थ के चलते इन्हें कवच प्रदान करते हैं जो धीरे धीरे बटब्रक्ष की तरह बिशाल और मजबूत हो जाता है किन्तु बट ब्रक्ष की तरह सीतल छाया देने के बजाय बबूल की तरह कंटीला अकवन की तरह जहरीला हो जाता है जिससे लोग सिर्फ लहूलुहान हो सकते हैं। पर सुरक्षित नहीं ।जिसका नतीजा बार बार सामने आते हैं बस चेहरे बदल जाते हैं । कहीं बाबा रामरहीम जैसे संत के नाम पर पैदा होता है जिसके सामने आमजमानस ही नहीं पूरी सरकार ही नतमस्तक हो जाती है भयभीत इतनी की उसे जेल भी धरती मार्ग से नहीं आकाश मार्ग से भेजा जाता है ऐसे कितने हैं जिन्हें सरकारों का ही बरदहस्त प्राप्त है और यही जनता के नुमाइंदे हमदर्द रक्षक बनते है और यही भक्षक भी आज एक साधारण ब्यक्ति को छोटी सी गलती में कानून का पाठ पढ़ाया जाता है दंडित किया जाता है पर उन लोगों को नहीं जो दिन-रात कानून के साथ आंख मिचौली का खेलते हैं।आज कितने अपराधिक इतिहास के बिधानसभाओं सहित देश की लोक सभा में मौजूद हैं जिनके ऊपर गंभीर आरोप है जिनका पूरा वायोडाटा चुनाव आयोग के पास और ऐसे ही लोग अपराध मुक्त होने का दावा करते हैं जिनके खून के कतरे कतरे में छल फरेब भरा पड़ा हुआ है और इन्ही के सामने प्रसाशन बौना साबित हो जाता है सो अगर हम इन सबसे मुक्ति पानी है तो व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना होगा जो सर्ब समाज सहित देश के हित में होगा। नहीं ऐसे ही जवान शहीद होते रहेंगे माताओं की गोदे सूनी होगी सुहागिनों के मिटते रहेंगे बच्चों से उनके पिता का साया बहिनों से उनके भाई की कलाई छिनती रहेगी और लोग चार दिन चिल्लाएंगे गला बैठ जायेंगा महौल शांत हो जाएगा इसके बाद कोई दूसरा तीसरा चौथा तैयार हो जाएगा। सरकारें किसकी है हमें इससे मतलब नहीं है यह तो बदलती रहती है पर क्या यह लोग दावे के साथ कह सकते हैं कि आज कोई भी राजनीतिक पार्टी दल अपराध मुक्त है उनके पार्टी दल में कोई भी अपराधी नहीं है लेकिन हम जानते हैं कि यह दावा कोई भी राजनीतिक पार्टी दल वाला नहीं कर सकता है और जब तक यह पार्टियां दल अपराध मुक्त नहीं हो जाते तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेगी क्योंकी यही लोग इनको पाल-पोस के बड़ा करते हैं तभी यह बढ़ कर आगे समाज के लिए नासूर बन जाते हैं।