साफ-सफाई के मामले में देश भर के शहरों की प्रतियोगिता साल-दर- साल दिलचस्प होती जा रही है, तो यह खुशी और स्वागतयोग्य बात है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के परिणामों की गुरुवार को हुई घोषणा में फिर इंदौर पहले स्थान पर रहते हुए दूसरे तमाम शहरों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है। सूरत और नवी मुंबई का दूसरे और तीसरे स्थान पर रहना भी इन शहरों की निरंतर मेहनत, लगन को सामने रखता है। केंद्र्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा जारी स्वच्छता सूचियां पूरे देश के लिए कागज मात्र नहीं हैं, बल्कि व्यावहारिक महत्व रखती हैं। स्वच्छता विकास की एक महत्वपूर्ण बुनियाद होती है और गांधीजी की याद में शुरू किया गया यह अभियान अब बहुत आगे बढ़ चुका है। इस अभियान के तहत जिन 129 शहरों को पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे, उनसे देश के तमाम शहरों को राह दिखेगी। दुनिया के इस सबसे बडे़ स्वच्छता सर्वेक्षण में 4,242 शहरों, 62 छावनी बोर्डों और 92 गंगा के समीप बसे छोटे-बडे़ शहरों की रैंकिंग आमतौर पर ऑनलाइन सर्वेक्षण के माध्यम से तैयार की गई है। इस सर्वेक्षण की परंपरा से पहले हमारे शहर स्वच्छता का सिर्फ दावा किया करते थे, लेकिन अब उनकी स्वच्छता का फैसला ठोस पैमानों पर किया जाने लगा है।
इस सर्वेक्षण की रोशनी में उत्तर भारत के शहरों को देखना सबसे ज्यादा जरूरी है, क्योंकि इन शहरों में आबादी का दबाव सर्वाधिक है। इन शहरों को अपनी ऐतिहासिक चमक बरकरार रखने के लिए सफाई की सर्वाधिक जरूरत है। दस लाख से ज्यादा आबादी वाले स्वच्छ शहरों में लखनऊ 12वें स्थान पर है। इसके बाद आगरा (16), गाजियाबाद (19), प्रयागराज (20), कानपुर (25) इत्यादि का स्थान है। झारखंड में रांची 30वें और धनबाद 33वें स्थान के साथ अपेक्षाकृत पीछे हैं। हालांकि 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में जमशेदपुर सातवें स्थान के साथ पूरे उत्तर भारत के लिए एक मिसाल है। झारखंड में विशेष रूप से रांची को स्वच्छता के मामले में आगे आना चाहिए, पर सबसे निराश करने वाली स्थिति पटना की है। पटना दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में सफाई के मामले में सबसे नीचे है। इंदौर से अगर पटना की तुलना करें, तो जहां इंदौर को 5,647.56 अंक मिले हैं, वहीं पटना को महज 1,542 अंक। गंगा के करीब बसे शहरों की जो रैंकिंग की गई है, उसमें भी पटना 32वें स्थान पर है। पटना में विगत वर्षों में सुधार हुआ है, पर जिस युद्ध स्तर पर यह शहर सफाई की मांग कर रहा है, उसमें हम पिछड़ रहे हैं।
बहरहाल, बनारस से आशा जग रही है, क्योंकि दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में जहां उसकी रैंकिंग 27वीं है, वहीं गंगा तट पर बसे शहरों में वह सबसे स्वच्छ शहर है। प्रधानमंत्री का चुनाव क्षेत्र होना और विगत वर्षों में बनारस में सफाई पर ध्यान देने से फर्क दिखने लगा है। सफाई की वैसी ही चौकस व्यवस्था हर जगह होनी चाहिए, ताकि गंगा के किनारे के साफ शहरों में बहुत नीचे आए गाजीपुर जैसे क्षेत्रों की भी किस्मत बदले। जो शहर पिछड़ गए हैं, उन्हें आगे निकल चुके शहरों से सीखना होगा। पिछड़ते शहरों के निकायों और उनकी सरकारों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। जरूरी है कि यह सर्वेक्षण फाइलों की नहीं, देश की शोभा बढ़ाने का माध्यम बने और उससे भी जरूरी है, लोगों में अपने शहर को स्वच्छ रखने के लिए प्रतिस्पद्र्धा का भाव आए। – आत्माराम त्रिपाठी