आत्माराम त्रिपाठी
किसानों की समास्याओं पर न तो ध्यान अधिकारियों द्वारा दिया जाता नहीं जनप्रतिनिधियों द्वारा । और अबतो कलमकारों की कलमें भी खमोश हो गई है। किसान जिसे इस समय अपनी खड़ी फसल में युरिया खाद की आवश्यकता है किन्तु सरकारी खाद्य भंडार से युरिया खाद गायब यानी खत्म हो गई य उसे ऊंचे दामों में बढ़ोतरी के साथ बेचने के लिए दबा दी गई अगर दबा दी गई तो बाहर कौन निकालेगा क्योंकी जिनके यह सब अधिकार क्षेत्र में है वह सो रहे हैं जिन्हें जगाना चाहिए वह खामोश है । और किसान अपनी दुर्दशा पे आशू बहा रहा है।कितनी समास्याओं को लेकर जीवित रह सकता है किसान, पहले अन्ना जानवरों से अपनी फसलों की रक्षा करें या जानवरों से पहले रात्रि के अंधेरे में मेड़ों में रेंग रहे जहरीले कीड़े से य मलेरिया पैदा करने वाले मच्छरों से अगर यह धरतीपुत्र इन सबसे बच भी गया तो अब बारी आती है बैंकों की जिनका रूपया लेकर पूंजीपति बिदेश चले जाते हैं और फिर शुरू हो जाता है अंतहीन कानूनी दांवपेंच जिसमें छलनी के तरह हजारों लाखों छिद्र ही छिद्र होते हैं जिसका यह पूंजीपति उद्योगपति भरपूर फायदा उठाते हैं और ठाठ-बाट से राज करते हैं। दूसरी तरफ किसान जो अपनी खेती को गिरवी रख रिण लेने का प्रयास करता है उससे यही बैंक वाले इस तरह का सलूक करते हैं की मानो सामने किसान नहीं भिखारी खड़ा है और यह उसे भीख दे रहे हैं ।इन्हें सामने किसान नहीं किसान लुटेरा नजर आता है न्यूड्यूज के नाम बैंकों के चक्कर उसमें भी कमीशन बिना कमीशन जमा कराए बैंक न्यूड्यूज नहीं बनाएंगे इसके बाद बाराशाला जिसमें वकील की भारी-भरकम फीस जुड़ी है अब पुनः बैंक जितने का लोन चाहिए उसका 5%से 10%परसेंट तक का कमीशन इन बैंकों को चाहिए अब किसान जिसके रिण से पहले ही इतना खर्च हो गया हो वह पूरा रिण वह भी कैसे समय से चुकापायेगा।अब बारी आती है रिणमाफी की जिसे भी वर्ण भेद की तरह सीमांत लघुसीमांत में बिभाजित कर दिया और उसमें भी भरी समाज में सबसे बड़े दानदाता बन किसान को जलील करते हुए भिखारी बना रिणमाफी के चेक दिए।
आज किसान चारों तरफ से टूट गया है बिखर गया है और सभी खामोश है यहां टीआरपी नहीं मिलनी सो कलमकारों की कलमें खामोश एंकर की एंकरिंग खामोश सेष तो पहले से ही खामोश है अब ईश्वर ही किसानों का मालिक है।