अनिल अनूप
“डर मुझे भी लगता था – ग़रीबी से, बेरोज़गारी से, कुपोषण से, नशे से लेकिन फिर मैंने अपनी बहनों को आवाज़ लगायी, एक संकल्प समाज की सीरत बदलने के लिए, संकल्प कुंठित मानसिकता और रूढ़िवादी परम्पराओं को उखाड़ फेकने का। आज सब कुछ सफल होता दिखता है” I यह कहानी है पद्मश्री फूलबासन बाई यादव की..
राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के छोटे से गांव सुकुलदैहान की 5वीं पास महिला फूलबासन बाई यादव किसी मिसाल से कम नहीं है। फूलबासन कभी अपने गांव में बकरी चराया करती थीं। लेकिन अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने एक महिला समूह बनाया जो अब लाखों महिलाओं को रोजगार दे रहा है। फूलबासन बाई ने गांव की महिला से लेकर पद्मश्री हासिल करने तक का सफर तय कर एक मिसाल पेश की है। फूलबासन बाई मां बम्लेश्वरी स्व सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। इनके इस महिला समूह में दो लाख से अधिक महिलाओं का समूह काम कर रहा है, जो अपने आप में एक मिसाल है। फूलबासन बाई नारी सशक्तिकरण का एक अच्छा उहादरण पेश कर रही हैं।
राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर सुकुलदैहान गांव में 5वीं पास फूलबासन बाई यादव शादी करके आई थी। 2001 में उन्होंने दो रुपये और दो मुट्ठी चावव से महिला समूह का काम शुरू किया। आज इस महिला समूह से दो लाख महिलाएं जुड़ गई हैं और इनकी बचत करोड़ों में है। फूलबासन बाई कहती हैं कि बचपन में पढ़ाई करने की काफी इच्छा थी, लेकिन गरीबी के चलते ये सपना ही रह गया। बड़ी मुश्किल से 5वीं तक की पढ़ाई हो पाई। 13 साल की उम्र में मैं ससुराल आ गई। यहां भी मैंने गरीबी देखी। फिर कुछ करने की इच्छा मन में जागी और महिला समूह की शुरुआत की। फूलबासन बाई ने 2001 में 10 महिलाओं के साथ स्व सहायता समूह की शुरुआत की थी।
फूलबासन बाई की शादी काफी कम उम्र में हो गई थी। ससुराल में भी उन्होंने गरीबी देखी। कई दिनों तक उन्हें भूखे सोना पड़ा था। बच्चों के लिए खाना तक नहीं होता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी मेहनत और लगन से फूलबासन आज डेयरी, बकरी पालन,मच्छली पालन, खाद कम्पनी चला रही हैं और लाखों महिलाओं को रोजगार दे रही हैं। इसके साथ ही वे नशामुक्ति और खुले में शौच को लेकर भी अभियान चलाती हैं।
फूलबासन बाई ने 2001 में 10 महिलाओं के साथ स्व सहायता समूह की शुरुआत की थी।
फूलबासन बाई बचपन में अपने माँ-बाप के साथ चाय के ठेले में कप धोने का काम करती। ग़रीबी इतनी कि जब घर में भोजन करने का समय आता तो माता-पिता कहते कि आज एक ही समय का भोजन मिलेगा। कई बार तो हफ़्तों खाना नहीं मिलता था ।ग़रीबी के चलते कभी कभी तो महीनों नमक नसीब नहीं होता और एक ही कपड़े में ही महीने निकल जाते। 12 वर्ष की उम्र में फ़ूलबासन बाई की शादी एक चरवाहे से करवा दी गयी। मानो कम उम्र में एक बड़ी ज़िम्मेदारी के कुए में इस मासूम बच्ची को धकेल दिया हो।
कुछ साल में चार बच्चे हो गए लेकिन घर की आर्थिक स्थिति जस की तस थी, अपने बच्चों को दो वक़्त का भोजन देने के लिए फूलबासन बाई दर दर अनाज माँगती लेकिन किसी एक ने नहीं सुनी । हर शाम अपने बच्चों को भूखे पेट देख फूलबासन ख़ून के आँसू रोती लेकिन इन चुनौतियों के सामने कभी समर्पण नहीं किया।
विपरीत परिस्थिति को अवसर मानकर फूलबासन बाई ने प्रण लिया कि अब वे ग़रीबी, कुपोषण, बाल- विवाह से लड़ेंगी। ग्यारह बहनों का एक समूह बनाया जिसके तहत दो मुट्ठी चावल और हर हफ़्ते दो रुपए जमा करने की योजना बनाई लेकिन वक़्त अभी भी फूलबासन बाई से ख़फ़ा था। संगठन बनाने की यह मुहिम फूलबासन बाई के पति को पसंद नहीं आई और फिर समाजिक विरोध भी शुरू हो गया। समाज में सब कहने लगे फूलबासन पागल हो गयी है। महिलाओं का समूह बना परम्परा के ख़िलाफ़ काम कर रही है, लेकिन समाज को एक दिशा देने के उद्देश्य से निकली फूलबासन के संकल्प के आगे समाज के सारे ताने- बाने शून्य पड़ गए।
महिलाओं की मदद से जल्द ही समिति ने बम्लेश्वरी ब्रांड नाम से आम और नींबू के अचार तैयार किए और छत्तीसगढ़ के तीन सौ से अधिक स्कूलों में उन्हें बेचा जाने लगा जहां बच्चों को गर्मागर्म मध्यान्ह भोजन के साथ घर जैसा स्वादिष्ट अचार मिलने लगा। इसके अलावा उनकी संस्था अगरबत्ती, वाशिंग पावडर, मोमबत्ती, बड़ी-पापड़ आदि बना रही है जिससे दो लाख महिलाओं को स्वावलम्बन की राह मिली है। श्रीमती यादव के मुताबिक अचार बनाने के इस घरेलू उद्योग में लगभग सौ महिला सदस्यों को अतिरिक्त आमदनी का एक बेहतर जरिया मिला और दो से तीन हजार रूपये प्रतिमाह तक कमा रही हैं।
श्रीमती यादव ने अपने 20 साल के सामाजिक जीवन में कई उल्लेखनीय कार्यों को महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से अंजाम दिया है। महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से गांव की नियमित रूप से साफ-सफाई, वृक्षारोपण, जलसंरक्षण के लिए सोख्ता गढ्ढा का निर्माण, सिलाई-कढ़ाई सेन्टर का संचालन, बाल भोज, रक्तदान, सूदखोरों के खिलाफ जन-जागरूकता का अभियान, शराबखोरी एवं शराब के अवैध विक्रय का विरोध, बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ वातावरण का निर्माण, गरीब एवं अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के साथ ही महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में भी श्रीमती यादव ने प्रमुख भूमिका अदा की है। आज लाखों महिलाओं का यह समूह राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए नए कीर्तिमान रच रहा है।
कभी दो वक़्त के खाने की भी मोहताज थी और आज लाखों महिलाओं का समूह बनाकर सफलता की इबारत लिख रही श्रीमती फूलबासन बाई के जज़्बे एवं हिम्मत को सलाम, सच कहते हैं एक बड़े बदलाव के लिए पागलपन चाहिए, जुनून चाहिए ।
अमिताभ ने बनाया बहन
कौन बनेगा करोड़पति 12’ (KBC 12) में इस हफ्ते की कर्मवीर थीं छत्तीसगढ़ की पद्मश्री फूलबासन बाई यादव। फुलबासन अपनी संस्था ‘मां बम्लेश्वरी जनहित समिति’ के जरिए समाज सेवा करती हैं। इस हफ्ते हॉट सीट पर उनके साथ थीं अभिनेत्री रेणुका शहाणे । 50 वर्ष की फूलबासन यादव छत्तीसगढ़ की आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी महिलाओं के विकास के लिए काफी परिश्रम कर रही हैं।
आत्मनिर्भर बनने के लिए फूलबासन का गरीबी से संघर्ष और फिर दूसरों को सशक्त बनाने का योगदान काफी प्रेरणादायक है। अपने स्वयंसेवी समिति के जरिए फूलबासन ने महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए और उनको आर्थिक सुरक्षा दी।
अपनी बुद्धि कौशल से फूलबासन ने पचास लाख रुपए जीतने वाली केबीसी की पहली सहभागी बनने का एक और नया मुकाम हासिल किया है।