• प्रमोद दीक्षित ‘मलय’
( पपीहा पेड़ से नीचे प्रायः बहुत कम उतरता है और उसपर भी इस प्रकार छिपकर बैठा रहता है कि मनुष्य की दृष्टि कदाचित् ही उसपर पड़ती है। इसकी बोली बहुत ही रसमय होती है और उसमें कई स्वरों का समावेश होता है। किसी किसी के मत से इसकी बोली में कोयल की बोली से भी अधिक मिठास है। हिंदी कवियों ने मान रखा है कि वह अपनी बोली में ‘पी कहाँ….? पी कहाँ….?’ अर्थात् ‘प्रियतम कहाँ हैं’? बोलता है। वास्तव में ध्यान देने से इसकी रागमय बोली से इस वाक्य के उच्चारण के समान ही ध्वनि निकलती जान पड़ती है। यह भी प्रवाद है कि यह केवल वर्षा की बूँद का ही जलपीता है, प्यास से मर जाने पर भी नदी, तालाब आदि के जल में चोंच नहीं डुबोता। कवि ने चंद पंक्तियों में इस पपीहे के चरित्र और प्रकृति का जो शब्दांकन किया है वो आपके पेशे नज़र है। – संपादक)
रसाल सी रसीली आम्र कानन बीच वह,
वर्षा वारि धार साथ खेलती-नहाती है।
प्रकृति सुंदरी समेट सुंदरता सकल,
समाई उसमे वह रति को लजाती है।
प्रेम झूले में झूलती इठलाती कली वह,
मर्यादा में बंधी पर प्रेम न जताती है।
उपवन सुवासित है उसकी सुवास से,
हंसे तो मीठी स्वर लहरी बिखराती है।
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प्रेम-ताप से तपी तमाल देह पर पडी।
बारिश की बूंदे प्रेम आग धधकाती हैं।।
गुलाबी मन-गात पर काम लगाये घात।
प्रेम पीयूष से सिंचित हृदय बाती है।
पिय को प्रेम पाती लिख भेजती घटाओ से,
उर मिलन की चाह पर सकुचाती है।
‘मलय’ बयार बैरी टेरता पपीहा मन,
बीते है दिन पर न रैन कट पाती है।।
शिक्षक, बांदा (उ.प्र.)
मोबा. : 94520-85234