• प्रमोद दीक्षित मलय
कैसा यह संसार कबीरा।
नहीं बचा उर प्यार कबीरा।।
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स्वारथ के सब रिश्ते नाते।
घर बनता बाजार कबीरा।।
प्रेम खोजता फिरता मानव।
दौलत, बंगला, कार कबीरा।।
प्रेम बांटने से सुख मिलता।
कभी न करना रार कबीरा।
बाहर भटके अनजाना मन।
सभी तीर्थ घर-द्वार कबीरा।।
कभी न साधक हार मानता।
चल पड़ता हर बार कबीरा।।
उर आंगन मधु प्रेम उपजता।
होती आंखें चार कबीरा।।
मलय पवन मकरंद बिखेरे।
जीवन का सुख सार कबीरा।।