हंसराज ‘हंस’
करो इबादत हमेशा, परवरदिगार से ऐसी।
देश रहे खुश मिजाज, नही हो किसी की हंसी।
सबको करो प्रेम और सहयोग, सबकी करो फ्रिक व परवाह।
उसका मन भी करे, आपके लिए दुआ।
जिंदगी में अजनबी की, करके देखो सेवा निस्वार्थ।
आपका मन बाग- बाग होगा, इससे बड़ा नही है कोई परमार्थ।
क्योंकि कहा भी गया है, ईश्वर मंदिर मस्जिद में नहीं बसता।
वह तो दीन, हीन के अंदर है बसता।
करोगे उनकी सेवा सराहना, तो मिलेगा परम संतोष।
यही सच्ची इबादत भी होगी, भर जाएगा मन में विश्वास।
क्षमता, सामर्थ्य के अनुसार खूब करो सहयोग व सेवा।
मान लेगा ईश्वर आपकी इबादत, छप्पर फाड़ कर मिलेगा मेवा।