“दिव्यांगता”
-हंसराज हंस
शारीरिक या मानसिक हो, व्याधि।
जिसके ईलाज का अंत हो, न आदि।
जब बीमारी या क्षति हो जाए लाईलाज।
वह बना देती है,पंगू और अपाहिज।
बीमारी का नाम नही है, विकलांगता।
अवस्था बने तब होती है,दिव्यागंता।
प्रकृतिप्रदत,चोट व दुर्घटना बनते है कारण।
निराकरण नही होना ,दिव्यागंता का बनता है कारण।
दिव्यांगजनो के पास भी होती है,एक अदभुत शक्ति।
हौसलें व ताकत से, बाधा पर, पा जाते है मुक्ति।
बड़े बड़े कारनामे करके,बनाते है गजब के रिकार्ड।
सामान्य जन भी होते है अंचभित, देखकर इनके रिकार्ड।
चाहे खेल,पढ़ाई हो,या हो नृत्य संगीत।
सभी दांतो तले अंगुली दबाते है,देख इनको गाते मन के गीत।
दया व कृपा करके,मत बनाओ इनको कृपा के पात्र।
मान सम्मान और आदर करके,बनाओ सुपात्र।
बेचारे लगते,जब कहते,पंगू, अपाहिज और विकलांग।
इनके अभिशाप को बना दो वरदान, इसलिए अब इन्हें कहते है दिव्यांग।